'' ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ ''
पूर्ण है वह पूर्ण है यह
उदित होता है पूर्ण से पूर्ण ही.
पूर्ण से पूर्ण को निकालने के बाद
शेष रहता है पूर्ण ही..
सनातन धर्म ,हिन्दू धर्म का मूल और वास्तविक नाम है .दुनिया के सभी धर्मों कि तुलना में इस धर्म की प्रमुख अलग विशेषताएं निम्न हैं .............
1 - सनातन जैसा इस शब्द का अर्थ है - जिसका आदि और अंत न हो = Eternal .
2 - इस धर्म के तीन संप्रदाय हैं -एक - वैष्णव ; दूसरा - शैव और तीसरा - शाक्त . वैष्णव में विष्णु की ; शैव में शंकर की और शाक्त में शक्ति / देवी / माँ की साधना की जाती है . तीनो सम्प्रदायों में किंचित विरोध पर पूर्ण सामंजस्य है .(तुलसी ने राम चरित मानस में)
3 - सनातन धर्म का कोई एक संस्थापक / पैगम्बर अथवा अधिकारी नहीं है .
4 - सनातन धर्म के दर्शन का मूल चार वेदों में (ऋक ,साम ,अथर्व और यजुरवेद ) है और उन्ही का बिसतर , उपनिषद १०८ की संख्या में (वेदांत भी कहते हैं ) पुराण , महाभारत (भगवत गीता इसी का एक अंश है ) ,रामायण (बहुत भारतीय भाषाओँ में ) और राम चरित मानस आदि ग्रंथों में है .कोई एक ग्रन्थ धर्म का अधिकारी नहीं है .
5 - सारी श्रृष्टि परमात्मा का ही स्वरूप है ,उसे ब्रह्म कहते हैं सारा अस्तित्व ब्रह्म ही है और कुछ है ही नहीं ''ब्रह्म सत्य जगन्नमिथ्या ;जीवो ब्रह्म नापराः ''
6 - मनुष्य ब्रह्म का ही अंश है और वह उन्नत करके ईश्वरत्व प्राप्त कर सकता है ,जों देवताओं से भी बड़ा है जैसे राम ,कृष्ण और बुद्ध .(सूफी धर्म के अलावां दुनिया के किसी धर्म में मनुष्य ईश्वर नहीं हो सकता . ''सोह अस्मि '' = मैं भी वही हूँ (ईश्वर / ब्रह्म )
7 - सनातन धर्म केअनुसार श्रृष्टि में पत्थर ,पौधे ,पशु ,पानी ,हवा विद्युत् आदि सब चेतन हैं ,भिन्न भिन्न स्तर और अवस्थाओं के .
8 - सनातन धर्म का मूल है सब सुखी और स्वस्थ्य हों ,सब का मंगल हो परहित ही सबसे बड़ा धर्म और पर पीड़ा ही पाप है . -
9 - सनातन धर्म प्रजातान्त्रिक ब्यवस्था और सब की समानता में विश्वास करता है ,राम -राज्य इसका आदर्श है .
10 - बौद्ध धर्म , जैन धर्म , सीख धर्म और सभी भारतीय धर्म का मूल सनातन धर्म है और सभी धर्म ॐ कों ईश्वर / ब्रह्म के नाम के रूप में मानते हैं .
11 - दुनिया के सभी धर्मों की तरह सनातन धर्म - करुणा ,प्रेम , अहिंसा ,भाईचारा , सहिशुनता , शांति ,सब धर्मों का आदर आदि सद्गुणों का सम्मान और विधान करता है .
आधुनिक सनातन धर्म के मानने वालों में , - स्वामी विवेक नन्द , रविन्द्र नाथ ठाकुर , महर्षि अरविन्द ,रमण महर्षि ,महात्मा गांधी और सभी शंकराचार्यों सहित अनेकोनेक संत हैं :
** Some of the Great Statements in Vedanta ( महा वाक्य ) are .................
1 - प्रज्ञानं- ब्रह्म - ऐत्तिरेय उनिषद (ऋग्वेद), Prjnanam Brahm = Consciousness is Brahman .
2 - अहं-ब्रह्मास्मि - ब्रिहदारन्य्क उपनिषद (यजुर्वेद), Aham Brahmaasmi = I am Brahman
3 - तत्वमसि - छान्दोग्य उपनिषद (सामवेद), Tatwmasi = That you are ( too)
4 - अयमात्मा-ब्रह्म - मांडूक्य उपनिषद (अथर्ववेद). Ayam Aatmaa Brahman = This Self is Brahman .
