मोहन दास कर्म चंद गाँधी (१८६९ -१९४८ ) ,जिन्हें अब सारी दुनिया में एक ब्यख्ति नहीं विचार के रूप में स्वीकार कर लिया गया है , अहिंसा के रूप में , शान्ति के अग्रदूत के रूप में , भारत में पहले ही महात्मा और राष्ट्रपिता के विशेषण से अलंकृत हो चुके थे । ( कुछ बहुत संकीर्ण और कम समझ वाले उन्हें नोबेल पुरस्कार न देने की शिकायत करते फिरते हैं जिन्हें यह पता नहीं कि यदि किंचित उन्हें नोबेल मिला होता तो वह भी धन्य हो जाता , दुर्भाग्य से छोटा रह गया । कभी देश से लोग जाने जाते हैं और कभी लोगों से देश , गंगा , हिमालय , राम , कृष्ण , बुद्ध और गाँधी से भारत देश दुनिया में प्रसिद्ध है । इसी तरह सारी दुनिया में राम मर्यादा के , लिए कृष्ण न्याय के लिए , बुद्ध करुणा के लिए और गाँधी अहिंसा के लिए जाने जाते हैं , जैसे सुकरात न्याय के लिए , जीसस प्रेम केलिए और मुहम्मद साहब भाईचारे के लिए । इसी तरह से नोबेल गाँधी को दिया गया होता तो गाँधी को भी दिया गया था ऐसा* जाना जाता । ) इसीसे कहा आज की संकट ग्रस्त दुनिया में गाँधी ब्यक्ति नही विचार बन गए हैं । तभी तो दुनिया में कहीं भी अहिंसा और शान्ति की लडाई लड़ने वाला वहां का और उस देश का गाँधी कहा जाता है ।
बस्तुतः गाँधी भारत की संस्कृति , दर्शन और नैतिक परम्परा के ही अग्रदूत और दुनिया में इन्हीं परम्पराओं के राजदूत हैं । उन्हों ने गीता और रामचरित मानस पढ़ा था और यही दोनों ग्रन्थ भारतीय दर्शन के प्रतिनिधि सार तत्व हैं । राम चरित मानस से - परम धरम श्रुति विदित अहिंसा * और राम अपने दुश्मन के प्रति क्या विचार रखते है जब युद्ध के पहले अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजते हैं - " तुमहिं बुझाइ बहुत का कहऊँ । परम चतुर सब जानत अहऊँ ॥ मोर काज तासु हित होई । रिपु सन करेहु बतकही सोई ॥ अर्थात मेरा काम भी हो और शत्रु का हित भी ,यानि यदि वह सीता को लौटा दे तो युद्ध टल जाय। न्यूटन ने कहा है , -* जब हम अपने पुरखों के कन्धों पर बैठ जाते हैं तो ज्यादा दूर तक देख लेते हैं । यही बात विनोबा भावे गाँधी के प्रति उद्धृत करते हुए कहते हैं , * गाँधी भारतीय संस्कृत और सभ्यता के डारविनियन विकास पुरूष हैं । गाँधी ने ख़ुद कहा , उनका कोई वाद नहीं है ,उन्हों ने तो जो अपने धर्म से सीखा और धर्मों से मूल्यांकन कर देखा तो बात साफ हो गई कि सारी दुनिया में आदमी का एक ही धर्म है , " वैष्णव जन तो जेने कहिये जो पीर परायी जाणे रे ** यानि कि किसी के कष्ट को अपना कष्ट समझना। किसी को मन वाणी और कर्म से हानि न पहुंचाना , अर्थात हिंसा न करना । एक बार अफ्रीका में जब उनके विरोधियों ने उन पर आक्रमण किया और केश चला तो गाँधी जी ने उन सब को माफ़ करने को कोर्ट से कहा । एक अंग्रेज ने जब उनसे पूछां इतनी सहनशीलता कहाँ से सीखी तो गाँधी ने तपाक से कहा , बाईबिल से , आपके ही धर्म से , जो लिखा है कि यदि कोई एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी उसके सामने कर दो । बाद में तो अंग्रेज गाँधी को भारत में अपना शत्रु होने के साथ साथ विश्वशनीय परम मित्र भी मानने लगे थे।
आज गाँधी सम्पूर्ण विश्व में अति प्रासंगिक हो गए हैं और इस बात को विश्व के सभी नेता स्वीकारभी करते हैं । लोहिया ने कहा है , * आज विश्व में दो महा शक्तियाँ हैं - एक परमाणु और दूसरा गाँधी और यदि धरती पर आदमी को जीते रहना है तो गाँधी को जिताना होगा वरना परमाणु जीता तो आदमी नहीं रहेगा । गाँधी आदमी के अस्तित्व हेतु एक मात्र विकल्प हैं । **
ब्यक्तिगत जीवन में भी गाँधी आदर्श हैं । उनके एकादश व्रतों का पालन कर हम भी सुख शान्ति का जीवन जी सकते हैं । उनका एक उदहारण देखें , - उनके देश में गरीबी थी , हटा न सके तो व्रत ले लिया जब तक गरीबी है , हम भी गरीबों की तरह जीवन जियेंगे , और एक ही धोती पहनते रहे , गरीबों की भांति रहे। गाँधी की कथा अनन्त और गाँधी अनन्त , सो उनके एकादश व्रतों के साथ विराम करते हैं । १- अहिंसा २ -सत्य ३ - अस्तेय ४ - ब्रह्मचर्य ५ -असंग्रह ६ -शरीर श्रम ७ - अस्वाद ८ - सर्वत्र भय वर्जन ९ - सर्व धर्म समानत्व १० - स्वदेशी ११ - स्पर्श भावना ** विनम्र व्रत निष्ठां से ऐ एकादस सेव्य हैं । उनका कहना है , पृथ्वी पर सत्य को पाना है तो अहिंसा को साधो । हिंसा करने वाला जो भी हो ,आदमी नहीं हो सकता । अहिंसा परमो धर्मः ** और पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ( परपीड़ा सबसे बड़ा पाप ) ।
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