Wednesday, September 5, 2012

CRITICISM

 राधा कृष्णन जी की याद में .......
दो  सीखें ...... पहली बात , * टच - स्टोन मेथड .....जब मै हाई स्कूल इंटर में पढ़ता था , छोटी छोटी कवितायें लिखता और सोचता बड़ा होकर कवि  बनूंगा . एम् .ए अंग्रेजी में मुझे अर्नोल्ड का एक तरीका  पसंद आ गया कि किसी कविता कि गुणवत्ता जांचनी हो तो तो एक काम करो  - अपनी कविता को किसी बड़े कवि  जैसे कालिदास , ब्यास , वाल्मीकि , तुलसी , कबीर , प्रसाद , के दो एक लाइनों से मिलाओ  ( उसने अंग्रेजी कवियोँ का नाम लिखा है ) अगर तुम्हारी कविता उस जोड़ ,  स्तर की हो तो लिखो और समझो तुम कवि हो . उसी दिन से मेरी कविता लिखने और कवि बनने की बात खतम हो गयी , मैं कविता लिखता , मिलाता और फाड़ कर फेंक देता ...सो कवि बनने का सपना धुल गया (हाँ कुछ इधर उधर की तुकबंदी कर लेता हूँ )
दूसरी बात सीखी राधाकृष्णन जी से ......(आज भी मेरे बहुत मित्र , शुभ चिन्तक कहते हैं - सर ! किताब क्यों नहीं लिखते आप ? )....तो एक बार राधा कृष्णन का इलाहाबाद वि . वि . में आना हुआ , वे भाषण के बाद सवालों का जबाब देते थे ....सो एक छात्र ने सवाल किया , सर ! आप हमेशा , वेद , उपनिषद और महान लेखकों , कवियों के कोट्स /उद्धरण ही देते हैं , कुछ अपनी बात नहीं कहते , तो राधा कृष्णन ने संस्कृत का एक और कोट कहा  जिसका अर्थ है = हमारे ग्रंथों , लेखकों , कवियों और चिंतकों ने जीवन -दर्शन और नैतिक जीवन तथा सत्य/ईश्वर के बारे में इतना उन्नत लिख दिया है कि और कुछ नया लिखने की जरूरत नहीं है,विकल्प /संभावना भी नहीं दिखती  , पर जो लिखा गया है उसे ही समझ लेने और जीवन में जितना हो सके उतारने की जरूरत है .( सो .....मैं , जो लिखा है उसे ही पढने और समझने , लागू करने में लगा हूँ , अब उपनिषदों से अच्छा लिखूं , तो जरूर लिखूं , सो किताब लिखने का कोई इरादा भी नहीं रहा ) {विज्ञानं और लाइफ साइंस के खोजों पर यह कथन लागू नहीं , और मेरा यह क्षेत्र नहीं है , सो इस क्षेत्र में लोग खोजें और जरूर लिखें या फिर साहित्य के क्षेत्र में कोई बड़ी लकीर खींचें }
*Matthew Arnold’s ( अ विक्टोरियन क्रिटिक ) touchstone method is a comparative method of criticism. According to this method, in order to judge a poet's work properly, a critic should compare it to passages taken from works of great masters of poetry, and that these passages should be applied as touchstones to other poetry. Even a single line or selected quotation will serve the purpose. If the other work moves us in the same way as these lines and expressions do, then it is really a great work, otherwise not.....आज कल प्रायः लोग पैसे वाले ,भ्रष्टाचार से धन कमाए हुए , पदों वाले , कि वे बड़े विद्वान् और ऋषि जैसे हैं ,  न कि ऐरू -गेरू , और कुछ कवि ,लेखक ऐसा होने की लालच में कुछ खाद गोबर लिख कर छपवा लेते हैं और सबको बांटते हैं कि देखो मैं लेखक /कवि हूँ , उन्हें कोई पढ़ता नहीं , मेरे पास ऐसी पचासों पुस्तकें पड़ी हैं , जो मेरे बच्चे कभी रद्दी में बेचेंगे , ऐसी कविताएँ और लेख , नावेल , मैं तो रोज  कहता रहूँ , लोग लिख लें , पर क्या फायदा ? अर्नोल्ड और राधा कृष्णन लिखने की अनुमति नहीं देते .....मैं तो पढने में संतुष्ट और आनंदित हूँ .

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