उपभोक्ता , उपभोग और पदार्थ मूल्य
1 - कुछ चीजों का मूल्य इस लिए बहुत अधिक है , उनकी उपलबध्ता कम है , जितनी कम उपलब्धता उतना ज्यादा मूल्य , यथा सोना ,हीरा , मोती , मानिक आदि आदि
2 - कुछ का मूल्य उपभोक्ता के उपभोग पर निर्भर है , यथा आभूषण न पहनने पर सोना-हीरा रत्नों का मूल्य . सिनेमा न देखने पर हीरो हिरोइन का मूल्य , तम्बाकू शराब , नशे के पदार्थों के न सेवन पर उनसे बने पदार्थों का मूल्य , प्रसाधनो जैसे तेल साबुन , सीसा कंघी , स्नो -पाउडर , इत्र आदि का मूल्य ऐसे उपभोक्ता के लिए शून्य हो गया.....इस तरह हम अनावश्यक पदार्थों का त्याग कर सरलता से उनका मूल्य ख़तम कर सकते हैं और त्याग - भोग का सुख - आनंद ले सकते हैं
3 - कुछ चीजो का मूल्य जीवन की अनिवार्य आवश्कताओं की वजह से है , जैसे - हवा , पानी , भोजन और छाया /छत [ परन्तु प्रकृति -बुद्धि ने इसे जो जितना अनिवार्य है उसे उतना अधिक देकर हमें उपकृत किया है , नाक के पास हवा , थोड़ी दूर या गहराई पर पानी और थोड़े परिश्रम से भोजन और निवास ] पर हम इनका मूर्खता पूर्ण दुरुपयोग कर रहे हैं जो कभी हमारे अस्तित्व के लिए ख़तरा हो सकता है , हमे , इन्हें बचाना चाहिए .
अब उपभोग संस्कृति पर दो मत हैं
एक - अधिकाधिक भोग ...जितना अधिक भोग मिलें उतना भोग कर सुख पाना , चार्वाक दर्शन (ऋण ले कर भी घी पीना ) , भोग वादी संस्कृति
दूसरा - जितना जीवन के लिए आवश्यक हो , कम से कम भोग करना , इसी में सुख है , वेदांत का संन्यास , जैन , तुलसी और गांधी का अपरिग्रह ( जरूरत से ज्यादा को छोड़ देना , वापस समाज , प्रकृति को देना या लेना ही नहीं ) प्रोफेसर जे के मेहता (इलाहबाद वि वि ) की थियरी ..... '' थ्योरी ऑफ़ वांटलेसनेस ''
हमारा चुनाव आज कल '' अतिअधिक भोग्वादी '' ही है .....
1 - कुछ चीजों का मूल्य इस लिए बहुत अधिक है , उनकी उपलबध्ता कम है , जितनी कम उपलब्धता उतना ज्यादा मूल्य , यथा सोना ,हीरा , मोती , मानिक आदि आदि
2 - कुछ का मूल्य उपभोक्ता के उपभोग पर निर्भर है , यथा आभूषण न पहनने पर सोना-हीरा रत्नों का मूल्य . सिनेमा न देखने पर हीरो हिरोइन का मूल्य , तम्बाकू शराब , नशे के पदार्थों के न सेवन पर उनसे बने पदार्थों का मूल्य , प्रसाधनो जैसे तेल साबुन , सीसा कंघी , स्नो -पाउडर , इत्र आदि का मूल्य ऐसे उपभोक्ता के लिए शून्य हो गया.....इस तरह हम अनावश्यक पदार्थों का त्याग कर सरलता से उनका मूल्य ख़तम कर सकते हैं और त्याग - भोग का सुख - आनंद ले सकते हैं
3 - कुछ चीजो का मूल्य जीवन की अनिवार्य आवश्कताओं की वजह से है , जैसे - हवा , पानी , भोजन और छाया /छत [ परन्तु प्रकृति -बुद्धि ने इसे जो जितना अनिवार्य है उसे उतना अधिक देकर हमें उपकृत किया है , नाक के पास हवा , थोड़ी दूर या गहराई पर पानी और थोड़े परिश्रम से भोजन और निवास ] पर हम इनका मूर्खता पूर्ण दुरुपयोग कर रहे हैं जो कभी हमारे अस्तित्व के लिए ख़तरा हो सकता है , हमे , इन्हें बचाना चाहिए .
अब उपभोग संस्कृति पर दो मत हैं
एक - अधिकाधिक भोग ...जितना अधिक भोग मिलें उतना भोग कर सुख पाना , चार्वाक दर्शन (ऋण ले कर भी घी पीना ) , भोग वादी संस्कृति
दूसरा - जितना जीवन के लिए आवश्यक हो , कम से कम भोग करना , इसी में सुख है , वेदांत का संन्यास , जैन , तुलसी और गांधी का अपरिग्रह ( जरूरत से ज्यादा को छोड़ देना , वापस समाज , प्रकृति को देना या लेना ही नहीं ) प्रोफेसर जे के मेहता (इलाहबाद वि वि ) की थियरी ..... '' थ्योरी ऑफ़ वांटलेसनेस ''
हमारा चुनाव आज कल '' अतिअधिक भोग्वादी '' ही है .....
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