सामान्यतया यही कहा जाता है कि मनुष्य को निर्भय होना चाहिए और यह बात भी सही है परन्तु जीवन में सदाचार और सुचिता के लिए किसी एक का भय जरुरी है । भगवन ने राम चरित मानस में कहा है **अभय होई जो तुम्हई डेराई **यह डर किसी का हो सकता है । स्वयं अपना डर यानिकि अपने स्वाभिमान का डर अपने पद प्रतिष्टा परिवार की परम्पराओं का डर ,लोक का डर जिसे लोकभय भी कहा जाता है लोक लाज भी कहते है । सद्गुणों पर कलंक लगाने का भय और अंत में भगवान /ईश्वर का भय । उपरोक्त में से किसी एक का भय भी रहे तो काम चलेगा ।
जिस ब्यख्ति को उपरोक्त में से किसी का भय नही है उसका पतन अथवा बिनाश निश्चित ही है ,इसमे कोई भी संदेह नहीं है । गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में बहुत स्पष्ट और सूत्र रूप में कहा है ,** करत अनीति जाहि डर नहीं । सो जैहैं थोरे दिन माहीं **।
अतः मनुष्य जो किसी से डरता रहता है वह सदाचार के मार्ग पर चलता रहता है ,किंचित भय से । विनम्रता पूर्बक कहना चाहूँगा ,"कोई डर तो रखो , एक डर , कम से कम भगवान का और निर्भय हो जाओ ।
एक अंग्रेज लेखक कहता है ,"जो आदमी आदमी से छुप कर ग़लत काम करता है ,वह आदमी को तो डरता है परन्तु ईश्वर को सीधे सीधे चुनौती देता है । (ईश्वर तो देखता रहता है न ! )
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