Sunday, February 23, 2014

चरैवेति , चरैवेति


चरैवेति , चरैवेति ( चलते रहो , चलते रहो ।) जीवन में इस सूत्र का अनुपालन बहुत महत्व का है । कहावत है , जहाज अगर किनारे ही खड़ा रहे तो सुरक्षित ही है परन्तु उसे तो सागर में दूसरे किनारे तक जाना ही है और यही उसका मनतब्य है । लोग डूबते रहे हैं , परन्तु तैरने का मनसूबा कम नहीं होता , और नाव और जहाज और तैरने वाले सागर में , नदी में उतरते ही रहे हैं । मंजिल सबको नहीं मिली तो क्या रास्ते तो चलते ही रहे और राही भी बढ़ते ही गए , नए रास्ते खोजे जाते रहे । परीक्षाओं में लोग फेल होते रहे तो क्या परीक्षा में बैठना तो बंद नहीं हुआ । हारने पर , जीतने का हौसला बढ़ता ही गया ।
कहां हादसे नहीं हुए , रेल में , सड़क पर , वायुयान में पर हमारी यात्रा चाँद तक पहुंच चुकी है , आगे का इरादा है । मौत के सागर में जिंदगी तैरती रही है और आगे न डूबने का पक्का इरादा है ।
सागर ( दुनिया ) मौत और जिंदगी का अजीब खेल है । न डूबने का इरादा , तैरने वाले का है और तैरने वाले का डूबना पक्का ही समझो । जो पानी में नही उतरता वो डूब भी नही सकता । नाव तो जल में ही चलेगी । जो भी जीवन पा चुका, इस संसार में वह उतर ही गया, पानी में और अब तो तैरना भी है और डूबना भी , तैर कर । इसी से हमारे यहाँ इस दुनिया को भवसागर कहा गया है । चलना ही मंजिल है , जब तक जीवन है , चलना होगा । हम यात्री हैं और यात्रा ही हमारा परम ध्येय है , चलना ही श्रेय है , सो कहा है , -- चलते रहो , चलते रहो । इसी इरादे को जीने की तमन्ना कहते है , इसके लिए हमें डूब कर तैरना सीखना है और तैर कर डूबना । इसी विरोधाभासी यात्रा को जीवन / जिंदगी कहा है । लाइफ इज लाइक दैट ।सो , धैर्य से , समझ से , हिम्मत से , हौसले से , चलते रहने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है । चरैवेति , चरैवेति ।

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