Thursday, July 24, 2014

न्याय के लिए चालीस तो क्या मैं अकेला बहुत हूँ !!!


गांधीजी द० अफ्रीका  फिनिक्स-आश्रम में रहते थे | अंतिम संघर्ष होनेवाला ही था तभी एक रात को प्रार्थना के बाद उनके एक साथी रावजी- भाई मणिभाई पटेल ने कहा,"बापूजी डरबन में आज मैं खूब घूमा, परन्तु सत्याग्रह के बारें में मुझे कोई उत्साह नहीं दिखाई दिया | बहुत से लोग कहते हैं - गांधीभाई व्यर्थ ही पेट दबाकर दर्द पैदा कर रहे हैं | यदि हम गोरों के साथ संघर्ष करेंगे तो वे हमें और भी दुख देंगे , आज जैसी स्थिति है, उसमें रहना ही  अच्छा  होगा? मूंछ नीची रखकर चल लेंगें  , यहां हम रुपया कमाने के लिये आये हैं, बर्बाद होने के लिए नहीं , जेल जाना  तो हम यहां किसलिए आते..?
क्या आपने कभी हिसाब लगाया  कि इतनी बड़ी सरकार से लड़ने के लिए हमारे पास कितने आदमी हैं?" गांधीजी हंसे और बोले, "मैं तो रात-दिन हिसाब लगाता रहता हूँ, फिर भी चाहो तो तुम गिन सकते हो " रावजी ने गिनना शुरु किया संख्या चालीस पर आकर ठहर गई |उन्होंने कहा, "बापूजी ऐसे चालीस व्यक्ति हैं" गम्भीर स्वर में गांधीजी ने पूछा," परन्तु ये चालीस  कैसे हैं? ये चालीस तो ऐसे हैं, जो अन्त तक जूझेंगे  , ये जीकर भी और मरकर भी जीतेंगे ,  तुम देख लेना, चालीस योद्धाओं के चालीस हजार हो जायेंगे" यह कहते हुए गांधीजी बहुत ही भावावेश से भर उठे उनके रोंगटे खड़े हो गये उसी स्वर में वह फिर बोले, "ये चालीस भी न हों तो मैं अकेला ही गोखले के अपमान का बदला लेने को काफी हूँ कितनी ही बड़ी सल्तनत क्यों न हो, गोखले के साथ विश्वासघात करनेवाले के विरुद्ध मैं अकेला ही संघर्ष करुंगा जबतक गोखले को दिया वचन पूरा नहीं किया जाता, तबतक पागल बनकर मैं गोरों से उनके अन्याय के खिलाफ लड़ूंगा और देखते रहो  जीतूंगा भी मैं ही !!!

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