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हजारों मनुष्यों में से कोई एक जिज्ञासु होता है, सिद्धि के लिए और फ़िर उनमे से विरला ही सत्य को जान पाता है । मै (आत्मा) ही रस , जल , सूर्य , चंद्र , ओमकार , ध्वनि तथा मनुष्यों की सामर्थ्य हूँ । पृथ्वी में गंध , अग्नि में ऊष्मा , सभी जीवों में जीवन , तपस्वी में तप और सभी जीवों का आदि बीज हूँ । मै ही बलवान का बल और कामियों में धर्मयुक्त काम हूँ। 7 / 3 , 8 , 9 , 10 , 11।
मुझे मूर्ख , अधम , नास्तिक और मोही नहीं जानते । मुझे आर्त ,जिज्ञासु , अर्थार्थी तथा ज्ञानी ही जानते हैं । जो भी जिन देवताओं को पूजते है , उन्हीं देवताओं में स्थिर होकर मै उन्हें फल देता हूँ । 7 / 15 , 16 , 20 , 21।
जो ओमकार का जप करते है , जो वीतराग हैं , वे इन्द्रियों को वश में करके योग का अभ्यास करते है और प्राण वायु को सर के मध्य में केंद्रित कर समाधि को प्राप्त करते हैं । 8 / 11 , 12 ।
मै (आत्मा) ही वैदिक कर्म , यज्ञं , पितरों का तर्पण , औषधि , मन्त्र , घृत , अग्नि और आहुति हूँ । मै इस श्रृष्टि का माता पिता तथा पितामह हूँ , मै सभी वेद , ज्ञान , जानने योग्य और ज्ञाता हूँ । मै ही लक्ष्य , प्रभु , साक्षी , निवास , शरण , सुहृत ,प्रभाव , प्रलय , स्थान , निधान , इन सब का अविनाशी बीज हूँ । तप , वर्षा , जन्म , मृत्यु और सत असत भी मै ही हूँ । न किसी से द्वेष न राग , न प्रेम न घृणा ; मै सबको समान मानता हूँ ,परन्तु जो मेरी भक्ति में है , वह मुझे ज्यादा प्रिय है । कोई पापी भी मेरी शरण में आकार सुधर जाता है । मेरे भक्त का कभी विनाश नही होता । जन्म से कोई कुछ भी हो , नारी नर , उंच , नीच , पापी सभी मेरे भक्त होने के पूर्ण पात्र हैं । सो मुझे ही सोचो , मेरी शरण में आओ , मुझे ही प्रणाम करो , मेरेमय हो जाओ । 9 / 16, 17, 18 , 19 , 22 , 23 , 27 . 29 , 30 , 31 , 32 , 33 , 34 , ।
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