Friday, November 15, 2013

आलोचना , प्रशंसा और निंदा

आलोचना में दोष और गुण दोनों की  चर्चा होती है, इसका उद्येश्य सकारात्मक , सुधारात्मक , सहयोगात्मक होता है आलोचना करने वाले की नियति शुभ और कल्याणकारी होती है [ यह जरूरी , लाभकारी है ]
प्रशंशा उत्तम होती है इसमें विचार , बस्तु और ब्यक्ति के दोषो को नज़रअंदाज़ कर उनके गुणो को ही देखने की ,  परम्परा है , उत्तम ब्यक्ति मित्र-शत्रु के साथ सामान रूप से यही करते  है …ज़ैसे गांधी जी ने अंग्रेजो के गुणो की  याद दिला कर उनसे स्वतंत्रता की मांग की और बार बार अंग्रेजों को बाइबिल के सूत्र याद कराये। …एक बार किसी अंग्रेज ने उनसे पूंछा - '' आपने दुश्मनो को , आपको गाली देने वाले और आप पर अंडे फेंकने वालों को कोर्ट में क्षमा करना खान से सीखा  ? '' गांधी जी ने तुरंत उत्तर दिया - '' आप अंग्रेजों से और आपके धर्म ग्रन्थ बाइबिल से '' श्री राम और कृष्ण और अन्य भारतीय महापुरुषों के तो ऐसे सैकङों उदाहरण हैं जिनमे इन लोगों ने अपने दुश्मनों के   गुणों की   प्रशंसा  की है, और उनके कल्याण की  चिंता और अपेक्षा की ।
निंदा को तुलसी दास जी ने और   वेदों में भी   महा -पाप कहा है , - '' पर निंदा सम  अघ न गिरीसा '' .......  जो  भीतर से  रुग्ण  हैं  , मानसिक रोगी  , निकृष्ट नियति वाले  , उन्हें तो सभी विचार , बस्तु , ब्यक्ति दोषी  ही दिखता है , जो कलुषित और ऋणात्मक मानसिकता के हैं  , वे निंदा करते ही जीते और निंदा करते ही मर जाते हैं। … एक बार एक सज्जन ने न्यूटन से कहा - '' आपकी कोट में एक छेद है '' न्यूटन ने कहा - आपे दिमाक में वह छेद है  , जिसे हर जगह छेद  ही दिखेगा और कुछ न दिख सकेगा '' [ बस्तुतः श्रीष्टि में हर जगह हर विचार , बस्तु , ब्यक्ति में कुछ कमी है , होती ही है  , तो ऋणात्मक लोग उसी को खोजते फिरते  , जीते मरते हैं , पाप कमातेहै
महानता देखिये कबीर जैसा महापुरुष निंदक में भी गुण  ही देखते हैं। ....'' निंदक नियरे राखिये '' लेकि हम  तो कबीर नहीं हैं न !!!
जब हम  दूसरों की  आलोचना , प्रशंसा अथवा निंदा करते होते हैं तो  उनके विषय में उतना नहीं कह पाते जितना  खुद अपने बारे में उजागर करते हैं ( रोशा परीक्षण ) …।  आप जब हमारे बारे में कुछ कहते हैं , तो हम  आपके बारे में तुरंत उतने से ज्यादे  ही जान जाते हैं जितना आप हमको नहीं जानते होते …।निंदा और निंदक के विषय में सबसे बड़ी कटूक्ति है। …  ''सूरज पर थूकना ''


Monday, November 11, 2013

इतिहास बनाम कथा

इतिहास सत्य और तथ्य होता है , आदर्श और   नैतिक नहीं होता
कथा , नावेल /उपन्यास , पैराबल इतिहास पर आधारित होते हैं
परन्तु कथा आदि उपरोक्त सच नहीं होते , आदर्श होते है / नैतिक आचरण प्रस्तुत करते हैं
* राम , रावण ,बुद्ध , सिकंदर लाखों   होते रहते  है
एक राम  एक जीवन पद्धति और एक ,रावण , बुद्ध ,सिकंदर की कथा दूसरे  जीवन पद्धतियों की  प्रतिनिधि कथाएं होती हैं। 
यही प्रतिनिधि कथाये सभी  मनुष्यों पर लागू होती रहती हैं
प्रकृति  और परमात्मा के स्तर  पर कोई बुरा , भला और . नैतिक , अनैतिक    नहीं  होता है।  अपितु रावण राम का पूरक होता है , रावण से राम होने कि प्रक्रिया चलती ही रहती है ,    जो रावण पूरा /परफेक्ट  हो जाय  तो राम भी  समाप्त हो जांय
मनुष्य  के  स्तर पर राम  अच्छे  भले , पुण्यात्मा और रावण   बुरा , अपराधी और राक्षस है

संसार , समाज का बौद्धिक बहुमत श्री राम और बुद्ध , कृष्ण , गांधी को जीवन  आदर्श मानता  है
'' महाजनो येन गता सः पंथा। '' = बड़े लोग जिधर से जांय वही जीवन का श्रेय मार्ग है
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राम चरित मानस में तुलसीदास - [ '' तब तब धरि  प्रभु विवध शरीरा , और , '' राम अनेक अनेक नामानी '' ,  हरि  अनंत हरि कथा अनंता '' आदि आदि]