Thursday, January 29, 2009

अतिवाद और मध्यम मार्ग

अतिवाद का अंत अति से और शीघ्र हो जाता है । मध्यम गति से दूर तक और लंबे समय तक चला जा सकता है । अतिवाद , अहंकार का सूचक है । रावण , कंस , बलि , हिटलर और नेपोलियन आदि आदि उदहारण हैं , अतिवाद और अहंकार के । लिंकन कहते हैं ,- हर खलनायक के लिए एक नायक पैदा हो जाता है । तभी तो रावण जैसे स्थापित शक्तिशाली राजा को निर्वासित राजकुमार राम ने धुल चटा दिया । ऐसी ही कहानी सभी अतिवादियों और मुर्ख अभिमानियों की है । विश्व इतहास इसका गवाह है । हिंसा से बचाव में प्रतिहिंसा सदैव मानक नैतिकता रही है । हीगल और मार्क्स भी एक अतिवाद के बाद दूसरे अतिवाद का समर्थन करते हैं । भारत में धर्म के कमजोर होने पर दैवी शक्ति परम पुरूष के रूप में अवतरित होकर संतुलन कायम करती है । क्रिस्चियन , यहूदी और मुस्लिम धर्म में भी समाज में नैतिकता की स्थापना हेतु पैगम्बर आए हैं । न्याय की स्थापना के लिए अन्तिम विकल्प के रूप में हिंसा मान्य है । इसे हमारे यहाँ धर्म युद्ध और कुरान में जेहाद कहाहै । कभी कभी यह समझना कठिन हो जाता है कि कौन पक्ष न्याय का पक्ष है । महाभारत में कहा है , - यतो धर्मः ततो जयः ** धर्म का पक्ष ही जीतता है , कौरव जीतते तो इतिहास दूसरा होता । परन्तु ऐसा हुआ नहीं , पहले से भी लोगों का यही कहना था कि कौरव अन्याई थे । यहाँ तक कि कौरओं की तरफ़ से लड़ने वाले भीष्म और द्रोणाचार्य भी इस मत के थे कि कौरव अन्याय कि ओर थे । हमारे यहाँ , - सत्यमेव जयते ** सूत्र सिद्धांत है । मुहम्मद साहब भी यही कहते हैं , - जेहाद न्याय युक्त ही होना चाहिए तभी जीत होगी । जेहाद का अर्थ ही है - धर्म और न्याय हेतु युद्ध । हीगल भी यही कहता है , - जो पक्ष युद्ध में जीत जाय वही न्याई था । विश्व इतिहास में जितने भी युद्ध लादे गए उसमे लादने वाला आक्रमणकारी अन्यायी ही ठहराया गया है । और एक मजे कि बात कि अपनी सुरक्षा में युद्ध करने वाला वाह्य दृष्टि से विपन्न , साधनहीन और कमजोर ही दिखा परन्तु जीत उसी की हुई । खैर गाँधी ने तो कमाल ही कर दिया , " साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल , दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल "* अज के नए विश्व में एक नायब तरीका ।
इसलिए बुद्ध ने कहा अतिवादी न बनो , मध्यम मार्ग से चलो । जीवन के हर क्षेत्र में ऐसा ही समझना होगा । यदि अतिवादी बनोगे तो दूसरे अतिवाद का शिकार होना होगा । यथा , -पहले मानव नंगा था ,कपड़े खोजे गए फ़िर खूब जम कर कपड़े पहने गए , कोई अंग बाहर न रहा , सभ्यता कि अति हो गई , पश्चिम में लोग ऊबे और फ़िर से नंगे होनेलगे ,कहिये पूरे विश्व में नंगे होने की की होड़ लग गई है , वे लोग आगे आगे और हम भी पीछे भाग रहें हैं । मैं नाचने गाने वालों की बात नहीं करता , उनका तो पैसा कमाने का पेशा है परन्तु सभ्य समाज के लोगों को इतना कपड़ा तो पहनना ही चाहिए कि शरीर के उतने अंग ढंके रहें जिससे गर्मी सर्दी से बचाव हो । खेद है कि सभी में तो नही लेकिन कुछ फैशन परस्त ऐसे कपड़े ही पहनते हैं जिससे वही अंग ध्यान में आयें जिन्हें ढंकना चाहिए । हम तथाकथित सभ्य होंगे पर निश्चित रूप से अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं । स्वतंत्रता के नाम पर अति नहीं । ऐसे ही जीवन के हर क्षेत्र में मध्यम मार्ग का वरण अपेक्षित है अन्यथा एक अति से दूसरी अति का उद्भव होगा जो विनाशकारी होगा । अंग्रेजी में भी माडरेट होने को सभ्य और सुसंस्कृत का मेल बताया गया है । हम एडवांस तो हों फैशनबल नहीं , माडरेट हों पर एकदम माडर्न नहीं । हमारी सम्पूर्ण विश्व सभ्यता , संस्कृति में जो पुराना है , उसमें काफी कुछ सँजोकर , सभांल कर रखने की आवश्यकता है , जीवन के हर क्षेत्र में । मैंने एक दो का उदहारण दिया , ऐसे ही हर मामले में समझें । अति से बचें , मध्यम मार्ग अपनाएं । अपने को उन्नत करें परन्तु अपनी संस्कृति का ध्यान रखें । ऐसा न हो आदमी फ़िर से आदम ( पुरानी असभ्यता के ज़माने का ) हो जाय ।

2 comments:

Unknown said...

I am one who got chance to have guardian ship of Dr. Y.N Pathak for around two years, I was just aware about the blogs of Shri Pathak Ji, I think comment can be written by the person who is having knowledge of that level, so I can’t dare for that. I wish with all the reader to spread this web link to all whom you know so that everybody can aware with these precious thoughts of Shri Pathak Ji. I pray with God to give him good health so that one day whole world can get benefited with the words of the great architect (Dr. Y.N Pathak) who put his whole life to groom the students.

Anjaneya Bhardwaj said...

article helped me reposing faith in madhyam marg.......