Thursday, March 12, 2009

सात्विक यज्ञ

महाबीर ( श्री हरि /राम /गाड /खुदा ) की आराधना करिए जिससे सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है । सर्व विदित सत्य है कि राम नाम से सभी मनोरथ पूरे हो जाते हैं । देर न करिए , शीघ्र ही यह उपदेश मान कर बीज महामंत्र जपिए जिसका जप कर के शंकर ने विषपान कर लिया । यही महायज्ञ है - प्रेम के जल से तर्पण करिए , सहज- सनेह का घृत डालिए , शंकाओं कि लकड़ी की समिधा बनाइये और क्षमा की अग्नि में स्वाहा करिए , ममता की बलि दीजिये , पापों का उच्चाटन करिए जिससे मन वश में हो और अहंकार तथा काम को मारा जा सके । इस प्रकार यज्ञ द्वारा संतोष- विचार रूपी सुख- सम्पदा को आकर्षित करिए । जिन्हों ने भी इस प्रकार भजन किया उनको ही श्री राम का साक्षात्कार हुआ । मैं (तुलसी दास ) भी इसी मार्ग पर चढ़ गया हूँ , यदि उनकी कृपा से निर्वहन कर सका ।

बीर महा अवराधिये , साधे सिधि होय । सकल काम पूरन करै ,जाने सब कोय ।।
बेगि , बिलम्ब न कीजिये लीजै उपदेस । बीज महामंत्र जपिए सोई , जो जपत महेस ॥
प्रेम-बारि-तरपन भलो , घृत सहज सनेहु । संसय- समिध ,अगिनि क्षमा , ममता बलि देहु ॥
अघ- उचाटि , मन बस करै , मारे मद मार । आकर्शै सुख -सम्पदा -संतोस- बिचार ॥
जिन्ह यहि भांति भजन कियो , मिले रघुपति ताहि । तुलसिदास प्रभु पथ चढ्यो , जौ लेहु निबाहि ॥
---विनय -पत्रिका /१०८ /

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