Sunday, January 25, 2009

सत्संग चलता फिरता तीर्थराज

'' ए मैन इज नोंन बाई कम्पिनी ही कीप्स '' . अच्छे लोगों का साथ तीन प्रकार से होता है ; एक तो उन लोगों से जो हमारे समकालीन हैं ,हमसे  हर प्रकार से उन्नत हैं ; दूसरे  जो आज नहीं हैं पर उन्होंने अपनी कहानी लिखी है जैसे बाबरनामा , गाँधी जी की जीवनी , बड़े लोगों की आत्मकथाएं । तीसरे जिन लेखकों , कवियों ने महान लोगों के बारे में लिखा है । कहा  गया है - ''बड़े होने के लिए या तो कुछ बड़ा करो या बड़े लोगों पर कुछ लिखो ।'' इन बड़े लेखक कवियों का साथ भी उनके कृतियों के माध्यम से कर सकते हैं । " सत्संगति किं न करोति पुंसाम " = सत्संग से क्या नहीं होसकता है , भला ??... तुलसी दासने राम चरित मानस में सत्संग को चलता फिरता तीर्थ राज कहा है । इसी की चर्चा करते हैं ।
'' जो मनुष्य अच्छे लोगों का साथ करता है उसे धर्म , अर्थ , कम और मोक्ष यहीं मिल जाते हैं । इस संत रूपी तीर्थ राज में स्नान करने का फल तुंरत ही मिल जाता है , कौवे कोयल बन जाते हैं और बगुले हंस , अचरज न करें ,बाल्मिक , नारद , अगस्त्य की कथा ऐसे ही है । कोई भी व्यक्ति जिसने , जहाँ भी और जैसे भी , बुद्धि , कीर्ति , सफलता , भौतिक सम्पदा ऐश्वर्य तथा भलाई , अच्छाई प्राप्त की है ; उसे सत्संग का प्रभाव ही जानो क्योंकि लौकिक और वैदिक उपायों में इसके अलावां और कोई तरकीब नहीं है । बिना सत्संग विवेक नहीं मिलता। सत्संग आनंद तथा कल्याण का मूल है । सठ सुधर जातें हैं जैसे लोहा पारस छू कर सोना बन जाता है । संत असतं मै दोनों की वंदना करता हूँ क्योंकि संत बिछुड़ने पर और असतं मिलने पर दुःख देते हैं ।
गुण और अवगुण सबको पता हैं , जिसको जो भाता है उसको वही अच्छा लगता है । भला भलाई  को ; नीच नीचता को चुनता है ; अमृत की सराहना अमर करने में तो विष की सराहना मारने में ही है .
 सुख- दुःख , पाप- पुण्य , दिन- रात , साधु- असाधु , दानव- देव , अमृत- विष , माया -ब्रह्म , धनी- गरीब , काशी- मगहर , गंगा- कर्मनाशा , पृथ्वी- आकाश , जल- थल , दयालु -  हत्यारा  , ईश्वर- जीव , अनुराग- विराग , जड़- चेतन , गुण- दोष सब कुछ प्र्भु /प्रकृति ने बनाये हैं ; संत हंसों की तरह गुण (दूध ) ग्रहण कर जल (दोष ) को अलग कर लेते हैं । बुरा वेश रहने पर भी साधु का सम्मान ही होता है जैसे हनुमान का । हवा के कुसंग से धूम कालिख और पानी का संग होने से स्याही बन कर पुराण लिखती है । ग्रह , औषधि , जल , वायु और वस्त्र , अच्छा बुरा साथ पाकर उसी प्रकार के गुण दोष युक्त हो जाते हैं । देखिये , माह के दोनों पक्षों में प्रकाश और अँधेरा बराबर ही होता है परन्तु एक में चंद्रमा घटता है और दूसरे में बढ़ता है सो एक को उंजेला (बढ़ाने वाले को ) दूसरे को (घटाने वाले को ) अँधेरा पाख कहा गया । > (तुलसी के मानस से, बाल कांड  )

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