सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है
सुना है शेर का जब पेट भर जाए , तो वो हमला नहीं करता
सुना है हवा के तेज झोंके जब , दरख्तों को हिलाते हैं तो मैना अपने घर को भूल कर कौवे के अण्डों को अपने परों में थाम लेती है
सुना है , घोसले से जब कोई बच्चा गिरे , तो सारा जंगल जाग जाता है
सुना है कोई पुल टूट जाए और सैलाब आ जाए , तो किसी लकड़ी के तख्ते पर
गिलहरी , सांप और बकरी साथ होते हैं
सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है
खुदा वंदा ज़लीलो मुआत्बर दाना-ओ -बिना मुन्शिफो -अकबर
हमारे देश में भी अब , जंगलों का ही कोई दस्तूर नाफ़िज़ कर
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