हारे थके मुसाफिर के चरणों को धोकर पी लेने से ,
अक्सर मैंने यह देखा है मेरी थकन उतर जाती है ।
कोई ठोकर लगी अचानक , जब जब चला सावधानी से ,
पर मंजिल तक पहुँच गया हूँ ,भूले भटके आसानी से ।
पीड़ामय अधरों पर कोई , अपनी मुरली रख देने से ,
अक्सर मैंने यह देखा है , मेरी पीड़ा मर जाती है । ........हारे ....
प्यासे अधरों को बिन परसे , पुण्य नही मिलता पानी को ,
याचक का आशीष लिए बिन , स्वर्ग नही मिलता दानी को।
अपनी प्यास भुलाकर , कोई रीती गागर भर देने से ,
अक्सर मैंने यह देखा है , मेरी गागर भर जाती है । .........हारे .....
पथ के काँटों को बुहारना , चलने से भी कम बड़ा है ,
स्नेह दिए में भरते रहना , जलने से भी काम बड़ा है ।
आपदग्रस्त किसी नाविक को , निज पतवार थमा देने से ,
अक्सर मैंने यह देखा है , मेरी नौका तीर जाती है । .............हारे ....
लालच दिया मुक्ति का जिसने , वह ईश्वर पूजना नहीं है
बन कर वेदमंत्र-सा मुझको , मंदिर में गूँजना नहीं है
जों दरिद्र हैं ,भूखे , नंगे , उनकी थोड़ी सी सेवा से
मैंने अक्सर यह देखा है , मेरी मुक्ति संवर जाती है ..............हारे......
* Ram Awtaar Tyaagi
अक्सर मैंने यह देखा है मेरी थकन उतर जाती है ।
कोई ठोकर लगी अचानक , जब जब चला सावधानी से ,
पर मंजिल तक पहुँच गया हूँ ,भूले भटके आसानी से ।
पीड़ामय अधरों पर कोई , अपनी मुरली रख देने से ,
अक्सर मैंने यह देखा है , मेरी पीड़ा मर जाती है । ........हारे ....
प्यासे अधरों को बिन परसे , पुण्य नही मिलता पानी को ,
याचक का आशीष लिए बिन , स्वर्ग नही मिलता दानी को।
अपनी प्यास भुलाकर , कोई रीती गागर भर देने से ,
अक्सर मैंने यह देखा है , मेरी गागर भर जाती है । .........हारे .....
पथ के काँटों को बुहारना , चलने से भी कम बड़ा है ,
स्नेह दिए में भरते रहना , जलने से भी काम बड़ा है ।
आपदग्रस्त किसी नाविक को , निज पतवार थमा देने से ,
अक्सर मैंने यह देखा है , मेरी नौका तीर जाती है । .............हारे ....
लालच दिया मुक्ति का जिसने , वह ईश्वर पूजना नहीं है
बन कर वेदमंत्र-सा मुझको , मंदिर में गूँजना नहीं है
जों दरिद्र हैं ,भूखे , नंगे , उनकी थोड़ी सी सेवा से
मैंने अक्सर यह देखा है , मेरी मुक्ति संवर जाती है ..............हारे......
* Ram Awtaar Tyaagi
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