Friday, February 27, 2009

LEARNIG OF HUMILITY.

Humility is on of the very big virtue of virtues . it's cardinal principle is to respect all you come across . again to define humility to give respect to all and expect none from any one . गोस्वामी तुलसीदास राम चरित मानस में संत के गुणों में एक महान गुण यही बताते है । " सबहि मानप्रद आप अमानी " और फ़िर विद्या ददाति विनयं विनयाद पात्रताम । formal education aims at humility and humility in advance makes one worthy . when one deserve , he gets what he deserves . one of these days we find our youths unable to face the realities of life and become hopeless and stressed in small things unwanted in their career and life . really , defeat is a good lesson in humility . Jesus in Bible says , - those meek and humble are the blessed .
The second quality of humility is that it is full security from any confrontation with any one . humility checks you to become a party and thus no chances of any fight verbal or physical . it also keep you away from debate for debate sake . third is that , it flowers and fruits in full contentment . the man with humility is happy with his lot and needs no more . fourth , man of humility feels that he is rich and happy . one English poet says , - we , those are poor , need not to be rich but those who are rich need to come down if they want to be happy . this he calls his own experience of life being a rich man and also gives the list of the miseries of rich and riches . fifth , humility makes you introvert and studious and provide much time to learn . sixth ,it keeps you away from any kind of stress and indirectly contributes to your health.seventh goodwill for all .
some are born humble , some try to achieve it and aspire for it their whole life and the much they achieve it , much they enjoy it । but when this humility , becomes your nature , you may feel like a citizen of the city of peace and solitude . those who practice devotion to study , duty and God , humility is the first and foremost virtue to be required . humility is also the source of othr virtues . if you have humility , others follow . humility is way to divine life .

O thou dweller in my heart,
open it, purify it,
make it bright and beautiful,
awaken it, prepare it, make it fearless,
make it a blessing to others,
rid it of laziness, free it from doubt,
unite it with all, destroy its bondage,
let thy peaceful music pervade all its works.
Make my heart fixed on thy holy lotus feet
and make it full of joy, full of joy, full of joy.
बापू द्वारा गई जाने वाली प्रार्थना ।
Serenity, regularity, absence of vanity,Sincerity, simplicity, veracity, equanimity, Fixity, non-irritability, adaptability, Humility, tenacity, integrity, nobility, magnanimity, charity, generosity, purity. Practise daily these eighteen "ities" You will soon attain immortality. [Socrates

