'' आदि शक्ति जेहि जग उपजाया '' - राम चरित मानस में तुलसी दास । यह आदि शक्ति ही ब्रह्म , आत्मा , परमात्मा , परम तत्व है । ब्रह्म का मानवीकरण जब पुरूष / पिता के रूप में करते हैं तो वह ईश्वर होता है और जब माता के रूप में तो लक्ष्मी , भवानी , दुर्गा , सीता अर्थात माँ होती है । माता और पिता दोनों दो नही एक ही है - '' गिरा अरथ जल बीचि सम कहियत भिन्न न भिन्न ; बंदौं सीता-राम पद '' बस्तुतः सीता-राम एक ही हैं ; माता-पिता । महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंश में माता और पिता के लिए एक ही शब्द का प्रयोग किया है । '' जगतः पितरौ ''
भारतीय संस्कृति में केवल ( पूरे विश्व में और कहीं भी नही .किसी धर्म जाति , संप्रदाय ,संस्कृति में नही ) '' माता '' को इतना महत्व , महत्ता , आदर , सम्मान ,श्रद्धा और समर्पण दिया और किया गया है जो और किसी को नही । देखिये - सब जगह माता पहले है ; '' मातृ देवो भव , पीतृ देवो भव , आचार्य देवो भव '' - उपनिषद ।
भारत माता /जगती माता ; पृथ्वी माता ; गो माता ; गायत्री माता , गीता माता और पुनः सीता राम ; उमा-शंकर ; लक्ष्मी- नारायण ; गृह -लक्ष्मी (गृह नारायण नही) . वैदिक काल में माँ को ही पूरा , प्रथम स्थान और आदर प्राप्त था , बीच में जब विदेशियों का शासन रहा तो चीजें थोडी बदली । सती प्रथा विदेशी दुराचारियों से औरतों को बचाने के लिए शुरू हुई । मंडन मिश्र की पत्नी , शंकराचार्य और मंडन मिश्र के शास्त्रार्थ में निर्णायक रही । इतिहास में भारत की महिलाओं के ज्ञान , सम्मान , आदर , श्रेष्ठता के अनेकानेक उदहारण हैं , यहाँ विस्तार न कर इंगित किया गया है ।'' जहाँ नारी की पूजा होती है , वहीँ देवता निवास करते हैं '' और पुनः जननी और जन्मभूमि दोनों एक समान ही माँ हैं और दोनों ही स्वर्ग से भी महानतर हैं । ( जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ), मुझे तो नही मालूम कि विश्व के किसी साहित्य अथवा ग्रन्थ में इस प्रकार कि बात लिखी गई हो । ऐसा केवल वेदों और हमारे संस्कृत -ग्रंथों में ही लिखा गया है । मेरा निश्चित मत है कि हमारे क्षात्रों को इंजिनियर , डाक्टर की पढाई के साथ अपने सांस्कृतिक ग्रंथों की कुछ मूल बातों को जानना चाहिए । इन्ही को न जानने से हमरे युवक निराश हताश और दिग् भ्रमित होकर कुंठा के शिकार हो रहे हैं और केवल भौतिकता की चपेट में पड़कर दुखी और निराश हैं । मेरा निश्चित मत है कि जो गीता , रामचरित मानस पढ़ता है वह कभी भी अनैतिक आचरण नही करेगा और हिंसा , चोरी , आत्महत्या और असामाजिक कार्य नही करेगा । हमें उन्नत नारी नही उन्नत माँ चाहिए और भारतीय युवक और भारतीय नागरिक चाहिए जो विश्व का आदर्श और उत्तम नागरिक होने का पथ प्रस्तुत करे । भौतिक उन्नत जीवन और नैतिक आचरण से युक्त सद्गुणी ब्यक्तित्व ।
वेदों , पुरानो , उपनिषदों , आख्यानों में महिलाओं को अत्यन्त सम्मान दिया गया है । खेद है आज हम उन्नत नारी/ एडवांस महिला बनाने पर तुले है न कि उन्नत माँ । नारी जो भी हो , बहन , पत्नी , पुत्री सभी में अंत में और प्रारम्भ में माँ ही होती है । वेदों में कहा - पति - पत्नी संतानों को उत्पन्न करने तक ही पति -पत्नी रहते हैं और संतानोत्पत्ति के बाद दोनों का सम्बन्ध बदल जता है और पत्नी पति की माँ हो जाती है । महिला के मूल में माँ ही है । खेद है हम अपने वैदिक आचार -संहिता से अनभिज्ञ और विरत होकर पश्चिम की रह चल पड़े हैं । हम माँ की पूजा तो करते हैं पर जीवन के ब्यवहार में अन्यथा आचरण करते हुए दिखते हैं । कारण हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे है ।
राम चरित मानस में नारी को अतिअधिक सम्मान दिया गया है , राम ने शबरी को ' भामिनि ' शब्द से संबोधित किया है जो अतिअधिक आदर सूचक है । कुछ लोग कहते हैं कि राम चरित मानस में नारी का सम्मान नही है , वस्तुतः उन्हें संस्कृत भाषा का उचित और पर्याप्त ज्ञान नही है और समझ भी आलोचनात्मक ही है । राम चरित मानस के भोजपुरी शब्द भी संस्कृत से आए हैं सो उनके अर्थ कठिन और प्रासंगिक ही हैं जिन्हें समझना थोड़ा कठिन है ।देखिये - '' माता सम देखहिं परनारी । धन पराव बिस ते बिस भारी ''
अतः आदि शक्ति और ईश्वर दोनों एक ही हैं - माता -पिता ; जिसकी जहाँ भक्ति श्रद्धा हो वहां जाय । कृष्ण की गीता में उद्घोषणा है - '' जिस रूप में , जहाँ भी जाओगे , जैसे भी मिलोगे - मै ही मिलूं गा '' । जगतः पितरौ वंदे ।
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