Sunday, February 23, 2014

भगवद गीता के १८ वें अध्याय में भगवान् कृष्ण द्वारा कहे गये प्रमुख वचन



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सतोगुणी - बुद्धि जानता है - क्या करना और क्या नहीं करना , किससे डरना किससे नहीं डरना , क्या बंधन है और क्या मोक्ष है ।
जो बुद्धि धर्म अधर्म , करणीय अकरणीय और सत असत में भेद नहीं कर पाती है , वह राजसी है ।
जो अधर्म को धर्म और असत को सत तथा अकरणीय को करणीय जानता है वह तामसी है । १८/ ३०,३१ ,३२ ।
जो पहले विष जैसा और अंत में अमृत जैसा है , वही श्रेय है , सात्विक सुख है ।
जो सुख इन्द्रियों द्वारा उनके विषयों के संसर्ग से , प्रारम्भ में अमृत सा अंत में विष सा लगता है , वह राजसी सुख है ।
जो सुख आत्मसाक्षात्कार के प्रति अंधा है , मोह , निद्रा , आलस्य , प्रमाद से ही शुरू होकर दुःख में ही अंत करता है वह तामसी सुख कहलाता है । १८/ ३७, ३८ , ३९ ।
जो अपने नियत कर्म को करता है वह सिद्ध हो सकता है ।
सभी कर्मों में कोई न कोई दोष होता ही है , अतः अपने अपने नियत कर्म को करना ही सर्वोत्तम है । १८/४५, ४८ ।
समस्त प्रकार के धर्मों की चिंता छोड़ मेरे ही शरण में आ जाओ , मै तुम्हे समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा , चिंता मत करो । सारे कार्य के लिए मुझ पर निर्भर रहो , मेरे संरक्षण में सदा कर्म करते रहो और मेरी भक्ति में ही सदा सचेत रहो ।
मै तुम्हारे योग (साधना का शुभारम्भ ) और क्षेम (साधना की सुरक्षा और कल्याण /साध्य की प्राप्ति ) का वहन करूंगा । १८/५७, ६६।
सो सदैव मेरा चिंतन करो , मेरे भक्त बनो , मुझे नमस्कार करो , अपने नियत कर्म करते हुए निश्चिंत हो जाओ , मै तुम्हे वचन देता हूँ ।

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