Sunday, February 26, 2012

WORTHY OF ......ऋत का नियम

पतिंगे जलने के  , कीड़े-मकोड़े , कुचले जाने के  , आलसी दुर्भाग्य के  , अपराधी दंड के  ,अहंकारी पतन के  ,अधर्मी /अनैतिक , दुःख के  और सज्जन परोपकारी पुरुष सुख और प्रसन्नता के स्वाभाविक /स्वयं , हकदार/पात्र हैं . यही ऋत का नियम है .
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दो0-दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज।।22।। 
श्री राम के राज्य में दंड केवल सन्यासियों के हाथ में है (छड़ी) , समाज में कोई अपराधी ही नहीं सो दंड  ( सजा) शब्द नहीं रहा ...इसी तरह  '' भेद ''  शब्द का प्रयोग नर्तकों और नृत्य में प्रयोग होता है - यानि कि ,संगीत में स्वर भेद , समाज में कोई भेद नहीं रहा सब बराबर के नागरिक हैं ; न कोई विरोधी है न कोई युद्ध , अतः  '' जीतो ' शब्द निरर्थक हो गया है , जीतो शब्द का प्रयोग केवल मन को जीतने के लिए ही प्रयुक्त होता है .
 ; तुलसी दास - राम चरित  मानस , उत्तर कांड 
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बहुरि नहिं आना एहि देस ॥
जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नही  संदेस  ;  सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस ,  जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस
चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस  , ज्ञानी, गुनी, चतुर अरु कविता, राजा रंक नरेस
कोइ राम कोइ रहिम बखानै, कोइ कहै आदेस  , नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूढि फिरें चहुँ देस
 कबीर

Monday, February 13, 2012

USE & MISUSE

ईश्वर / प्रकृति ने  श्रृष्टि  में सबसे अधिक बुद्धि और उसे प्रयुक्त करने की स्वतंत्रता आदमी के हिस्से में डाली तो उसने इसका अत्यधिक उपयोग मूर्खता- पूर्ण क्रिया -कलापों में ही किया और भोगा भी खूब . देखो - उसने पत्थरों  को देवता बना दिया और आदमियों को , दास , दलित , अछूत और घृणास्पद बना दिया  ....फूलों में उसे नजर नहीं आया भगवान् , उसे तोड़-गूँथ कर पत्थरों पर ड़ाल दिया ...जिस माँ से पैदा हुआ , उसे खरीदा  ,बेंचा , नचाया , नोचा और निर्वस्त्र किया ....अब परमाणु -अश्त्रों और युद्ध की तैयारी में लगा है ....तब , अबकी ईश्वर दूसरा आदमी बनाएगा , दूसरे तरह का जो जडवत ही हो और वही करे जिसके लिए बना हो -जैसे गुलाब  की तरह  खिले ,महके या काँटों की मानिंद केवल चुभे ? तुर्रा ए कि आदमी अपनी बुद्धिमत्ता पर फ़क्र करता है , वो तो है  , लेकिन अपनी मूर्खता पर हंसना भी होगा 

क्या आप उदार चरित हैं ? नहीं तो कोशिस करें /

क्या आप उदार चरित हैं ? नहीं तो कोशिस करें /
फेस बुक के एक मित्र कोई 'पाठक' ही  जौनपुर  (मेरा होम टाउन ) के जिन्हें देश में और कुछ लोगों की तरह ,हिन्दू ,राष्ट्र भक्त भारतीय धर्म और संस्कृति के रक्षक /समर्थक होने का कभी भी न मिटने वाला पागलपन और भ्रम है ,मेरे अपडेट्स पर भद्दे , मूर्खतापूर्ण ,साम्प्रदायिक कमेन्ट करते रहे , ख़ास कर मुसलमानों के प्रति /उनके धर्म /ग्रन्थ के प्रति . जब हद हुई तो मुझे मजबूरी में उन्हें निकालना और ब्लाक करना पड़ा , तब उनका असली रूप दिखा और वे मुझे खोजते हुए मेरे ब्लॉग पर आये और खूब गालियाँ लिखीं - प्रिय पाठक जी के माध्यम से मैं ऐसे विचारों वाले देश भक्तों से निवेदन करूँ कि वे भारतीय - आत्मा को इस श्लोक  से जाने समझे और थोड़ा सा उदार बने -----''
अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम् / उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् //''
Thought like "it  is mine or that is another's" occur only to d narrow minded . To d  broad-minded persons d whole world is a family.
पुनश्च  ---- '' मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा / ते निज ओर न लाउब भोरा // बायस पलिहैं अति अनुरागा / होहिं निरामिष कबहुं कि कागा //'' ( तुलसी मानस में ).......अन्य धर्मों में भी लोग इसी तरह के हैं , इनसे बच के रहें ,,,हर सोच /कार्य /ब्यवहार में ध्यान दें - क्या आप उदार हैं ? नहीं तो अपने को थोड़ा बदलने की कोशिस करें ....भारतीय होने का यही पहला लक्षण है .
ps -In d same way I had to unfriend &  block one muslim friend also on f-book .
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Thursday, February 9, 2012

GROW WISE ...

