Monday, March 2, 2009

सत्याग्रह और अहिंसा

एक मित्र ने पूछा है , गाँधी एक तरफ़ तो मारने वाले के सामने दूसरा गाल करने को कहते हैं ; दूसरी तरफ़ कहते हैं अत्याचार मत सहो ; विरोध दिखता है दोनों कथनों में विरोध नहीं है पहली बात - दूसरे गाल वाली बात गाँधी की नहीं बाइबिल में जीसस की है परन्तु गाँधी इसे अपना आदर्श मानते हैं दूसरा गाल सामने करने की बात कमजोरी की बात नही है , हिम्मत की बात है , मजबूती की बात है अगर आपको कोई थप्पड़ मारे तो आपका भी थप्पड़ मारना हिंसा है और गाँधी का मत हिंसा है नही गाँधी का एक बहुत बड़ा मत है कि आदमी में चाहे जितने दुर्गुण हों पर एक गुण तो जरुर है , वह कि , उसके भीतर एक आदमी है , और शायद जब वह आपको थप्पड़ मारे तो दूसरे गाल को उसके सामने करने पर उसके भीतर का आदमी जग जाय , उसको अपनी गलती का आभास हो जाय , संभावना है , कोई पक्का नही है , संभावना है और इतना काफी है सफल होने के लिए , लेकिन यदि आप भी थप्पड़ ही मारते हैं तो हिंसा हो जायेगी हिंसा केवल कायर करते हैं अतः हिंसा नहीं करना है दूसरा गाल करना उसके सामने , तीन बातें साफ करता है - हमको हिंसा नही करना हिंसा के बदले में - हिंसा का सामना अहिंसा से करना (दूसरा गाल सामने करना ) आपकी हिम्मत और धैर्य का प्रतीक है , कमजोरी का कत्तई नही - तीसरा यह कि संभावना है वह आदमी सुधर जाय , उसके भतार का आदमी जग जाय ऐसा बहुत बार हुआ है , जैसे अंगुलिमाल के साथ भगवान बुद्ध ने किया और वह बड़ा संत हो गया
जो बात अत्याचार सहने की है वह है , - सत्याग्रह सत्याग्रह का अर्थ है - हिंसा का उत्तर हिंसा से नही दें परन्तु जो आपको सही लगता है उसका पक्ष छोडें , उस पर अड़े रहें और हिंसा को छोड़कर अन्य अहिंसक तरीकों से अपना विरोध जारी रखें और संघर्ष करें इस प्रकार के उपाय समय , परिस्थिति और समस्या के अनुसार निर्धारित करने होंगे इसे अहिंसक लड़ाई कहते हैं , इसके अनेकों उदहारण भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में मिलते हैं गाँधी दर्शन को ठीक से समझ लेने पर यह आसान हो जाता है कृपया गाँधी की आत्म कथा , - सत्य के साथ प्रयोग पढ़ें
एक बात और ठीक से समझ लें , - अत्याचार करना कायरता है , अत्याचार का बदला अत्याचार से देना ठीक नही , तुलसीदास जी ने कहा - मल कि जाहिं मलहि के धोये , अर्थात मल से मल साफ नही हो सकता ,साबुन से साफ होता है सो हिंसा से हिंसा और वैर से वैर नहीं ख़तम हो सकता अमित्र से मित्रता हमारा आदर्श है जो हिंसक होते है ,मनोविज्ञान कहता है - वे डरपोक और कायर होते है जो ताकतवर और हिम्मती होता है वह निडर और निर्भय होता है जो अस्त्र शस्त्र रखते हैं वे जाहिरन डरे हुए लोग होते हैं
अंत में एक बात और कहना चाहता हूँ - किसी धर्म , सिद्धांत , महापुरुष के सम्बन्ध में जितना संदेह और जिज्ञासा करेंगे उतना ही आप उन्हें ठीक से समझ लेंगे और ठीक से समझ लेने पर कहीं भी विरोध है , ऐसा नही मालूम होगा वैसे गाँधी दर्शन कोई नई विधि नही है , गाँधी जी ने भारतीय दर्शन का एक प्रयोग भारत को आजाद कराने में किया और वह सफल रहा और सारी दुनिया ने उसे स्वीकार कर लिया है जिज्ञासा प्रकट करने हेतु सधुबाद के साथ . ग़लत बात नहीं सहना , उसका विरोध करना परन्तु इस विरोध में हिंसा शामिल हो ,बस अहिंसा के साथ सत्याग्रह एक बात और , गाँधी जी कहते है , - कायरता से हिंसा श्रेष्ट है अहिंसा के जब सभी विकल्प असफल हो जायं तो भी अत्याचार और अन्याय रुके तो अन्तिम विकल्प के रूप में अन्याय से लड़ने हेतु हिंसा एक विकल्प हो सकती है महा भारत में यही प्रयोग कृष्ण ने किया था गीता गाँधी का आदर्श है

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