कोउ कह झूंठ सत्य कह कोऊ जुगल प्रबल कोउ जाने :तुलसिदास जो तजै तिन गुण सो 'आपन ' पहिचानै." -विनय पत्रिका से . अपने को ही जानना है तो यात्रा कैसी ?यात्रा अंतर्मुखी ही होनी चाहिए , बहर तो सब झूंठ -सच का प्रपंच ही है . अपने घर को ही जाना है तो घर के भीतर ही खोज करना है ;बहर की यात्रा करने पर तो अन्यत्र चले जाने अथवा खोने का डर है और जो अपना घर छूट गया तो भटकते ही रहेंगे . अधिकतर यही हो रहा है ,हम मंदिर, मस्जिद और चर्चों में दौड़ रहे और दूसरे संतों ,महंतों में आर्त होकर ब्याकुल हो रहे हैं . " खोजी होय तुरंतै मीलिहों क्षण भर की तालाश में = कहैं कबीर सुनो भाई संतों हर सांसों की साँस में . "
अगर है शौक मिलनेका, तो हरदम लौ लगाता जा ।
जलाकर खुदनुमाईको, भसम तन पर लगाता जा ।।
पकडकर इश्ककी झाडू, सफा कर हिज्र-ऐ दिलको ।
दुईकी धूलको लेकर, मुसल्ले पर उडाता जा ।।
मुसल्ला छोड तसबी तोड, किताबें डाल पानीमें ।
पकड दस्त तू फरिश्तोंका, गुलाम उनका कहाता जा ।।
न मर भूखा, न रख रोजा, न जा मस्जिद, न कर सिजदा ।
वजूका तोड दे कूजा, शराबे-शौक पीता जा ।।
हमेशा खा, हमेशा पी, न गफलतसे रहो इकदम ।
नशेमें सैर कर अपनी, खुदीको तू जलाता जा ।।
न हो मुल्ला, न हो बम्मन, दुईकी छोडकर पूजा ।
हुकम है शाह कलंदरका, ‘ अनलहक ’ तू कहाता जा ।।
कहे मंसूर मस्ताना, हक मैंने दिलमें पहचाना ।
वही मस्तोंका मयखाना, उसीके बीच आता जा ।।
If Thou wouldst see Him with each breath think of Him. Burn thy pride and smear thy body with its ashes; take up the broom of love and with it wipe out the distinctions of me and thee; reduce the notion of duality to dust and sprinkle it on thy prayer carpet; leave the carpet, break up the rosary, throw the sacred books in the river, seek the help of angels and be their servant; do not fast nor keep ramzan, do not go to the mosque nor make obeisances; break to pieces the water jar for prayer cleansing and drink the wine of the joy of union; eat and drink but never be off thy guard; enjoy thy intoxication1 The source here is indistinct. continuously; burn thy egotism. Be neither Mulla nor Brahmin; leave duality and worship Him alone. Shah Kalandar has proclaimed: say, ‘I am He’. Mad Mansur says: My heart has known truth, that is the wine shop of the intoxicated, make that the object of thy visit.
पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्यव्यूहश्मीन्समूह.
तेजो यत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ पुरूषः सोऽहमस्मि..16..(ईशोपनिषद)
हे पूषन, एकाकी ॠषि, नियन्ता, सूर्य, प्रजापति के पुत्र
खींच लो अपना प्रकाश, फ़ैलाओ अपनी किरणें.
देखता हूं तुम्हारा कल्याणकारी रूप
मैं ही हूं वह व्यक्ति खडा है जो सुदूर में..
O Pushan! O Sun, sole traveller of the heavens, controller of all, son of Prajapati, withdraw Thy rays and gather up Thy burning effulgence. Now through Thy Grace I behold Thy blessed and glorious form. The Purusha (Effulgent Being) who dwells within Thee, I am He. Here the sun, who is the giver of all light, is used as the symbol of the Infinite, giver of all wisdom. The seeker after Truth prays to the Effulgent One to control His dazzling rays, that his eyes, no longer blinded by them, may behold the Truth. Having perceived It, he proclaims: “Now I see that that Effulgent Being and I are one and the same, and my delusion is destroyed.” By the light of Truth he is able to discriminate between the real and the unreal, and the knowledge thus gained convinces him that he is one with the Supreme; that there is no difference between himself and the Supreme Truth; or as Christ said, “I and my Father are one.”
जेहि पूँछउँ सोइ मुनि अस कहई। ईस्वर सर्ब भूतमय अहई।।
उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध।।
निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध।।112(ख)।।
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा।।
आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा।। (Tulasi - Ramcharit Manas ,Uttar Kand )
# I tried to find Him on the Christian cross, but He was not there I went to the Temple of the Hindus and to the old pagodas, but I could not find a trace of Him anywhere. I searched on the mountains and in the valleys but neither in the heights nor in the depths was I able to find Him. I went to the Caaba in Mecca, but He was not there either. I questioned the scholars and philosophers but He was beyond their understanding. I then looked into my heart and it was there where He dwelled that I saw Him He was nowhere else to be found. - Jalal ud-Din Rumi.
मोको कहाँ ढूंढ़ं रे बन्दे मैं तो तेरे पास में।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।
ना मैं जप मे ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में।
ना मैं क्रियाकर्म में रहता, ना ही योग सन्यास में।
नहिं प्राण में नहिं पिण्ड में, ना ब्रह्मांड आकाश में।
ना मैं भृकुटी भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में।ं,
खीजी होय तुरत मिल जा इस पल की तलाश में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब श्वासन की श्वास में
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