आप क्या प्राप्त करते हैं ,यह महत्वपूर्ण नहीं है अपितु आप की पात्रता क्या है यह माने रखता है । जो पात्र हैं उन्हें उसके अनुसार मिलना चाहिए .अतः पात्र बनने की कोशिश करनी होगी .औपचारिक विदया से पात्रता ही प्राप्त होती है । कहा है ,"विद्दया ददाति विनयं विनयाद पात्रताम"। फ़िर पता चला , पात्रता विनम्रता में है । अतः विनयी बनो । एक उदहारण --सागर सबसे विनयी है सो पृथ्वी पर जो सबसे नीचे जगह थी वहां जाकर बैठ गया और देखिये किस तरह सबसे संपन्न हो गया । आप के मन में सवाल आता होगा ,नहीं हिमालय तो सबसे ऊँचा है ,नहीं मित्र ! हिमालय की सबसे ऊँची चोटियों पर सागर ही लहराता है वर्फ के रूप में । नीचे भी उपर भी और बीच में भी । " नीचे जल है ,उपर हिम है ,एक तरल है ,एक सघन । एक तत्व की है प्रधानता "
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