Saturday, January 10, 2009

ईश्वर सम्बन्धी अवधारणाएँ

पश्चिमी युरोपिय दर्शन और मिथ के अनुसार ईश्वर एक ब्यख्ति है , गाड इज पर्सनलाइज्ड़ , ही इज ऐ पर्सन । इनका ईश्वर स्वर्ग में रहता है , जिसने ऐडम और इव को इस धरती पर दंड देकर भेजा , और फ़िर जब जिसको चुन लेता है , उसके पापों को माफ़ कर स्वर्ग में वापस ले लेता है । इसी से मिलती जुलती कहानियाँ और मान्यताएं सभी धर्मों की हैं जैसे हिब्रू यहूदी और मुसलिम् । मुसलिम धर्म में खुदा वह परम शक्ति युक्त ब्यख्ति है , जिसने सारी दुनिया को बनाया है और जो अन्तिम दिन सभी के कर्मों के अनुसार न्याय कर स्वर्ग नर्क में भेजे गा ।
भारतीय दर्शन में वेदांत के अनुसार ( जो सारी दुनिया में प्रतिनिधि भारतीय दर्शन है ) ईश्वर ब्यख्ति है , ऐसा नही मानता। वेदांत के अनुसार , " सर्व खलु इदं ब्रह्म "जो कुछ है वह सब ब्रह्म ही है । ब्रह्म जिसको कहा गया वो ब्यख्ति नहीं परम आत्मा , युनिवर्सल सोल है । त्रिआयामी परम शक्ति , परम तत्व , अनंतिम परम चेतन तत्व जो सर्व स्यूत है सारे जगत में । वेदों में इसे कई तरह से कहा गया है । ** तत् त्वं असि , तुम भी वही हो । ** सो अहम् अस्मि , मै भी वही हूँ । ** ईशा वास्यम इदं सर्वम् यत् किंच जगत्यां जगत , जो कुछ भी जगत और उसके भी पार है उसमें ईशा का निवास है । गीता में कहा है जो भी जिसके लिए अस्तित्वमें है , उसका वह गुण मै ही हूँ ,जैसे चीनी में मिठास , बुद्धिमान में बुद्धि और चोर में चोरी का गुण , कामी में कामभावना मै ही हूँ । भारतीय दर्शन में गाड इमपरसनलाइज्ड है , उसका नाम नहीं , सो जो चाहे नाम रख लो , वह अनाम है , उसका रूप भी नही , जो चाहो बनालो वह अरूप है । इस लिए हर आदमी का अपना अपना ईश्वर है । साकार , निराकार , पशु , पक्षी , पेड़ , पौधे , सभी प्रकृति की सभी शक्तियां जैसे जल , हवा , आग ,सूर्य चन्द्र , सभी ग्रह सब ईश्वर के ही रूप हैं , जिसे तुम मानोगे , वही तुम्हारे लिए ईश्वर होगा । गीता में कृष्ण ने कहा ,जिस जिस रूप में तुम मेरी साधना , पूजा , भक्ति , पाने मिलने की इच्छा करोगे , उन्हीं उन्हीं रूपों में मै तुम्हे मिलूँगा । गोस्वामी तुलसी दास ने यही बात राम चरित मानस में एक लाइनमें कह दी , " सीयराममय सब जग जानी । करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी ॥ आप सबेरे उठकर जो भी देखें , उसमे ईश्वर का दर्शन करें , सूअर , कौवा , सांप , कछुवा , मछली , गंगा , कुवां , तालाब , सागर , पहाड़ , पत्थर आदि आदि ।
परन्तु योग में ईश्वर , ब्यक्ति है पर भौतिक शरीर में नहीं है , अपितु परम चेतन स्वरुप में है , वह पुरूष विशेष है परन्तु भौतिक शरीर में नहीं । ** पुरूष विशेषः ईश्वरः .. सह गुरुनाम गुरु । तस्य वाचकः प्रणवः । सह निरतिशय सर्वज्ञ बीजं । ( प्रणव = ॐ ) ॐ एक ध्वनि है , और एक शक्ति है , उर्जा है । ॐ के सम्बन्ध में ब्लॉग में अलग चर्चा हो चुकी है ।

No comments: