बुद्धिमान ब्यक्ति अपने कों ईश्वर का अंश समझ कर और ईश्वर के अनुसार ही जीवन-यापन करना है, इस प्रकार के संस्कार से युक्त हो अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार आचरण करते हैं . अतः ऐसे लोग ईश्वर के भय के पूर्वानुमान से ही उत्तम जीवन जीते हैं .ए सहज सदाचारी हैं .
सामान्य लोग जों उन्ही बुद्धिमानों की संगति /संस्कार के प्रभाव में रहते हैं ,वैसा ही आचरण कर उत्तम जीवन जीते हैं .
" Shame arises from the fear of men, conscience from the fear of God.”
तीसरे लोग वे हैं जों यह समझ कर कि उन्होंने कुछ गलत या ऐसा काम किया है जों उन्हें नहीं करना चाहिए था .(गुन अवगुन जानत सब कोऊ :जों जेहि भाव नीक तेहि सोऊ -तुलसी राम चरित मानस में ) जानकर गलत करने से जों अपराध बोध हुआ ,उसके भय से ईश/मंदिर /मस्जिद /चर्च जाते हैं ,इस लिए कि जों गलत किया है वो माफ़ हो जाएगा ,इनका प्रतिशत अधिक है (परन्तु ऐसा नहीं होता , क्योंकि परमात्मा अपने ही नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता -कर्म प्रधान विश्व करि रखा :जों जस करै सो तस फल चाखा और जाऊ खल दंड करों नहीं तोरा : भ्रष्ट होई श्रुति -मार्ग मोरा -(तुलसी ,वही). जों हो गया वो माफ़ होने का सवाल ही नहीं .[ inaka dharm कर्म ,puja path मंदिर jana to nirarthak ही है . )
वे जों इस भाव से धर्म -कार्य करते हैं कि जों हुआ उसका पश्चाताप और आगे से सही और नैतिक काम करना है वे तो सही हैं और सुधार कि अपेक्षा है .पूजा-पाठ ,मंदिर मस्जिद जाना यहाँ सार्थक है पर इनकी संख्या कम/अनधिक ही है . और दूसरे जों धर्म- ईश्वर में कोई खास आस्था नहीं /समझ नहीं ,दूसरों कों देख कर ए सब करते हैं ,ए धार्मिक नहीं ,धार्मिक होने का दिखावा ही करते है .यही पूरे ढोंगी हैं .इनकी संख्या बहुत अधिक है ;सामान्य जनता में ९० प्रतिशत और इनके गुरु /संतो में तो ९८ प्रतिशत धूर्त और मक्कार ही हैं जों धर्म के बारे में कुछ सही नहीं जानते (ए सब - ''हरै शिष्य -धन शोक न हरई - तुलसी ,वही ) “Superstition is a senseless fear of God”
कुछ ऐसे हैं जों अनित करते डरते ही नहीं , चोरी , झूंठ ,लम्पटता और नाना प्रकार के आचरण उनके सहज स्वभाव ही हो गये हैं ,इनके धर्म -कर्म भी अनाचार और अनैतिकता के लिए ही किये जाते हैं ,जैसे रावण का तप भी अनाचार करने की शक्ति प्राप्त करना ही था ,इनका विनाश निश्चित है .इनका आनंद स्रोत दंभ , कदाचार और नाना प्रकार के भ्रष्टाचार ही हैं - " करत अनित जाही डर नाही''- (तुलसी , वही )
कुछ जों भगवान कों नहीं मानते ; दो प्रकार के हैं एक जों सदाचारी और नैतिक हैं जिन्हें ईश्वर की अपेक्षा नहीं और ईश्वर कोभी उनकी नहीं .यहाँ दोनों में प्रेम ,श्रद्धा स्वभावतः है .प्रार्थना ईश्वर की महानता के लिए और प्रेम भक्त के लिए ; सदाचारी के लिए . ए लोग धार्मिक नियमों के पार हैं . दूसरे जों नास्तिक हैं और कर्म के अनुसार फल चाहते हैं ,कपिल ने ठीक ही कहा है अपनी टिप्पणी में - ए लोग ढोंगी -धार्मिकों से अच्छे हैं . Fear only two: God, and the man who has no fear of God.”
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