5 - सोहमस्मि - ईशोपनिषद (ऋग्वेद ) Soahmasmi = That I am (too)
6 - सर्वम् खलु इदं ब्रह्म Sarv Khalu Idam Brahman =Really all this is Brahman .
7 - ब्रह्म सत्य जगन्नमिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरा :Brahman satay jagat mithyaa Jiwo brahmaiw naaparah . = Brahman is Real ,world is ephemeral ; being is also Brahaman and no else .
8 - एकम अद्वितिया ब्रह्म Ekam adwitiy Brahman = Brahman is One not being second .
9 - एकम सद विप्र बहुधा वदन्ति Ekam Sad Viprah Vahudhaa vadanti .Truth is One called by various names by wise men .
1o - एकोअहम बहुस्यामि Ekoham bahusyami = I am One and becoming Many .
11 - न जायते मृयते वा कदाचन ( भगवत गीता में कृष्ण ).Na jayate mriyate vaa kadaachan = Nothing is born or die.
Sanatana Dharma recognizes that the Ultimate Reality, which is the ground of infinite potentiality and actualization, cannot be limited by any name or concept. The potential for human wholeness (or in other frames of reference, enlightenment, salvation, liberation, transformation, blessedness, nirvana, moksha) is present in every human being. No race or religion is superior and no color or creed is inferior. All humans are spiritually united like the drops of water in an ocean.
Sanatana Dharma, meaning “Eternal or Universal Righteousness” is the original name of what is now popularly called Hinduism. Sanatana Dharma comprises of spiritual laws which govern the human existence. Sanatana Dharma is to human life what natural laws are to the physical phenomena. Just as the phenomena of gravitation existed before it was discovered, the spiritual laws of life are eternal laws which existed before they were discovered by the ancient rishis (sages) for the present age during the Vedic period. Sanatana Dharma declares that something cannot come out of nothing and, therefore, the universe itself is the manifestation of the Divine being. This truth forms the invocation of the Isa Upanishad (a Hindu scripture):
'' ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥''
That is full; this is full. The full comes out of the full.
Taking the full from the full, the full itself remains. -- - Ishavashya Upnishad (Rig Veda)
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हिंदू धर्म में राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। (जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे।)
वाल्मीकि -रामायण के अनुसार :- ब्रह्माजी से मरीचि ; मरीचि के पुत्र कश्यप ; कश्यप के विवस्वान ; विवस्वान के वैवस्वत ; वैवस्वत के मनु ; (मनु के समय जल प्रलय हुआ ) वैवस्वतमनु के उपरोक्त दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की।
इक्ष्वाकु के कुक्षि ; कुक्षि के विकुक्षि ; विकुक्षि के पुत्र बाण ; बाण के अनरण्य ; अनरण्य से पृथु ; पृथु ; पृथु से त्रिशंकु ; त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार ; धुन्धुमार के ; युवनाश्व ; युवनाश्व के पुत्र मान्धाता ; मान्धाता से सुसन्धि ; सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।(भरत के नाम पर देश का नाम भारत हुआ ;संस्कृत भाषा में भारत का अर्थ है भरत का (देश) )
भरत के असित हुए ; असित के सगर ; सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे। सगर के असमंज ; असमंज के अंशुमान ; अंशुमान के दिलीप ; दिलीप के भगीरथ ( गंगा को पृथ्वी पर लाये )। भगीरथ के ककुत्स्थ ; ककुत्स्थ के रघु हुए। रघु के बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। [ राम के कुल को रघुकुल कहा गया ]
रघु के पुत्र प्रवृद्ध ; प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के सुदर्शन ; सुदर्शन के अग्निवर्ण ; अग्निवर्ण के शीघ्रग ; शीघ्रग के पुत्र मरु ; मरु के पुत्र प्रशुश्रुक ; प्रशुश्रुक के अम्बरीष ; अम्बरीष के नहुष ; नहुष के ययाति ; ययाति के पुत्र नाभाग ; नाभाग के पुत्र का नाम अज ; अज के पुत्र दशरथ और दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए वाल्मीकि रामायण- ॥1-59 से 72।।
* Don't enforce one belief / worship or conduct for all. Don't try to destroy different forms of worship, claiming your to be the only right . Such efforts are against the Divine Law.
Give importance to sincerity of heart and nobleness of conduct in the field of all in their own religions.
Don't try to limit the limitless God. Do not create inter-religious wars / debate / doubts , forcing your claims and dogmas as better or the best, on others.
Give a person freedom to think / reason to believe or disbelieve in his / her own way , which suits his / her temperament. After all, what is important in worship of God is the sincerity of heart, not the outer forms and means .
Don't try / force to divide the human race into conflicts and camps of Holy and Unholy .
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