श्रोता  सचेत न हो और जागरूकता से न सुने , समझे तो लाखों ग्रन्थ ,कथा , उपदेश , प्रवचन दीजिये , सब ब्यर्थ ही है (हजारों लाखो साल से इसी तरह की कोशिशें चली हैं )....परन्तु यदि श्रोता सचेत हो सुने तो ''मौन ही काफी है ''इसी से बुद्ध ने मौन को सर्वोत्तम अभिब्यक्ति  कहा .तुलसी दास ने भी मौन को प्रथम , ध्वनि को दूसरे , शब्द को तीसरे ,  रसों को चौथे ,  छंद को पांचवें  स्तर का श्रोता कहा है मानस में .
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सीधा सा उपाय है  , - जो  ब्यक्ति प्रकृति / परमात्मा / ऋत / विधि (नियम) के अनुकूल चलता है ; उसे भी प्रकृति ,परमात्मा , ऋत , विधि  और सभी का सहयोग /अनुकूलता प्राप्त होती है और तदैव सुख ,सम्पन्नता , संतोष आनंद मिलता ही है , इसके उलट जो इन के प्रतिकूल जीवन को ले जाता है उसे नियमतः दुःख, निराशा , असंतोष , असफलता मिलती है और फिर लोग अपने को दोष न देकर ईश्वर को अन्यायी और दोषी कहते फिरते है , भाग्य को कोसते हैं - कबीर कहते हैं -- '' करता था तो क्यों किया ? अब करि क्यों पछताय  / बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ  से खाय ?
 अक्ल अय्यार * है सो भेस  बदल लेती है  / इश्क बेचारा , न जाहिद1 है  , न मुल्ला न  , हाकिम
* चालाक /धूर्त ; 1 - संयमी /नैतिक


Wednesday, February 8, 2012

“Rtam, Satyam, Vijnani”

“Rtam, Satyam, Dharmmam”- Cosmic Laws = (Rta) are eternal truths (Satyam) and following these Laws of Nature is Vedic Dharma
 Rtam, Satyam, Vijnani” Rig Veda 1-75-5- knowing and finding out these Laws of Nature (Rta) is ''Knowledge ''.
तुमने बहुत बड़ी बात कही शायद ए तुम्हे  पता भी न हो कि तुमने कितना बड़ा सवाल उठाया ? मैं जैसा चाहता हूँ शब्दों को वैसा मोड़ कर अर्थ दे देता हूँ , पर ऐसा नहीं है , ऋग वेद में एक शब्द आया है ''ऋत ''यह न ईश्वर है , न देवता , यह एक नियामक शक्ति है '' रूल्स ऑव ला ''  उसी से सारी श्रृष्टि अपने आप चलती है , जो इस नियम से दूर /प्रतिकूल जाता है वह नियमों के तहत उसका दंड भोगता है और जो नियमों के पास से /अनुकूल चलता है उसे उसके लाभ मिलते है , बस ! तो प्रभु -कृपा से , हो सकता है मैं उसके थोड़ा अनुकूल होऊं , तो जो भी , सोचता , बोलता , लिखता , करता हूँ वह सबको  अनुकूल /पसंद /ग्राह्य /उपयुक्त लगने लगता है , तुम देखो भला मेरे में क्या काबलियत थी ? कुछ  नहीं  न ?पर कैसे स्कूल चलता था , साफ़ दिल से , प्रेम से , इमानदारी से , सद्भाव से , यही ऋत के अनुकूल है , सो जो लिखता हूँ तुम्हे और लोगों को पसंद आता है , यह मेरा गुण नहीं  है जहाँ मैं हूँ उसका कमाल है , मुझे ख़ुशी है तुम बुद्धिमान हो रहे हो , उपर ऋग वेद का सूत्र लिखा हूँ , हिंदी में लिखा जिससे तुम ठीक से समझ सको , बहुत बहुत स्नेह , शुभ कामना , प्रार्थना .

Wednesday, February 1, 2012

रावण का भी एक चरित्र था ...

श्री राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे पर रावण का भी एक चरित्र था .....वह बलात्कारी नहीं था , वह युद्ध से जीत कर , धोके और चोरी से उन औरतों को प्राप्त कर लेता था , जो उसे पसंद आती थीं (अति कामी था ) , पर किसी भी औरत से बिना उसकी स्वीकृति शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाता न जबरदस्ती रेप  करता था (आज हमारे समाज में रावण से भी गये गुजरे लोग  हैं , कारण न्याय की कमी और नैतिक पतन )'
एक और कथा आती है - एक बार जब रावण ने अपने भाई कुम्भकरण से कहा कि सीता उसे पति -रूप में स्वीकार नहीं कर रही  है तो कुम्भकरण ने सलाह दी  - '' तुम तो मायावी हो , क्यों नहीं राम का रूप बना कर सीता के सामने जाते '' . रावण ने कहा, ''ऐसी कोशिश  मैंने की , पर जब मैं राम का रूप धारण करता हूँ तो मेरी काम-वासना ही नष्ट हो जाती है '' ऐसा है श्री राम का चरित्र .
* कथाएं सत्य नहीं होती पर वे जीवन-सत्य का निरूपण करती है ; इतिहास सत्य होता है पर उसमे जीवन -सत्य नहीं , ...जीवन की भूलें होती हैं -- हम दोनों से , दो तरह से सीखते हैं (आगमन और निगमन )