एक मित्र ने पूछा है , गाँधी एक तरफ़ तो मारने वाले के सामने दूसरा गाल करने को कहते हैं ; दूसरी तरफ़ कहते हैं अत्याचार मत सहो ; विरोध दिखता है दोनों कथनों में । विरोध नहीं है । पहली बात - दूसरे गाल वाली बात गाँधी की नहीं बाइबिल में जीसस की है । परन्तु गाँधी इसे अपना आदर्श मानते हैं । दूसरा गाल सामने करने की बात कमजोरी की बात नही है , हिम्मत की बात है , मजबूती की बात है । अगर आपको कोई थप्पड़ मारे तो आपका भी थप्पड़ मारना हिंसा है और गाँधी का मत हिंसा है नही । गाँधी का एक बहुत बड़ा मत है कि आदमी में चाहे जितने दुर्गुण हों पर एक गुण तो जरुर है , वह कि , उसके भीतर एक आदमी है , और शायद जब वह आपको थप्पड़ मारे तो दूसरे गाल को उसके सामने करने पर उसके भीतर का आदमी जग जाय , उसको अपनी गलती का आभास हो जाय , संभावना है , कोई पक्का नही है , संभावना है और इतना काफी है सफल होने के लिए , लेकिन यदि आप भी थप्पड़ ही मारते हैं तो हिंसा हो जायेगी । हिंसा केवल कायर करते हैं । अतः हिंसा नहीं करना है । दूसरा गाल करना उसके सामने , तीन बातें साफ करता है १- हमको हिंसा नही करना हिंसा के बदले में । २- हिंसा का सामना अहिंसा से करना (दूसरा गाल सामने करना ) आपकी हिम्मत और धैर्य का प्रतीक है , कमजोरी का कत्तई नही । ३ - तीसरा यह कि संभावना है वह आदमी सुधर जाय , उसके भतार का आदमी जग जाय । ऐसा बहुत बार हुआ है , जैसे अंगुलिमाल के साथ भगवान बुद्ध ने किया और वह बड़ा संत हो गया ।
जो बात अत्याचार न सहने की है वह है , - सत्याग्रह । सत्याग्रह का अर्थ है - हिंसा का उत्तर हिंसा से नही दें परन्तु जो आपको सही लगता है उसका पक्ष न छोडें , उस पर अड़े रहें और हिंसा को छोड़कर अन्य अहिंसक तरीकों से अपना विरोध जारी रखें और संघर्ष करें । इस प्रकार के उपाय समय , परिस्थिति और समस्या के अनुसार निर्धारित करने होंगे । इसे अहिंसक लड़ाई कहते हैं , इसके अनेकों उदहारण भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में मिलते हैं । गाँधी दर्शन को ठीक से समझ लेने पर यह आसान हो जाता है । कृपया गाँधी की आत्म कथा , - सत्य के साथ प्रयोग पढ़ें ।
एक बात और ठीक से समझ लें , - अत्याचार करना कायरता है , अत्याचार का बदला अत्याचार से देना ठीक नही , तुलसीदास जी ने कहा - मल कि जाहिं मलहि के धोये , अर्थात मल से मल साफ नही हो सकता ,साबुन से साफ होता है । सो हिंसा से हिंसा और वैर से वैर नहीं ख़तम हो सकता । अमित्र से मित्रता हमारा आदर्श है । जो हिंसक होते है ,मनोविज्ञान कहता है - वे डरपोक और कायर होते है । जो ताकतवर और हिम्मती होता है वह निडर और निर्भय होता है । जो अस्त्र शस्त्र रखते हैं वे जाहिरन डरे हुए लोग होते हैं ।
अंत में एक बात और कहना चाहता हूँ - किसी धर्म , सिद्धांत , महापुरुष के सम्बन्ध में जितना संदेह और जिज्ञासा करेंगे उतना ही आप उन्हें ठीक से समझ लेंगे और ठीक से समझ लेने पर कहीं भी विरोध है , ऐसा नही मालूम होगा । वैसे गाँधी दर्शन कोई नई विधि नही है , गाँधी जी ने भारतीय दर्शन का एक प्रयोग भारत को आजाद कराने में किया और वह सफल रहा और सारी दुनिया ने उसे स्वीकार कर लिया है । जिज्ञासा प्रकट करने हेतु सधुबाद के साथ . ग़लत बात नहीं सहना , उसका विरोध करना परन्तु इस विरोध में हिंसा शामिल न हो ,बस । अहिंसा के साथ सत्याग्रह । एक बात और , गाँधी जी कहते है , - कायरता से हिंसा श्रेष्ट है । अहिंसा के जब सभी विकल्प असफल हो जायं तो भी अत्याचार और अन्याय न रुके तो अन्तिम विकल्प के रूप में अन्याय से लड़ने हेतु हिंसा एक विकल्प हो सकती है । महा भारत में यही प्रयोग कृष्ण ने किया था । गीता गाँधी का आदर्श है ।
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