Wednesday, November 10, 2010

जीवन केवल कला नहीं ..................

त्रि-आयामी जीवन ............मनुष्य-जीवन के तीन पहलू हैं ( Three in one / three aspects ) . जीवन विज्ञानं है ; कला है और आनंद भी है , कुछ लोग कहते है जीवन एक कला है , नहीं ! यह जीवन का मात्र  एक पहलू है
1  - आत्मा , परमात्मा ,अस्तित्व और अस्तित्व के तत्व , वैज्ञानिक पहलू हैं -इसे अध्यात्म (Metaphysics ) कहा है - आत्मा का विज्ञानं कहा ,तत्व-ज्ञान कहा .ए ज्ञान के नियम वैसे ही हैं , जैसे गुरुत्वाकर्षण के नियम या गृह /नक्षत्रों के गति के नियम .इसे ही अध्यात्म में परम तत्व और मानवीकरण करके ईश्वर कहा - हम सभी ,सम्पूर्ण श्रृष्टि उसी का अंश या उसी का स्वभावतः प्रदर्शन है .जों परम सत्य है , वही हम भी हैं ,सागर की एक बूंद .बूंद में भी सागर है - सीमा में .
2  - दूसरा पहलू है जीवन की कला ; चेतना ; चेतना की गतिशीलता ;परिवर्तन की प्रतिवद्धता ; सदैव नया होते रहने का स्थायी संस्कार ;हम क्या हैं और क्या होने की क्षमता है हमारे भीतर ; हर ओर ,हर तरफ ,हमें गति - जीवन की लौ की सतत साधना - जलना और प्रकाशित करना तथा होना . यह हमारे नैतिक जीवन का पक्ष है  .
3  - इसे आनंद कहा है - होने की ; होते रहने की अनुभूति का रस-रंजन . सत्य /आत्मा अपनी चेतनता की अनुभूति में आनंद की अनुभूति करने का स्वभाव है . जीवन का सारा प्रयास , सदैव प्रयास और सर्वत्र प्रयास आनंद की खोज है - सभी प्राणियों में , समान रूपसे . सो जीवन आनंद भी है / जीवन आनंद ही है ,जों सत ,चित से उद्भूत हुआ है .
* यही हमारा जीवन है - ' सत -चित-आनंद और यही परम तत्व ,सत्य ,परमात्मा भी है - सत - चित - आनंद यानि कि ''सच्चिदानंद '' हम उसी के अंश हैं .
सो जीवन केवल कला नहीं , विज्ञानं और आनंद भी है - तीनो एक में और इन सबका सम्यक ज्ञान ही 'प्रज्ञान ' कहा है
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#  हमारे अपने जीवन -अर्थों (Aims ) के अतिरिक्त प्रकृति /ईश्वर के भी हमारे लिए कुछ अर्थ /योजना है ;उसे जानने का प्रयास करें .
मनुष्य सिमित निर्णय लेने में समर्थ है ; उत्तेजना /क्रिया और प्रतिक्रिया में एक अवकाश /space होता है .इसी प्रतिक्रिया में हम स्वतंत्र होकर अपना विकास करते हैं .
हमारी जिंदगी हमसे सवाल पूंछती है ;इसका जबाब ही हमारी असल जिंदगी होती है . जबाब हमारी जिम्मेदारी है . अवकास /space में निर्णय सुविचारित हो तो जीवन सफल हो जाए .
सामान्यतया जीने के साधन तो पा जाते हैं पर साध्य / Aim का पता नहीं होता .
इस दुनिया /ब्यक्तिगत जीवन में हम सभी अतुलनीय हैं (Unique) .हम अपना विशेष कार्य पता करें /नक़ल आत्मघाती है .हम दूसरे की सहायता ले सकते है पर उसे लागू अपमे ढंग से करना होगा . हर मिनट, हर घंटे , हर दिन हमारे जिंदगी का अर्थ ,हमारा अलग ही है .
एक विशेष परीस्थिति में हमारे निर्णय लेने की स्वतंत्रता हमारे नजरिये पर (Attitude ) निर्भर है . प्रकाश के लिए जलने का कष्ट सहना होगा . जब हम परिस्थितियों कों बदल न सकें तो हमें ही बदल लेने में बुद्धिमानी है . यही मनुष्य की क्षमता है जों और में नहीं .
मधु मक्खी भोजन के लिए ही फूलों के पास जाती है पर लाखों फूलों का पराग-सेचन कर देती है ;यही उसके द्वारा किया गया प्रकृति -योजना है (लेकिन उसे यह योजना नहीं पता ;शायद ) .ठीक इसी प्रकार हम अपने भोजन ,आवास ,पत्नी और बच्चों के लिए जों भी करते हैं उसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ करते होंगे जों प्रकृति -प्रयोजित होगा - जैसे फूल खिलते है ; झरना /नदी बहती है ,सूरज उगता है ,बादल उड़ते हैं ; सुबह -शाम होती है ;आदि ,आदि . हम अपने भीतर ईश्वर -अंश कों साक्षी बनाकर ,प्रार्थना पूर्वक ,सुविचारित जों भी कार्य करते हैं , वह निश्चय ही हमे सत्य मार्ग पर ले जाए गा . ............  प्रभु प्रार्थना के साथ .
# This portion is based on  thoughts of  --
ViktorFrankl M.D. Ph.D. Neurologist / Psychiatrist ( 1905 - 1997 ) in Jewish  family in Vienna ,an Austrian  who was a prisoner (with his wife  and parents ) / therapist ; wrote his famous book   'Man's Search For Meaning