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निर्भयता , अध्यात्मिक ज्ञान का अनुशीलन , दान , आत्मसंयम , यज्ञ परायणता , वेदाध्ययन , तपस्या , सरलता , सत्य , अहिंसा , अक्रोध , त्याग , शान्ति , छिद्रान्वेषण ( निन्दा ) में अरुचि , करुणा , लोभहीनाता , भद्रता , लज्जा , संकल्प , तेज , क्षमा , धैर्य , पवित्रता , इर्ष्या तथा सम्मान से मुक्ति , ऐ सारे दिव्य गुण हैं । 16 / 1 , 2 और 3 ।
दर्प , दंभ , अभिमान , क्रोध , कठोरता तथा अज्ञान ऐ आसुरी स्वभाव हैं । इन्द्रियों की तुष्टि ही इनकी मूल मांग है .ऐसे लोग जीवन भर काम, क्रोध और लोभ में रत रहकर अपार चिंता से जन्म से से मरण काल तक धन संचय / संग्रह में लगे रहते हैं । आज इतना है कल तक इतना और कमा लूँगा , वह मेरा शत्रु है , मैंने उसे मार दिया है , और अन्य शत्रुओं कोभी मार दूंगा , मै इन सब बस्तुओं का स्वामी हूँ , मै ही भोक्ता हूँ , मै सबसे शक्तिमान , सुखी और धनी हूँ , मेरे पास कुलीन सम्बन्धी हैं , मै यज्ञ करूँगा , दान दूंगा , आनंद मनाऊँगा । ऐसा सोचने वाले मोहग्रस्त और अज्ञानी हैं ॥ कभी कभी नामके लिए यज्ञ करते हैं , दान देते हैं , भगवान् से इर्ष्या और वास्तविक धर्म की निंदा तथा अवहेलना करते है । काम क्रोध और लोभ इनके महामार्ग हैं । इस प्रकार जो शास्त्रों और धर्म की अवहेलना करता है , न तो सिद्धि , न सुख और न तो परम गति को प्राप्त कर पाता है ।16/ 4 , 11 , 12 , 13 , 14 , 15 , 17, 18 , 21 और 23 ।
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