Monday, September 14, 2009

क्षमा और दान का मनोविज्ञान

क्षमा दान का ही एक रूप है , सो इसे क्षमादान कहा गया । बदला लेना अहंकार को संतुष्ट करता है परन्तु पीछे अपराध-बोध और पश्चाताप शेष रह जाता है / क्षमा में प्रतिक्रिया शून्य हो जाती है सो कार्य नही होता और अकर्मता की स्थिति आ जाती है । क्षमा से , ज्यों ज्यों समय बीतता जाता है संतोष का भाव घना होता जाता है । बदला लेने में इसका उल्टा होता है ।
धर्म के चार पद वेदों में कहे गए हैं . १ -सत्य (शुद्ध ज्ञान ) २ - करुणा (एकात्मकता का भाव )। ३- तप (प्रकृति के साथ जीवन बीतने का भाव ) ४- दान - अपने पास आधिक्य होने पर उसे देना जिसके पास वह बस्तु अपने से कम है । यह दान शक्ति , संपत्ति , बल , बुद्धि , सहयोग ,समर्थन , सहायता और कुछ भी हो सकता है । राम चरित मानस में तुलसी दस जी ने मनुष्य को दान देने से ही कल्याण बताया है - '' येन केन विधि दीन्हें दान होइ कल्याण '' ( उत्तर कांड )
हमारे पौराणिक आख्यानों में भी एक कथा है - एक बार देवता , राक्षस और मनुष्य तीनों ब्रम्हा के पास गए और अपना कर्म -सूत्र पूछां । ब्रह्मा ने तीनो को एक अक्षर ' द ' कहा ; देवताओं के लिए - दमन , राक्षसों के लिए दया और मनुष्यों के लिए दान । टी ० एस ० इलियट ने अपनी विश्व प्रसिद्द कविता वेस्ट लैंड में इस प्रकरण का उल्लेख किया है । सो दान मनुष्य का पहल कर्तब्य है यदि वह ऐसा कर सकने में समर्थ हो ।
स्वयं के उपभोग से संतोष तो होता है पर उसकी सीमा होती है और हमारे अहंकार को तुष्टि मिलती है । भौतिक भोगों की भोगने की एक निश्चित सीमा होती है परन्तु दान से प्राप्त सुख और संतोष की कोई सीमा नही होती । सेवा की कोई सीमा नही होती । एक उदहारण - भोजन से अपनी तृप्ति होती है पर भूखे को खिलाने से हमें जो तृप्ति होती है उसकी तुलना करें । ख़ुद प्यास बुझाने का सुख और प्यासे को पानी पीलाने का सुख आदि आदि । पहले में अहं को सुख , शरीर को सुख दूसरे में आत्मा / अंतरात्मा को सुख , संतोष मिलता है ।
अतः हमारे पास जो है , आधिक्य , उसे दूसरों में बांटे । '' जो जल बाढे नाव में घर में बाढे दाम । दोनों हाथ उलीचिये यही सयानो काम ''

2 comments:

surya prakash said...

"भौतिक भोगों की भोगने की एक निश्चित सीमा होती है परन्तु दान से प्राप्त सुख और संतोष की कोई सीमा नही होती । सेवा की कोई सीमा नही होती ।"

आपकी यह पंक्ति मुझे अच्छी लगी
बहुत ही अच्छा लेख ,

Madhur said...

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