Friday, January 27, 2012

निष्केवल प्रेम ........

उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम।
राम कृपा नहि करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम।।117(ख)।। >  राम चरित मानस में तुलसी
शंकर जी पारवती से कहते हैं ; उमा  ! '' शुद्ध प्रेम '' ( अनन्य ) से मनुष्य के उपर जैसी कृपा ईश्वर की होती है , वैसी कृपा किसी भी प्रकार के  योग ,जप , दान , तपस्या , विभिन्न प्रकार के यज्न /यग्य  , व्रत और नियम  करने से नहीं होती . '' रामहि केवल प्रेम पियारा : जानि लेहु जो जाननिहारा '' > वही = अगर आप समझदार हो तो समझ लो - राम को केवल '' प्रेम '' ही प्रिय है

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