Wednesday, February 25, 2009

जीवन एक दृष्टि

लोग एक सामान्य सा सवाल उठाते रहते हैंजीवन क्या है ? जीवन की कोई एक परिभाषा नहीं है , तो जीवन का कोई सम्यक सिद्धांत है जो एक समान सब पर लागू किया जा सकेयह एक दृष्टि है , एक विचार है ,एक संभावना है जिसका निर्णय हम और हमारी मनोवृत्तियां ,मूल्प्रवृत्तियां , समय , परिस्थिति , भौगोलिक तथा जलवायु आदि आदि तत्व निर्धारित करते हैंहर आदमी का जीवन के प्रति इन्हीं परिस्थितियों में एक दृष्टिकोण धीरे धीरे और कभी आकस्मिक रूप में निर्धारित होता हैजीवन की विबिधता का कोई आदि अंत नही , यह वैविध्य अनंत हैयह हमारे भीतर चुप चाप विकसित होता रहता है और किसी समय फूल की तरह खिल जाता है , फ़िर तो उसी प्रकार का जीवन हमको घेर लेता है , हम उसी पर चलते रहते हैं , कभी कोई घटना घटी तो बदल भी जाता हैअतः यह विवाद का विषय हो सकता है कि कौन और किस प्रकार का जीवन अच्छा अथवा बुरा है किसी एक की दृष्टि में , पर कैसा जीवन जीना चाहिए इसके लिए कोई अधिकारिक रूप से सिद्धांतों का सामान्यीकरण नहीं किया जा सकताकुछ उदहारण देख कर आगे ख़ुद विचार करें
सामान्यतया अधिकतर सामान्य लोग भौतिक सम्पन्नता को ही उत्तम मानते हैअधिक से अधिक संपत्ति , वैभव , जमीन , राज्य विलासिता के साधन की पूर्ति में सारा जीवन होम कर देते हैं , कुछ तो इन सुबिधाओं का उपभोग करते है और कुछ जुटाते ही जुटाते यहाँ से कूच कर जाते हैतुलसीदास जी कहते है , -डासत ही गयि बीति निशा सब , कबहूँ नाथ नीद भर सोयोसबसे ज्यादा लोग तो इसी श्रेणी के हैं , परन्तु एक महाबीर , बुद्ध और शंकराचार्य भी हैं , जो स्वेच्छा से गरीब हो गएएक बुद्ध है भिखारी , जो राजा से भिखारी हो गए हैं और दूसरे ऐसे लाखों भिखारी हैं , जो राजा बनने के लिए भीख मांग रहे हैशेख चिल्ली की कहानी तो यही हैसारनाथ में दो लोग भिक्षा को निकले हैं , एक जो राज्य छोड़कर भिक्षा मांग रहा है दूसरा जो भिक्षा से जुटा जुटाकर राज्य निर्मित कराने को तत्पर है दोनों दो जीवन हैं ; दो दृष्टिकोण की वजह से
एक के लिए जीवन संघर्ष है , दूसरे के लिए वही चुनौती है , तीसरे के लिए सामान्य जीवन प्रयास है चौथे के लिए आनंद हैएक को संग्रह में आनंद है (बहुसंख्या में ) , दूसरे को त्याग में सुख हैएक को ज्ञान में रूचि है दूसरे को अज्ञान से मोह हैएक को दूसरे की भलाई करने की पड़ी है जैसे , -- मदर टेरेसा और दूसरे को हत्या करने में पुण्य दिखता है जैसे , - आतंकवादीएक कला का पुजारी है , दूसरा निर्माण का तीसरा राजनीति और चौथा धर्म कायह विविधता योजना बद्ध है , प्रकृति की तरफ़ सेसब अपने अपने जीवन दृष्टि और सृष्टि समन्वय के अनुसार ब्यस्त हैं अपना अपना जीवन जीने मेंसृष्टि /प्रकृति की दृष्टि में सब सही हैं , सब अपने मिशन में लगे हैटेनिसन कहता है , - गाड इज इन हेवेन , एंड इवरी थिंग राइट इन वर्ल्ड
