त्रिगुणात्मक प्रकृति
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प्रकृति का परिवार (सांख्य दर्शन ) इस प्रकार है - पञ्च महाभूत - पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु तथा आकाश , फ़िर अब्यक्त तिन गुण , मन बुद्धि अंहकार ;पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ , पञ्च कर्मेन्द्रियाँ , पञ्च विषय -गंध , स्वाद , रूप , स्पर्श तथा ध्वनि सभी 24 हैं । 13/ 7
भौतिक प्रकृति तीन गुणों से युक्त है , सत , रज तथा तम ।
सत हल्का , प्रकाश कारी , सुख तथा ज्ञान का भाव रखता है ।
रज गत्यात्मक है
और तम प्रमाद , निद्रा और आलस्य से युक्त है ।
सत से सुख , रज से कर्म और तम से अज्ञान पैदा होता है।
इन तीनों में कभी सत तो कभी रज और कभी तम एक दूसरे को परास्त करके प्रधान हो जाते हैं । इस प्रकार श्रेष्ठता के लिए निरंतर स्पर्धा होती रहती है .
सत से ज्ञान , रज से लोभ और तम से अज्ञान , प्रमाद और मोह पैदा होता है ।
सतोगुणी उर्ध्वगामी , रजोगुणी मध्यगामी और तमोगुणी अधोगामी स्वभाव के होते हैं ।
जो मनुष्य इन तीनों गुणों को पार कर जाता है , वही जीवन में आनंद भोग करता है ।
जो यह जन लेता है कि यही तीनों गुण कर्म कराते हैं वह त्रीगुनातीत कहा जाता है । वही स्थिरप्रज्ञ ऐसा माना जाता है । वही अपने वास्तविक स्वरुप को जान पता है । ''
- गीता 14/
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