Sunday, January 22, 2012

मैं मूर्ति-पूजक नहीं हूँ ; पर मूर्ति -पूजा से मेरा कोई विरोध नहीं है .

मैं मूर्ति -पूजा का विरोध , स्वामी दयानंद की तरह  नहीं करता .पर मेरा दृढ मत और पक्का अनुभव है कि मंदिर-तीर्थ-यात्रा और पूजा-पाठ  का कोई अर्थ नहीं है , न इससे कोई सफलता /परिणाम हासिल होते हैं ....फिर ? प्रार्थना के साथ प्रयत्न,प्रयास और कर्म यही सफलता देता है ....प्रार्थना भी केवल सद-कर्म करने के लिए और कोई प्रार्थना सुनी ही नहीं जाती ---कर्म का चुनाव सही हो यही मांगना और वही कर्म करना (प्रार्थना के लिए भी , स्थान ,समय ,विधान ,शब्द की  जरूरत नहीं केवल मन से भाव सहित संकल्प और सद-कर्म की याचना . कबीर से बड़ा साधक ,सत्य -अन्वेषी , सत्य वक्ता कौन है ? वे क्या कहते हैं देखें -
'' पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं  पहाड़ '' और तुलसी  , मानस में ? '' कादर मन कंह एक अधारा : दैव दैव आलसी पुकारा '' और  '' कर्म प्रधान विश्व करि राखा : जो जस करै सो तस फल चाखा .''  गाँधी जी भी मेरी बात कहते हैं - '' मैं इश्वर को मानता हूँ  ; मैं मूर्ति-पूजक नहीं हूँ ; पर मूर्ति -पूजा से मेरा कोई विरोध नहीं है .
यह भी समझ  लें ,  खूब ठीक से  1- पूजा प्रार्थना भय की वजह से डरे हुए से  ,2- पाप से बचने के लिए , 3- बिना प्रयास , कर्म किये हुए किसी फल के लिए करते हैं तो संत , महात्मा , योगी , देवता , देवी , यहाँ तक खुद ईश्वर  भी आपकी मदद नहीं कर  सकते न  कुछ दे सकते है ....प्रार्थना पूजा केवल इन उद्येश्यों  से फल देगी .....1 - अच्छे कर्म के लिए प्रेरणा , सद्बुद्धि और शक्ति के लिए और 2 - अच्छे कामों की  सफलता पर  सद्बुद्धि देने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने  , आभार कहने के लिए  3 - दूसरों और सबके कल्याण के लिए ।

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