एक अंग्रेज कवि ही कहता है , -- मै अकेला परम अब्य्स्त आदमी हूँ जो तो भोजन संग्रह में संतानोत्पत्ति में , गाने में लगा हूँ ; लेकिन मेरी समझ में यह नही आता है कि फूल किसलिए खिल रहे है और नदियाँ और झरने किसके लिए निर्वाध वह रहे हैजरुर कोई उद्देश्य इनका भी होगा , और फ़िर तो मेरा भीकहने का तात्पर्य यह कि यहाँ सभी कुछ , पदार्थ ,जीव और वनस्पतियाँ सार्थक और सोद्देश्य हैं और जो भी कुछ घट रहा और हो रहा सब उचित और प्रायोजित हैसंस्कृत में भी श्लोक है , --सभी अक्षर मन्त्र है ; सभी वनस्पतियाँ औषध हैं ; कोई पुरूष अयोग्य नही है , उसका प्रयोग करने वाला ही दुर्लभ है
इस प्रकार सभी लोग और सभी कार्य अपनी अपनी जगह पर सही हैंअमिय सराहिय अमरता , गरल सराहिय मीचु , अर्थात अमृत की सराहना जीवन की सुरक्षा में है तो विष का महत्व मारने मेंऔर पुनः , -- जो जेहि भाव नीक तेहि सोईसवाल यह जरुर बनता है किसको जीवन का कौन मार्ग , सिद्धांत , तरीका पसंद हैइस पसंद के कारण- तत्व अनेक हैअब विज्ञानं भी कहने लगा है कि बहुत कुछ हमारे जीन में ही है , अतः कुछ हमें जन्म से हासिल है कुछ हम अर्जित करते हैं और कुछ समाज तथा परिस्थितियां निर्धारित करती हैफ़िर भी हमारा रोल महत्व का है , जो वाल्मीकि को कवि , लींकन को राष्ट्राध्यक्ष और बुद्ध को भिक्षु बनता हैइस बनने में वेद भी और विज्ञानं भी यही कहते है कि हमें अच्छा बनने कि प्रेरणा चाहिए , मोटिवेशन
मैं वर्तमान में , भूतपूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब को भारत वर्ष का आदर्श और महान भारतीय मानता हूँ , क्योंकि वे भारत कि संस्कृति और सभ्यता तथा अध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व करते हैंसभी भारतीय लोगों को जिन्हें जीवन दृष्टि पानी है उनके जीवन दर्शन , जीवन दृष्टि , देश प्रेम , कर्तब्यपरायणता , धर्म , अध्यात्म और वैज्ञानिक दृष्टिकोण और फ़िर सब की समन्वयशीलता का अनुशीलन , अवगाहन और अनुपालन करना चाहिएउनका कहना है कि जीवन दृष्टि हेतु प्रार्थना करनी चाहिए ,जिससे उचित मार्गदर्शन मिल सकेमेरी भी यही राय हैअच्छे के लिए प्रार्थना करोसाथ साथ अपनी भूमिका मन से निभाते रहोप्रयास करते रहो , प्रार्थना के साथ

