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ज्ञानी मनुष्य , विनम्र साधु पुरूष विद्वान , गाय , हाथी , कुत्ता और कुत्ते को खाने वाले ; सभी में उसी एक परम तत्व , आत्मा को ही देखते है । जो प्रिय को पाकर हर्षित और अप्रिय को पाकर विचलित न हो , जो स्थिर बुद्धि , मोह रहित है, वह आत्मा को जनता है । 5 / 18, 20 .
अर्जित ज्ञान और अनुभव से ,आत्मा में स्थित ,जितेन्द्रिय , मिटटी और सोने को बराबर देखने वाला योगी है । जो मनुष्य निष्कपट होकर , हितैषी , प्रिय , मित्र , अमित्र , तटस्थ , मध्यस्थ , इर्ष्या करने वालों पुण्यात्माओं और पापियों को समान भाव से देखता है वह सब में उन्नत माना जाता है । 6 / 8 , 9 .
वास्तविक योगी सभी जीवों में मुझको तथा मुझमें समस्त जीवों को देखता है , और पुनः मुझे सर्वत्र देखता है , उसके लिए मै और मेरे लिए वह कभी अदृश्य नही हैं । 6 / 29 , 30 .
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