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एक बहुत भ्रमात्मक समझ है , कर्म के सिद्धांत [थियरी ओव एक्शन ] के विषय में ....लोग सामान्यतया समझते हैं कि मनुष्य जो कर्म करता है उसी के आधार पर उसे फल मिलता है , ऐसा बिलकुल भी नहीं है ....इसे ज़रा ठीक से समझ लें .....सारी श्रृष्टि . अस्तित्व सदैव , प्रतिक्षण कर्म रत है (गीता में कृष्ण ).....देखें , * सोलर सिस्टम के सभी ग्रह अपनी कक्षा में गतिशील है , लगभग ३६५ दिनों में फिर पुराने मौसम , नई दुनिया लेकर आ जाते हैं ...सब कुछ वही पर एकदम नया । * सूरज तपता है , सागर वाष्प बनकर बादल बन उठता है , वर्षा होती है , कुछ पर्वतों के शिखरों पर बर्फ बनी , शेष नदियों में बहकर रास्ते के नगर-गाँव ,देश, भूमि को सींचता , प्यासे की प्यास बुझाता फिर सागर को लौट आता है , ....* तापक्रम बदलता है , पानी जम गया , धूप लगी पानी बना , * हवा चली , तूफ़ान आया , साँसें चली , जीव जगत जागता रहा , * मौसं बदला फूल खिले , मधु माखी ने मधु संचित किये , तितली घूमी -पराग सेचन हुआ , बीज बने , बीज गला , जमीन में अंकुरण हुआ ....किं बहुना ??? सारे जड़ -चेतन , फ्लोरा-फैना , प्रकाश , उर्जायें सब काम पर हैं , और सभी , पूरा अस्तित्व हमसे जुड़ा है और सभी के कर्म /एक्शन एक दुसरे को अपने अपने ढंग और क्षमता के अनुसार एक दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं .....यह है कर्म का सम्पूर्ण सिद्धांत , और अब क्यों न कहना ?? किसी को नुक्सान पहुँचाओगे तो तुम अपने नुक्सान से बच नहीं सको गे ....यही हमारा वेदान्त कहता है और यही विज्ञान ....जो अध्यात्म और विज्ञान को दो करके देखते हैं उनकी समझ आधी है , गलत है ....शुद्ध अध्यात्म और सुद्ध विज्ञान एक ही बात कहेंगे ....यही दोनों के शुद्धता की पहचान है ....'' कर्म प्रधान विश्व करि राखा '' मानस में तुलसी दास
एक बहुत भ्रमात्मक समझ है , कर्म के सिद्धांत [थियरी ओव एक्शन ] के विषय में ....लोग सामान्यतया समझते हैं कि मनुष्य जो कर्म करता है उसी के आधार पर उसे फल मिलता है , ऐसा बिलकुल भी नहीं है ....इसे ज़रा ठीक से समझ लें .....सारी श्रृष्टि . अस्तित्व सदैव , प्रतिक्षण कर्म रत है (गीता में कृष्ण ).....देखें , * सोलर सिस्टम के सभी ग्रह अपनी कक्षा में गतिशील है , लगभग ३६५ दिनों में फिर पुराने मौसम , नई दुनिया लेकर आ जाते हैं ...सब कुछ वही पर एकदम नया । * सूरज तपता है , सागर वाष्प बनकर बादल बन उठता है , वर्षा होती है , कुछ पर्वतों के शिखरों पर बर्फ बनी , शेष नदियों में बहकर रास्ते के नगर-गाँव ,देश, भूमि को सींचता , प्यासे की प्यास बुझाता फिर सागर को लौट आता है , ....* तापक्रम बदलता है , पानी जम गया , धूप लगी पानी बना , * हवा चली , तूफ़ान आया , साँसें चली , जीव जगत जागता रहा , * मौसं बदला फूल खिले , मधु माखी ने मधु संचित किये , तितली घूमी -पराग सेचन हुआ , बीज बने , बीज गला , जमीन में अंकुरण हुआ ....किं बहुना ??? सारे जड़ -चेतन , फ्लोरा-फैना , प्रकाश , उर्जायें सब काम पर हैं , और सभी , पूरा अस्तित्व हमसे जुड़ा है और सभी के कर्म /एक्शन एक दुसरे को अपने अपने ढंग और क्षमता के अनुसार एक दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं .....यह है कर्म का सम्पूर्ण सिद्धांत , और अब क्यों न कहना ?? किसी को नुक्सान पहुँचाओगे तो तुम अपने नुक्सान से बच नहीं सको गे ....यही हमारा वेदान्त कहता है और यही विज्ञान ....जो अध्यात्म और विज्ञान को दो करके देखते हैं उनकी समझ आधी है , गलत है ....शुद्ध अध्यात्म और सुद्ध विज्ञान एक ही बात कहेंगे ....यही दोनों के शुद्धता की पहचान है ....'' कर्म प्रधान विश्व करि राखा '' मानस में तुलसी दास