पतिंगे जलने के , कीड़े-मकोड़े , कुचले जाने के , आलसी दुर्भाग्य के , अपराधी दंड के ,अहंकारी पतन के ,अधर्मी /अनैतिक , दुःख के और सज्जन परोपकारी पुरुष सुख और प्रसन्नता के स्वाभाविक /स्वयं , हकदार/पात्र हैं . यही ऋत का नियम है .
*******************************************************************
दो0-दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज।।22।।
श्री राम के राज्य में दंड केवल सन्यासियों के हाथ में है (छड़ी) , समाज में कोई अपराधी ही नहीं सो दंड ( सजा) शब्द नहीं रहा ...इसी तरह '' भेद '' शब्द का प्रयोग नर्तकों और नृत्य में प्रयोग होता है - यानि कि ,संगीत में स्वर भेद , समाज में कोई भेद नहीं रहा सब बराबर के नागरिक हैं ; न कोई विरोधी है न कोई युद्ध , अतः '' जीतो ' शब्द निरर्थक हो गया है , जीतो शब्द का प्रयोग केवल मन को जीतने के लिए ही प्रयुक्त होता है .
; तुलसी दास - राम चरित मानस , उत्तर कांड
*************************************
बहुरि नहिं आना एहि देस ॥
जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नही संदेस ; सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस , जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस
चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस , ज्ञानी, गुनी, चतुर अरु कविता, राजा रंक नरेस
कोइ राम कोइ रहिम बखानै, कोइ कहै आदेस , नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूढि फिरें चहुँ देस
कबीर
*******************************************************************
दो0-दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज।।22।।
श्री राम के राज्य में दंड केवल सन्यासियों के हाथ में है (छड़ी) , समाज में कोई अपराधी ही नहीं सो दंड ( सजा) शब्द नहीं रहा ...इसी तरह '' भेद '' शब्द का प्रयोग नर्तकों और नृत्य में प्रयोग होता है - यानि कि ,संगीत में स्वर भेद , समाज में कोई भेद नहीं रहा सब बराबर के नागरिक हैं ; न कोई विरोधी है न कोई युद्ध , अतः '' जीतो ' शब्द निरर्थक हो गया है , जीतो शब्द का प्रयोग केवल मन को जीतने के लिए ही प्रयुक्त होता है .
; तुलसी दास - राम चरित मानस , उत्तर कांड
*************************************
बहुरि नहिं आना एहि देस ॥
जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नही संदेस ; सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस , जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस
चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस , ज्ञानी, गुनी, चतुर अरु कविता, राजा रंक नरेस
कोइ राम कोइ रहिम बखानै, कोइ कहै आदेस , नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूढि फिरें चहुँ देस
कबीर
No comments:
Post a Comment