ईश्वर / प्रकृति ने श्रृष्टि में सबसे अधिक बुद्धि और उसे प्रयुक्त करने की स्वतंत्रता आदमी के हिस्से में डाली तो उसने इसका अत्यधिक उपयोग मूर्खता- पूर्ण क्रिया -कलापों में ही किया और भोगा भी खूब . देखो - उसने पत्थरों को देवता बना दिया और आदमियों को , दास , दलित , अछूत और घृणास्पद बना दिया ....फूलों में उसे नजर नहीं आया भगवान् , उसे तोड़-गूँथ कर पत्थरों पर ड़ाल दिया ...जिस माँ से पैदा हुआ , उसे खरीदा ,बेंचा , नचाया , नोचा और निर्वस्त्र किया ....अब परमाणु -अश्त्रों और युद्ध की तैयारी में लगा है ....तब , अबकी ईश्वर दूसरा आदमी बनाएगा , दूसरे तरह का जो जडवत ही हो और वही करे जिसके लिए बना हो -जैसे गुलाब की तरह खिले ,महके या काँटों की मानिंद केवल चुभे ? तुर्रा ए कि आदमी अपनी बुद्धिमत्ता पर फ़क्र करता है , वो तो है , लेकिन अपनी मूर्खता पर हंसना भी होगा
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