'' निर्मल मन , जन सो मोहिं पावा , मोहिं कपट छल छिद्र न भावा '' - [ मानस में तुलसी ]
दर्जा एक से दो में जाना हो तो एक की परीक्षा पास करनी होगी , ऐसे ही एम ० ए ० तक
IAS , PCS , MBBS , B Tech , M Tech , Ph D , IIT , IIM आदि आदि में प्रवेश के लिए कड़ी प्रवेश परीक्षा , टेस्ट , जांच , मेडिकल , साक्षात्कार , पुलिस वेरिफिकेशन और नाना प्रकार की पात्रता की खोजबीन होगी तब कहीं जाकर प्रवेश मिलेगा। ….
पर चाहे ह्रदय का मंदिर हो या बाहर जो इंट -पत्थर से बनाया उसमे बस हाथ -पैर धोये , जूता उतारा , और घुस गये , और पेश करदी अपनी मांगों की लिस्ट। …
ऐसे नहीं होता , हालांकि प्रभु के पास जाने के लिए या ह्रदय या बाहर के मंदिर में प्रवेश के लिए कोई भी , किसी के लिए प्रतिबन्ध अथवा शर्त , योग्यता नहीं है , पर उसका दिल साफ़ होना चाहिए , उसमे कपट , छल और छिद्र (इर्षा, द्वेष , हिंसा , लालच आदि कमी को छेद कहा है ) नहीं होना चाहिए …निर्मल /साफ़ /दोष रहित मन तो होना ही चाहिए अन्यथा परमात्मा भीतर ह्रदय के मंदिर का हो या बाहर के मंदिर का आपको प्रवेश न दे सकेगा
उपनिषदों (वेदान्त ) में भी ऋषियों ने यही कहा - परमात्मा न प्रवचन से मिलता है न ज्यादा पढने , सुनने या मेधा / बुद्धि के प्रयास वह (परमात्मा ) मिलता है ; वह तो उसे चुन लेता है जिसका मन निर्मल है , और उसके सामने अपने को खुद ही प्रकट / प्रकाशित कर देता है
परमात्मा को पाने के लिए पात्रता चाहिए और वह है साफ़ , सीधा , सच्चा मन , रिक्त - मुक्त ….
दर्जा एक से दो में जाना हो तो एक की परीक्षा पास करनी होगी , ऐसे ही एम ० ए ० तक
IAS , PCS , MBBS , B Tech , M Tech , Ph D , IIT , IIM आदि आदि में प्रवेश के लिए कड़ी प्रवेश परीक्षा , टेस्ट , जांच , मेडिकल , साक्षात्कार , पुलिस वेरिफिकेशन और नाना प्रकार की पात्रता की खोजबीन होगी तब कहीं जाकर प्रवेश मिलेगा। ….
पर चाहे ह्रदय का मंदिर हो या बाहर जो इंट -पत्थर से बनाया उसमे बस हाथ -पैर धोये , जूता उतारा , और घुस गये , और पेश करदी अपनी मांगों की लिस्ट। …
ऐसे नहीं होता , हालांकि प्रभु के पास जाने के लिए या ह्रदय या बाहर के मंदिर में प्रवेश के लिए कोई भी , किसी के लिए प्रतिबन्ध अथवा शर्त , योग्यता नहीं है , पर उसका दिल साफ़ होना चाहिए , उसमे कपट , छल और छिद्र (इर्षा, द्वेष , हिंसा , लालच आदि कमी को छेद कहा है ) नहीं होना चाहिए …निर्मल /साफ़ /दोष रहित मन तो होना ही चाहिए अन्यथा परमात्मा भीतर ह्रदय के मंदिर का हो या बाहर के मंदिर का आपको प्रवेश न दे सकेगा
उपनिषदों (वेदान्त ) में भी ऋषियों ने यही कहा - परमात्मा न प्रवचन से मिलता है न ज्यादा पढने , सुनने या मेधा / बुद्धि के प्रयास वह (परमात्मा ) मिलता है ; वह तो उसे चुन लेता है जिसका मन निर्मल है , और उसके सामने अपने को खुद ही प्रकट / प्रकाशित कर देता है
परमात्मा को पाने के लिए पात्रता चाहिए और वह है साफ़ , सीधा , सच्चा मन , रिक्त - मुक्त ….