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समाज ब्यवस्था में जब प्रकृति के नियमों के पालन में कुछ लोगों द्वारा कदाचरण अथवा अनैतिक आचरण होने लगता है तो मानव -धर्म में गिरावट आ जाती है , ऐसे समय पर विश्व आत्मा एक समूह में तथा स्वयं नायक (अवतार ) के रूप में ,अपना सृजन कर संतों की मदद करने तथा दुष्टों को नष्ट करने पृथ्वी पर आती है । 4 / 7 , 8
जिस भाव से मुझे लोग चाहते हैं ,उसी रूप में मै उन्हें फल देता हूँ , कोई किधर से भी चले , मेरे पास ही आता है । जो सकाम कर्म करते है और भिन्न भिन्न देवताओं को पूजते है , उन्हें उनके कर्म के अनुसार सिद्धि मिल जाती है । 4/ 11, 12 .
क्या करना और क्या नही करना ; ऐसे में बुद्धिमान भी धोखा खा जाते है , क्यों कि ऐसा निर्णय करना कठिन है । जो कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है , वह सभी मनुष्यों में बुद्धिमान है । जो इन्द्रिय तृप्ति की भावना से रहित हो कर कर्म करता है वह बुद्धिमान है । जो कर्म में आसक्त हुए बिना काम करे , वह कुछ नही करता । जो सयंमित मन तथा बुद्धि से निराशी होकर स्वामित्व की भावना त्याग ,शरीर निर्वाह के लिए कर्म करता है , वह श्रेष्ट है । जो स्वतः होने वाले लाभ से संतुष्ट है , द्वंद से मुक्त है , इर्ष्या नही करता , सफल असफल होने पर एकसा रहता है , वह कर्म करते हुए भी कर्म -फलों तथा बन्धनों से मुक्त है । 4 / 16 , 18 , 19 , 20 , 21 , 22 .
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