Sunday, December 14, 2008

भक्ति -योग

पतंजलि योग के महारथी हैं । चित्त की वृत्तिओं को रोक देने को योग कहा है । इसके लिए आठ पद कहे हैं -यम् , नियम ,आसन ,प्राणयाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान और समाधि । यम् पॉँच ,अहिंसा ,सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य असंग्रह तथा नियम भी पॉँच ,शौच , संतोष , तप स्वाध्याय ईश्वर प्रणिधान , कुल सोलह की साधना करनी होगी जो सबके लिए संभव नहीं . । (आज प्रायः लोग आसन और प्राणायाम को ही योग ऐसा जानते हैं ) महर्षि पतंजलि ने स्वयं इस कठिन योग का विकल्प बताया है --"ईश्वरप्रनिधानात्वा " इन आठ पदों के स्थान पर केवल ईश्वर के शरण में चले जाओ । क्यों ? वह योग का महा गुरु है । बिना किसी साधना या पदों को पूरा हुए वह तुम्हे समाधि तक पहुँचा देगा । वह निरतिशय , ,सर्वज्ञ का बीज है । उसका नाम प्रणव (ॐ ) है । उसका नाम बार बार लेते रहो , भाव सहित , प्रेम से और योग के सभी पद पर प्रतिष्ठित होते जाओगे ,समाधि तक ,निर्विघ्न ।
पतंजलि कहते है , यह योग मन का विज्ञानं है ,तुम्हारे मन से हिंसा का भाव गया कि लोग तुमसे वैर त्याग देंगे ,चोरी गई कि सम्पन्न हो जाओगे ;तुम में प्रेम जगा कि सब तुम्हे प्रेम करने लगेगें । यह मानसिक योग और अध्यात्मिक विज्ञानं है ,इसमे श्रद्धा विश्वाश केवल तुम्हारे दृढ़ता के लिए है । योग के लिए श्रद्धा विश्वाश की अपेक्षा नहीं है।
इसका सरलतम उपाय हर धर्मं वाले अपने धर्मं में कहे गए ईश्वर का नाम , कोई अपने धर्मं का मंत्र या कोई ध्वनि जो आपको सुबिधा जनक लगे और जब भी जहाँ भी जैसे भी दुहराते रहें ;फल की चिंता ही छोड़ दें। सभी योग के पद आपको एक एक करके प्राप्त होतें जायेगें । केवल आपको बीज बोना है राम नाम का ; फ़िर अंकुर तब पत्तियां और फूल ,फल (समाधि ) प्राप्त होते रहेंगें । (नाम जप साधना ,इसी ब्लॉग में अलग प्रकरण देखें )। पतंजलि का मनतब्य है चित्त का निरोध यानि कि निर्मल मन । "निर्मल मन जन सो मोहिं पावा ; मोहिं कपट छल छिद्र न भावा ।-- " राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसी दासजी । "

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