मूर्त /अमूर्त दोनों में सत्य अनुस्यूत है । मूर्त में अमूर्त रूप में और अमूर्त में मूर्त रूप में । अमूर्त मूर्त रूप में अमूर्त को देखता है। यही हो रहा है ,यही होना है । मूर्त रूप में ईश्वर का साक्षात्कार साकार रूप में ही यथा --मनुष्य ,प्रकृति ,जीव -जंतु में किया जा सकता है । परन्तु सत्य का अमूर्त साक्षात्कार सम्पूर्ण प्रकृति के वैविध्य में स्यूत सत्य ,इस ऐक रूप में ही हो सकता है ,"शुनि शैव श्वपाके च पंडिता समदर्शिना (सह दर्शिना कहिये )। यहाँ सह : सत्य वा परमात्मा वाचक है .
मत्स्य ,कच्छप सुकर ,नरसिंह,वामन पुरुषोत्तम राम ,कृष्ण, बुद्ध ,महाबीर ,नानक,जीसस मुहम्मद और गाँधी ,सभी साकार अवतार हैं .देखिये सत्य के कैसे विकासवादी रूप और अवतार हैं । सब में उसी एक सत्य /उर्जा /शक्ति को देखने की क्षमता अन्तिम और पूर्ण ज्ञान है । हम आप और वह भी उसी के रूप हैं । यही वेद वेदांत कहते है ---सो अहम् अस्मि ** तत् त्वम् असि **सर्व खलु इदं ब्रह्म ** उसके अतिरिक्त और क्या है ? पुनश्च ----"सिया राम मय सब जग जानी । करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी। "
No comments:
Post a Comment