गाँधी के राम राज्य की अवधारणा तुलसी कृत राम चरित मानस से ली गई है जिसका सार इस बात में निहित है कि राजा को एक न्याय प्रिय , चरित्रवान , प्रजा को अपने प्राणों से भी प्रिय मानने वाला और नैतिक होना चाहिए । जिस राजा की प्रजा को दुःख हो वह निश्चित रूप से अयोग्य और दंड पाने का पात्र है। अच्छे राज -काज और प्रजा के सुख के लिए राजा को पुरुषोत्तम होना ही चाहिए , तब सब कुछ ठीक ही होगा ।
राम राज्य में आपस में लोग वैर नही करते ; सभी कर्तब्य - परायण हैं ; अपना अपना नियत काम करते हैं । किसी को दैहिक , दैविक और भौतिक पीड़ा नही है । सभी स्वधर्म , परस्पर प्रीति , वेद और नीति रत हैं , अल्प -आयु में किसी की मृत्यु नही होती , सभी सुंदर , स्वस्थ्य और सुखी हैं । कोई भी दरिद्र , दीन और दुखी नही है ।नर-नारी सभी लोग गुणी , चतुर , विनम्र , ज्ञानी और कर्म - कुशल हैं ; सभी कृतज्ञ हैं चतुर -कपटी नही हैं । राम राज की सुख -संपदा अवर्णनीय है । सभी नर-नारी उदार , परोपकारी ; पुरूष एकपत्नी -व्रती और स्त्रियाँ मन वचन और कर्म से पति - हितकारी हैं ।
श्री राम चन्द्र के राज्य में ' दंड ' नाम की चीज अगर कहीं है तो केवल सन्यासियों के हाथ में और ' भेद ' केवल नृत्य -समाज में ही देखा जाता है । ' जीतो ' शब्द का प्रयोग केवल मन को जीतने के लिए ही किया जाता है ।
फसलें अच्छी होती हैं क्योंकि समय पर वर्षा और धूप होती है । कोई प्राकृतिक आपदा जैसे सूखा , बाढ़ , तूफान और भूचाल आदि कभी नही आते । सभी नदी , पहाड़ , वन , खान सम्पदा आदि आदि अनुकूल ही रहते हैं , सो सभी सुखी , संपन्न और राम भक्त हैं ।
इस प्रकरण में इस बात पर जोर दिया है कि यथा राजा तथा प्रजा । राजा के गुण उसी रूप में प्रजा तक प्रर्दशित होते हैं । पातंजल योग दर्शन भी इस सिद्धांत का प्रतिपादन करता है ।
----राम चरित मानस के उत्तर कांड में वर्णित राम राज्य पर आधारित ।
कृपया तुलसी दास कृत '' राम चरित मानस '' पढ़ें ।
2 comments:
if all people perform their assigned work dutifully with no malice to others RAM RAJYA wiLL prevail.Another great article eक्ष्pressed in simple and proper way.it is your great contribution in making comleक्ष् things easier to understand. regards.
kash ki apane jeevan me ram rajay dekhane ko mile. kuch jankari dete rahne ke liye aapko dhanyavad
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