गाँधी , एक ब्यक्ति
महात्मा गाँधी जिन्हें भारत के राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है ,अध्यात्म और राजनैतिक दर्शन के कोई ब्यवस्थित , अकादमिक चिन्तक नही हैं । इस विचार से गाँधी को शंकर या कैंट की श्रेणी में नही रखा जा सकता ,अपितु बुद्ध और सुकरात की पंक्ति में निश्चित रूप से रखा जा सकता है । उनके ही अनुसार उन्होंने अपने जीवन में सत्य के साथ एक प्रयोग किया ।गाँधी अपने को विश्व नागरिक ऐसा मानते थे । उनका संघर्ष पूरी मानवता के लिए था । बिभिनn धर्म जिनका अध्ययन गाँधी ने किया जैसे -वेदांत , इस्टोइक ,इसाई, बौद्ध , जैन , मुस्लिम और सिख आदि , सब का सार यही पाया कि अंत में सत्य की ही विजय होती है और इस विचार के विपरीत कि अपेक्षाकृत शक्तिमान की जीत होती है और वही जीवित रहता है । इसी आधार पर गाँधी जी ने राजनैतिक समस्याओं के लिए आत्मिक और नैतिक विधियों का प्रयोग किया और सफलता भी प्राप्त की । भारत की स्वतंत्रता हेतु उन्होंने वही किया जो वाशिंगटन और सन्यत्सेन ने अपने देश के लिए किया परन्तु इससे भी अधिक गाँधी जी ने राजनीति में नैतिक मूल्यों के महत्व को सिद्ध करने का युग प्रसिद्द उदहारण प्रस्तुत किया जो मानवता के इतिहास में बेमिशाल है ।
गाँधी हर ब्यक्ति को गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ बनाना चाहते थे और एक समाज की रचना जो सर्वोदयी -समाज हो और जिसे वे राम राज्य कहते थे जिसकी अवधारनाउन्हों ने राम चरित मानस से ली थी । वे सभी साधनों को एक ट्रस्ट के रूप में मानकर उसमे से जितनी जरुरत हो उतने का उपयोग ही करना ऐसा समाज चाहते थे । यह विचार ईशाwवास्य उपनिषद के अनुसार था कि जो कुछ जो भी है वह ईश्वर का ही है और तुम्हे अपनी आवश्यकता के अनुसार ही उपयोग में लाना चाहिए - '' तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्य स्विद धनम् ? '' गाँधी जी का मानना था कि समाजबाद हो अथवा साम्यबादसब कुछ इस मन्त्र में समाहित था
किसी भी प्रकार कि ब्यवस्था , परिवर्तन अथवा सुधार चाहे मनुष्य में हो या समाज में , अहिंसा द्वारा ही लाया जाना चाहिए क्योंकि यही मानवोचित एवं सभ्य तथा सर्वोत्तम साधन है । मानव के विकास और उसके स्वभाव के अनुरूप मनुष्य के सद्गुणी होने में गाँधी जी को अटूट विश्वास था .
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