Wednesday, June 12, 2013

श्री राम के घर / मंदिर


 पिता दशरथ की आज्ञा से वन में गये श्री राम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पहुंचे और उनसे अपने रहने के लिए उचित स्थान का सुझाव माँगा , वाल्मीकि  ने कहा  - आप मुझसे पूंछते हैं , '' कहाँ रहूँ  ? '' परन्तु मुझे आपसे पूछ्ते संकोच हो रहा है कि आप कहाँ नहीं हैं , वह जगह बताइये ? इस पर श्री   राम भी संकोच सहित मुस्कराने लगे ................फिर महर्षि बोले ,सुनिए ! आपके घर /निवास बताता हूँ ....जिनके कान आपकी कथा सुनने के लिए सागर के समान हैं , कभी आपकी कथा रुपी नदियों से भरते नहीं , उनके ह्रदय-घर आपके लिए खाली हैं , जो चातक हैं और आपके दर्शन -जल कण के प्यासे हैं , जो आपके गुणों का यशोगान करते थकते नहीं , जो आपको धन्यवाद कर के भोजन वस्त्र ग्रहण करते हैं ,जो विनयी हैं और अपने से योग्य और बड़ों का सम्मान करते हैं , जो केवल आपके भरोसे ही अनन्यता से रहते हैं , जिनके तीर्थ आपके चरण ही हैं , जो आपको और आपके गुणों को स्मरण रखते हैं , जो काम , विषय भोग ,क्रोध , मोह , लोभ , क्षोभ , राग , द्रोह और अहंकार से मुक्त हैं , जिनमे न कपट है , न दंभ , सबको प्रिय और सबका सदा हित चाहने,करने वाले हैं , दुःख , सुख , प्रशंसा और अपमान में एक समान रहते हैं , सोच कर सत्य और प्रिय वचन ही बोलते हैं , जागते ,सोते आपकी शरण में रहते हैं , केवल आपके भरोसे ......जो अपनी पत्नी के अलावां हर महिला को माता-तुल्य देखते -जानते -मानते हैं और दूसरे के धन को विष से भी खतरनाक समझते हैं , जो दूसरे की सम्पन्नता /धन को देख कर प्रसन्न होते और दूसरों की विपत्ति में दुखी होते हैं ......जो आपको ही अपना माता-पिता , गुरु -सखा सब कुछ मानते हैं  , जो दूसरों के दुर्गुणों पर ध्यान न देते हैं पर उनके गुणों को ग्रहण कर लेते हैं , जो जाति -पांति , गुण -धर्म , धन और बड़प्पन को महत्व न देकर आपको ही मानते हैं , मन , वचन और कर्म से आपके भक्त हैं ....इन सब के ह्रदय आपके रहने-काबिल हैं यहीं रहें ..............और फिर भौतिक रूप से चित्रकूट में निवास करने की सलाह दी .

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