राम चरित मानस के अयोध्या कांड में भरत द्वारा उन कर्मों का कथन है जों पाप हैं । कृपया देखें ---
माता , पिता और पुत्र का बध करना । गोशाला , मनुष्य का घर और नगर में आग लगाकर उसे जलाना ।
स्त्री और बालकों /बच्चों का बध करना । मित्र और राजा /अधिकारी / मालिक को विष दे कर मरना ।
जे अघ तिय बालक बध कीन्हें। मीत महीपति माहुर दीन्हें।।
जे पातक उपपातक अहहीं। करम बचन मन भव कबि कहहीं।।
ते पातक मोहि होहुँ बिधाता। जौं यहु होइ मोर मत माता।।
दो0-जे परिहरि हरि हर चरन भजहिं भूतगन घोर।
तेहि कइ गति मोहि देउ बिधि जौं जननी मत मोर।।167।।
बेचहिं बेदु धरमु दुहि लेहीं। पिसुन पराय पाप कहि देहीं।।
कपटी कुटिल कलहप्रिय क्रोधी। बेद बिदूषक बिस्व बिरोधी।।
लोभी लंपट लोलुपचारा। जे ताकहिं परधनु परदारा।।
पावौं मैं तिन्ह के गति घोरा। जौं जननी यहु संमत मोरा।।
जे नहिं साधुसंग अनुरागे। परमारथ पथ बिमुख अभागे।।
जे न भजहिं हरि नरतनु पाई। जिन्हहि न हरि हर सुजसु सोहाई।।
तजि श्रुतिपंथु बाम पथ चलहीं। बंचक बिरचि बेष जगु छलहीं।।
माता , पिता और पुत्र का बध करना । गोशाला , मनुष्य का घर और नगर में आग लगाकर उसे जलाना ।
स्त्री और बालकों /बच्चों का बध करना । मित्र और राजा /अधिकारी / मालिक को विष दे कर मरना ।
जों ईश्वर के अतिरिक्त भूत इत्यादि की प्रार्थना /आराधना करते हों । जों वेद / ज्ञान को बेचते हों और धर्म का और धर्म के द्वारा दूसरों का शोषण करते हों । जों दूसरों की निंदा और कमियों को कहते फिरते हैं । जों कपटी , कुटिल /नीच , कलहप्रिय अर्थात झगड़ने में आनंद लेने वाले और अकारण क्रोधी हैं । जों वेद /धार्मिक ग्रंथों और ज्ञान का मजाक उड़ाते हैं और अनायास सभी का विरोध करते हैं । जों लोभी , लम्पट /चरित्र हीन और दूसरों की संपत्ति देख कर विचलित हो जाते हैं और फ़िर जों दूसरे की पत्नी और धन पर कुदृष्टि रखते हैं । जिनकी संगति साधु पुरुषों की नही है तथा जों परहित से विमुख हो गए हैं । जों प्रभु की प्रार्थना नही करते । जों महापुरुषों से सुने गए श्रुति -मार्ग को छोड़कर उसके प्रतिकूल चलते हैं । जों ठग हैं और भिन्न भिन्न झूठा वेश बनाकर दूसरों तथा जगत को ठगते और छलते हैं ।
मूल पाठ .................
जे अघ मातु पिता सुत मारें। गाइ गोठ महिसुर पुर जारें।।जे अघ तिय बालक बध कीन्हें। मीत महीपति माहुर दीन्हें।।
जे पातक उपपातक अहहीं। करम बचन मन भव कबि कहहीं।।
ते पातक मोहि होहुँ बिधाता। जौं यहु होइ मोर मत माता।।
दो0-जे परिहरि हरि हर चरन भजहिं भूतगन घोर।
तेहि कइ गति मोहि देउ बिधि जौं जननी मत मोर।।167।।
बेचहिं बेदु धरमु दुहि लेहीं। पिसुन पराय पाप कहि देहीं।।
कपटी कुटिल कलहप्रिय क्रोधी। बेद बिदूषक बिस्व बिरोधी।।
लोभी लंपट लोलुपचारा। जे ताकहिं परधनु परदारा।।
पावौं मैं तिन्ह के गति घोरा। जौं जननी यहु संमत मोरा।।
जे नहिं साधुसंग अनुरागे। परमारथ पथ बिमुख अभागे।।
जे न भजहिं हरि नरतनु पाई। जिन्हहि न हरि हर सुजसु सोहाई।।
तजि श्रुतिपंथु बाम पथ चलहीं। बंचक बिरचि बेष जगु छलहीं।।
1 comment:
read your article and felt that one should must avoid these paap karma to make progress in life.
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