Saturday, January 30, 2010

CONVOCATION ADDRESS IN UPNISHAD

ॐ सह नाववतु . सह नौ भुनक्तु . सह वीर्यं करवावहै .
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै . ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः .
( English version ) 
Om ! May He protect us both together; may He nourish us both together;
May we work conjointly with great energy,
May our study be vigorous and effective;
May we not mutually dispute (or may we not hate any).
Om ! Let there be Peace in me !
Let there be Peace in my environment !
Let there be Peace in the forces that act on me !
( Original Text  in Samskrit from Taittriya Upnishad )
वेदमनूच्याचार्योन्तेवासिनमनुशास्ति . सत्यं वद . धर्मं चर . स्वाध्यायान्मा प्रमदः . आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः . सत्यान्न प्रमदितव्यम् . धर्मान्न प्रमदितव्यम् . कुशलान्न प्रमदितव्यम् . भूत्यै न प्रमदितव्यम् . स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् .. १.. देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम् . मातृदेवो भव . पितृदेवो भव . आचार्यदेवो भव . अतिथिदेवो भव . यान्यनवद्यानि कर्माणि . तानि सेवितव्यानि . नो इतराणि . यान्यस्माकँ सुचरितानि . तानि त्वयोपास्यानि .. २.. नो इतराणि . ये के चारुमच्छ्रेयाँसो ब्राह्मणाः . तेषां त्वयाऽऽसनेन प्रश्वसितव्यम् . श्रद्धया देयम् . अश्रद्धयाऽदेयम् . श्रिया देयम् . ह्रिया देयम् . भिया देयम् . संविदा देयम् . अथ यदि ते कर्मविचिकित्सा वा वृत्तविचिकित्सा वा स्यात् .. ३.. ये तत्र ब्राह्मणाः संमर्शिनः . युक्ता आयुक्ताः . अलूक्षा धर्मकामाः स्युः . यथा ते तत्र वर्तेरन् . तथा तत्र वर्तेथाः . अथाभ्याख्यातेषु . ये तत्र ब्राह्मणाः संमर्शिनः . युक्ता आयुक्ताः . अलूक्षा धर्मकामाः स्युः . यथा ते तेषु वर्तेरन् . तथा तेषु वर्तेथाः . एष आदेशः . एष उपदेशः .( Taittriya  Upnishad)
( Hindi version )
स्नातक को भलीभांति अध्ययन कराकर आचार्य उसे गृहस्थ आश्रम को भेजते हुए संबोधित करता है ---- **सत्य बोलना । धर्म पर चलना । स्वाध्याय में प्रमाद (आलस्य या अवहेलना ) न करना । आचार्य को यथाशक्ति दक्षिणा देना। संतान की परम्परा कायम रखना । सत्य से कभी मत डिगाना । धर्मं से कभी मत डिगाना । शुभ कर्मों से न हटना । पढ़ने-पढाने में प्रमाद मत करना । देव कार्य ,पित्रिकार्य में प्रमाद न करना ।
माता ,पिता, आचार्य और अतिथि में देवता का भाव रखना । निर्दोष कर्म करना ,दोषयुक्त आचरण न करना .यथाशक्ति दान देना । दान आर्थिक क्षमता के अनुसार देना । दान श्रद्धा से देना । दान उचित पात्रको ही देना । दान लज्जा और विनय पूर्बकदेना चाहिए । कर्म करने के निर्णय में अथवा सदाचरण में कोई शंका आ जाए तो उत्तम विचार वाले तथा जो परामर्श देने में कुशल हों ,उनसे सलाह लें । उस परिस्थिति में जिसमे आप हैं ,जैसा बुद्धिमानजन करते हों वैसा ही करिए । यही उपदेश है ,यही निर्देश है ,यही शिक्षा है । यही वेदों का मत है।
( English version )
Convocation address by teacher at the end of education in Ashram -
Speak always the Truth ;be righteous ; do not be inadvertent in your studies ;help your teacher as much you can  ;continue the progeny ;deviate ,never from Truth ,Righteousness and Good work; be not inadvertent in learning- teaching ; nor in paying due honour to your parents and grand parents . Have  feel equal to God in your mother , father ,teacher and guests. act rightly not wrong. Go to charity as you can  with honour  and to needful  with all humility. In action if have any doubt ,  take the advice of those wise and competent .  the circumstances ,that you are in  , act as wise people act .this is preaching and direction and final lesson . this is what Vedas say .

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