Sunday, June 14, 2009

जीवन - दर्शन ...एक दृष्टि

सारा अस्तित्व विश्व आत्मा है । वह सत्य , चेतन और आनंदमय है । सारा जो कुछ है ,उसी का विवर्त (बदला हुआ , परिवर्तित रूप ) है । हम उसी के अंश हैं । जीवों में सर्वोत्तम । उदहारण (केवल इशारा ) वह सागर , हम एक जल-कण । सागर और सूर्य भी उसके छोटे कण हैं । उसे हम मानवीकरण के द्वारा ईश्वर कहते हैं , वस्तुतः वह मनुष्य , ऐसा नही है । सब कुछ तो वही है । वह सबसे बड़ा और सबसे छोटा है , सो इसी से ईश्वर कहा गया , ऐसा कोई दूसरा नही । चर-अचर , जड़ - जीव सब वही है । हम भी वही , तुम भी वही , यह सारा जगत भी वही है एक अंश के रूप में , पूरा नही । सत्य ईश्वर और ईश्वर सत्य है ।
हमें जो जीवन मिला है , जो देश मिला है , जो परिवार मिला है , जो समाज मिला है , जो शरीर , मन , आत्मा बुद्धि ,योग्यता , क्षमता , विशेषता जन्म होते ही प्राप्त हुई , वह हमारा चुनाव नही है । यही भाग्य है । जन्म के बाद सम्हल कर , सीख कर , परिश्रम से , स्वाध्याय से जो प्राप्त करते है , वह हमारा अर्जन / कमाई है । अर्जन करने की सीमा ; भाग्य से सिमित और कर्म से असीमित है । अतः भाग्य को भूल कर कर्म करना चाहिए ।
भाग्य और कर्म से जो हमें प्राप्त है उसका सौ वर्ष जीने की इक्षा के साथ सम्यक और उचित उपभोग करना चाहिए । हमें उस मार्ग से चलना चाहिए , जिस पर सिद्ध , महापुरुष चलते आए है और उससे भी आगे जाने का प्रयास करना चाहिए । यह हमारा जीवन और संसार हमें भोग के लिए किंचित उपलब्ध हुआ है । परन्तु भोग भोगते यह ध्यान हो कि दूसरे के भोग में कोई भी बाधा न करें ।
लालच का निषेध है ; इर्ष्या का निषेध है ; द्वेष का निषेध है ; हिंसा का निषेध है । हमारे भोग में ये सभी नही आने चाहिए । चोरी और संग्रह का भी निषेध है । अपने आवश्यकता से दस गुने से ज्यादा का संग्रह पाप है ।
अहिंसा वेदोक्त परम धर्म है । परोपकार ही पुण्य है । दूसरे को पीड़ा पहुंचाना नीचता है । दूसरे की निंदा महा पाप है । नियत कर्म करना परम करणीय / कर्तब्य है । नियत कर्म को अपनी पूरी कुशलता से संपादित करना ही श्रेष्ट योग और परम मोक्ष का मार्ग है ।
क्षमा , दया , करुना , सहनशीलता , सहयोग , अमित्र को भी मित्र बनाने का प्रयास , प्रकृति के सभी पदार्थों का रक्षण , किसी जीवजन्तु , पत्ती-फूल को नुकसान न पहुंचाना उत्तम पुरूष के आभूषण है ; सद्गुण हैं ।
सबके प्रति समान रूप से , यथोचित , स्नेह , श्रद्घा और करुणा , पारिवारिक संबंधों का निर्वहन , सामाजिक नियमों का पालन , कानून का आदर और राष्ट्र के प्रति सम्मान नैतिक जीवन का मूल है ।
उच्च विचार, न कि संकीर्णता , अपना स्वाभिमान और दूसरे का सम्मान , अपने को जो प्रिय न हो वह दूसरे के साथ न करना , जीवन के सद्गुणों के प्रति सदा जागरूकता , सीधा -सच्चा -सरल -सुंदर जीवन यापन और सभी के प्रति सदैव , सर्वत्र , सर्व प्रकार की सद्भावना यही सुख का द्वार है । जो हमें ईश्वर कृपा से - धन ,बल , विद्या , ज्ञान , वैभव , बुद्धि , विवेक प्राप्त है और जो उसी के द्वारा अर्जित किया है ; उन लोगों में बांटने की भावना से , जिनमें हमसे कम है , सदा , सर्वदा तत्पर रहना चाहिए । '' सर्वे सन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामया .......॥'' यही भारतीय जीवन दृष्टि है , दर्शन है , कला है , विज्ञानं है । -'' सियाराम मय सब जग जानी । करहुं प्रनाम जोरी जग पानी ॥'' और - '' बिन संतोस न काम नसाहीं । काम अछत सुख सपनेहु नाहीं ॥ कोऊ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिन । जल बिनु चलै कि नाव कोटि जतन पचि पचि मरिय ॥ गोस्वामी तुलसीदास राम चरित मानस में ।

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