गोस्वामी तुलसी दास कृत राम चरित मानस में श्री राम - सुग्रीव संबाद के द्वारा श्री राम ने मित्र के गुण दोषों का संक्षेप में वर्णन किया है , कृपया देखें : --
'' जो लोग मित्र के दुःख में दुखी नही होते , उन्हें तो देखने मात्र से पाप लगता है । अच्छे मित्र स्वयं के पर्वत समान दुःख को धूल के समान और मित्र के धूल समान दुःख को सुमेरु पर्वत के समान देखता है ।
जिन्हें स्वभाव से ही इस प्रकार की समझ नही है वे मुर्ख / दुष्ट भला हठ करके मित्रता करते ही क्यों हैं । अच्छा मित्र तो अपने मित्र को कुपथ अर्थात कुमार्ग / बुराई से हटाकर अच्छे मार्ग पर / सदमार्ग पर ले जाता है ; सदैव अपने मित्र के गुणों को प्रकट करता और अवगुणों को छिपाकर उन्हें दूर करने / सुधारने का प्रयास करता है ।
लेन - देन में शंका और संदेह नही करता और आवश्यकता पड़ने पर मित्र की सहायता अपनी पूरी सामर्थ्य से करने को तैयार रहता है । क्षमतानुसार यथोचित सहायता करता है । वेद और संतों का यह सुविचारित मत है कि मित्र का गुण तो यही है कि वह विपत्ति कल में अपने मित्र को सौ गुणा ज्यादा प्रेम करे ।
जो सामने तो कपटपूर्ण मीठी बातें बना बना कर कहता हो और पीठ पीछे अहित और कुटिलता का आचरण करता हो ; उसका चरित्र तो सांप कि तरह टेढा है (अविश्वसनीय ) । हे भाई ! ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है । ( ऐसा मित्र , मित्र के रूप में अमित्र /कुमित्र / दुशमन ही है .)
दुष्ट /मूर्ख सेवक , कृपण राजा , प्रतिकूल पत्नी और कपटी मित्र ऐ सभी सदा सदा कांटे कि तरह चुभते ही रहते हैं । ------- राम चरित मानस - किष्किन्धा कांड छठें दोहे के बाद । ( कृपया मूल राम चरित मानस पढ़ें )
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