Saturday, February 21, 2009

औपचरिक बनाम मौलिक जीवन

आज की समस्या जिससे अधिकतर लोग परेशान हैं , वह है जीवन में सामाजिक संपर्कों की औपचारिकता और परिणाम स्वरुप अविस्वशनियताहम नमस्कार करते हैं , उसे जिसे शायद गाली देना चाहते हैं , अथवा उसके गीत गाते हैं , जिसे देखना चाहते हैं , पसंद करते हैंहम किसी को बताते फिरते हैं कि , - हम आपको बहुत प्रेम करते हैं ; जो भी हो , एक बात है , मै झूठ नही बोलता ; बताऊँ , मैं आपका बहुत आदर करता हूँ , आदि आदिइस प्रकार के सभी संबोधन आपकी कमजोरी साबित करते हैं और सौ में से नब्बे मामलों में आप का दावा झूठा ही होता हैआपका किसी मामले क्या इरादा है , यह सामान्य आदमी को भी आसानी से मालूम हो जाता है , यदि तुंरत नहीं तो थोड़े समय के बाद , थोड़े ब्यवहार के बाद और बुद्धिमान तो तुंरत ही जान लेता हैइस प्रकार आपका एक सामाजिक स्वरुप संपादित हो जाता है और आप अविस्वशनीय हो जाते हैं
मेरा ऐसा मानना है और अनुभव भी है कि आप में जो विचार आते हैं और जो आप ब्यवहार करते हैं दोनों का संप्रेषण सामान रूप से उसको होता है जिससे आप ब्यवहार करते हैं ; - विचार का विचार से और ब्यवहार का प्रत्यक्ष ; और परिणाम यह होता है कि दोनों का समायोजन नही होता अथवा असंतुलित हो जाता हैएक बात ध्यान देने की यह है कि आप जब इस प्रकार का धोके वाला कम कर रहे होते हैं तो आपका दुहरा नुकसान होता हैपहला यह कि आपका संतुलन आज या कल उस आदमी से बिगड़ जाता है और भेद खुल जाता है दूसरा यह कि अपने जो छल कपट और झूठ का सहारा लिया था वह तो आपको मालूम ही था सो आप अपराध - बोध की भावना से ग्रस्त होते चले जाते हैंआपके अवचेतन मन में यह स्वयं के कदाचरण की अपराध- बोध -भावना एकत्रित होकर निम्न परिणाम लाती है - ब्यख्तित्व दोष - हीनता का भाव - असंतुलित ब्यवहार - समायोजन दोष - मानसिक अस्वस्थ्यता - शारीरिक अस्वस्थ्यता - सामाजिक तथा पारिवारिक स्थितियों में समायोजन की समस्या तथा सम्मान में गिरावट - आत्म ग्लानि और पश्चाताप - पुनर्सुधार में कठिनाई१० - आप द्वारा दूसरों की क्षति
, योग में पतंजलि और महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन दोनों का कहना है , -- हम जो विचार करते हैं ,वह सभी जीवों को संप्रेषित होता रहता है और प्रभावित भी करता रहता हैसंक्षेप में पतंजलि के अनुसार यदि आपके मन में हिंसा , मलीनता , संकीर्णता , इर्ष्या , द्वेष , मित्रता , अमित्रता का भाव है तो वह दूसरे पर भीतर ही भीतर प्रकट हो जाता है और वह भी उसी तरह का ब्यवहार करने को प्रेरित हो जाता हैसूत्र है , - " हिंसा तन्निरोधे वैर त्यागः । " अर्थात यदि आप अपने मन से हिंसा का भाव हटा दें तो आपसे लोग वैर त्याग देंगेआइन्स्टीन के बारे में कहानी है कि जब उनकी बहन कोमा में थी तो वे रोज दो घंटे उसके पास बैठ कर प्लेटो की लिखी किताब पढ़ा करते थे , जब डाक्टरों ने उनसे कहा कि आपकी बहन कोमा में है और आपके इस किताब पढ़ने का क्या लाभ जब वो सुन ही नहीं सकती , तो आइन्स्टीन ने कहा मुझे पता है कि वो सुन रही हैतुलसीदास जी ने भी कहा है , - वैर प्रेम नहिं दुरै दुरांयेअर्थात वैर और प्रेम छिपाने से नहीं छिपतेयह भी बहुत प्रसिद्ध और पुराणी कहावत है , -- " खैर खून खांसी खुशी , वैर प्रीति मदपानसात छिपायें ना छिपे जानत सकल जहान । " इस बात को जानते हुए भी हम दिन रात कोशिश करते रहते है अपने को और अपने ब्यवहार को छिपाने का तो इसे कौन बुद्धिमानी कहेगा
अतः खुला जीवन , सच्चा ब्यवहार , सरल और सीधा रिश्ता ही सुरक्षित और सम्यक समायोजन प्रदान करता हैगाँधी जी कहते है , -- जैसा विचार हो वैसी ही वाणी बोलो और वैसा ही ब्यवहार भी करो इसमे इधर उधर हेर फेर किया तो तुम्हारा ही नुकसान है । " सांच को आंच नहीजो मन में वही भीतरजब हम किसी को नमस्कार करें तो हमारा दिल भी नमस्कार कर रहा होजब हम किसी को प्यार करें तो उसमे पवित्रता भी होहाँ , हम यह भी कहने का साहस रखें कि हम इस बात पर संदेह करते है , हम आप को पसंद नही करते , हम आपसे सहमत नही हैं या नहीं हो सकतेना कहना सीखिए और जब हाँ कहिये तो वह हमेशा हर परस्थिति में हाँ रहे इसकी पूरी कोशिश करिएकिसी का आदर करते हैं तो मन से करेंविरोध खुल कर करें , धोके से नहींयही सच्चा और सीधा जीवन मार्ग है जहाँ आनंद ही आनंद हैयदि हम सरल और सच्चे मार्ग का अनुसरण नही करते तो उसका परिणाम भोगने से हम बच नही सकते , यह ध्रुव सत्य हैफ़िर तो सर धुन धुन कर पश्चाताप ही शेष रहता है