Saturday, February 2, 2013

बिना यात्रा की मंजिल .....

मनुष्य के जीवन का उद्येश्य , जाहिरा , आनंद की   खोज और उसे हासिल करना है .जीवन के हर क्षेत्र  से  , यहाँ तक कि दुखद परस्थितियों में भी आदमी ख़ुशी की तलाश करता है , अपनी नैसर्गिक क्षमताओं को   , बढ़ा कर और विकसित कर  , वह ऐसा कर सकता है ,  बशर्ते  वह  जीवन  के प्रति दृष्टिकोण को सकारात्मकता के शीर्ष तक बदलने की कोशिश करे ।
कहावत है  - '' परमात्मा ने मनुष्य बनाया और मनुष्य ने शहर बनाये ''. वैसे अबतक हमे पक्का मालूम नहीं  -किस शक्ति  ने हमे बनाया और किसलिए  ? फिर भी यह निश्चित मत है कि उसने हमे सृष्टि की सर्वोत्तम कृति के रूप में बनाया और शायद अपने  ही उस रूप में ,  जो सिमित रूप में स्वतंत्र  , पर उस जैसा ही है जो अपनी क्षमता और बुद्धि से खोज कर सके , अपने खुद में सुधार कर सके , रचना और पुनर्रचना कर  सके , सुधारे चीजों को , बदले , अच्छा करे , उन्नत करे अपनी आस पास की चीजों को जो उसकी जिन्दगी को बेहतर करने में उपयोगी हों ....लगता है सारी  पृथ्वी पर जड़  चेतन उसकी जिन्दगी के बेहतरी के लिए , सहयोग के लिए हैं , वह इनका उचित उपयोग कर आनंद भोगे .....
 और भी , मनुष्य , इसके साथ साथ खतरों के खिलाड़ी के रूप में भी समर्थ है , शरारती है , मौके बे-मौके  शांति और सुख  की चाह  है  उसे  , वहीँ अक्सर उसने  खतरे के साथ खेलना और चुनौतियों से आनंद लेना सीख लिया है , खास कर जब वह खाली  वक्त या  फुर्सत में हो , उसने मधुर और नमकीन के साथ बड़े होने पर लाल मिर्च , काली मिर्च और तीखी , तीती  बस्तुओं  में भी स्वाद लेना सीख लिया है  (  बच्चे तो मीठा , नमकीन दो ही स्वाद जानते हैं ) देखिये ! मौत तो आदमी की सबसे बड़ी शत्रु है .पर वह मौत से भी दो दो हाथ करने , पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ने , समुद्र की गहराई में उतरने और गुब्बारों में उड़ता हुआ , मृत्यु को चुनौती देते आनंद मनाते , खोजता  फिरता है , 
 मैं स्कूल में पढ़ता था , तो मैंने अनगिनत कोशिशें की  , कि स्कूल के पढाई से इतर क्रिया कलापों में भाग लूं पर बेंचों पर ही बैठा रहा  या तो चुना ही नहीं गया ,  मुझे लगता कि मैं रिजेक्टेड , स्टुपिड , अयोग्य  , किसी काम का नहीं , ऐसा ही इस दुनिया में आया था . यही मेरी कम उम्र की नकारात्मक भाव - ग्रन्थि  थी कि मै  किसी काम का नहीं और मेरे पास कुछ नहीं था जिसे दुनिया को दे सकूं , किसी भी सड़क से और शहर से बारह  किलोमीटर दूर , मैंने एक ऐसे स्कूल में पढ़ा जिसकी कक्षाए एक पेड़ की छाया में होती थी , हाय ! मैंने  तो कभी उसी प्राइमरी स्कूल का टीचर होने का सपना भी न देख सका था ....... हममें से बहुत , इसी ढर्रे पर सोचते और जीते रहते हैं  ,कि उनमे कोई टैलेंट नहीं है , कोई गिफ्ट , विशेष योग्यता ,  क्षमता नहीं है ,  ''हे भगवान फिर हम क्या करें '' लेकिन  मैं कहूं   -- हमसे आपसे ज्यादा बौद्धिक  और शारीरिक अपंगता वाले  , बहुत उत्तम ढंग से जिन्दगी से पेश आ रहे है और हमसे ज्यादा खुश हैं , मेरे एक मित्र जो एक बड़े मंदिर के महंथ  हैं , जन्म से अंधे हैं  , मुझे एक बार एक समारोह में मिले ; हमारा एक घंटे की वार्ता / साथ रहा पर जब वे मुझसे 18 साल बाद फिर मिले तो मेरी आवाज़ से पहचान लिया और  मुझे  मेरे पूरे नाम से बुलाया  , मैं  तो स्तब्ध रह गया .....शुरू कीजिये , अपने भीतर खोजिये , क्या है आपके भीतर उसे बढ़ाइए , विकसित ,  डेवलप करिए , देखिये वह , जो आप में है और आश्चर्य ! आपने उसे कभी देखा ही नहीं  , जाना ही नहीं , .....प्रार्थना करिए , भागिए मत , छोडिये मत , कर्म करिए , लगे रहिये , काम, करने से आदमी अनुभव से सीखता और योग्य होता  जाता है , इतना करिये कि आपमें परमात्मा की जो चिंगारी है वो लौ बन जाये और आप में चमक उठे ......
जो चाँदी  के चम्मच के साथ जन्मते हैं , जो पीएम , सी एम पैदा होते हैं  , मैं  नही जानता -  वे क्या पाते हैं , उन्हों ने तो कोई यात्रा ही नही की , उन्हें क्या पता ऐडवेंचर क्या है , चुनौती क्या है , विपातियों में कैसे आनंदित हुआ जाता है , सफरिंग का मजा क्या और कैसा होता है , वे तो मंजिल पर पैदा हुए मंजिल पर मर  गये  ,,,भला सोचिये बिना यात्रा की कैसी मंजिल होगी ?---नीरस और बेस्वाद ....यात्रा ही नहीं की , तो मंजिल कैसी .?....मुफ्त में पाना और कमाना दोनों अलग चीजें है ...


 

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