Tuesday, November 6, 2012

हकीकत ..

हकीकत .............................
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चलो ए  फ़र्ज़ करते है ,
कि तुम मशरिक़   ; मैं मगरिब
चलो ए मान लेते हैं ।
बहुत लंबा सफ़र है ए
मगर ए भी हकीकत है
तुम्हारी जात का सूरज ;
मेरी हस्ती में डूबेगा ।
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मशरिक़ ; मगरिब = पूरब ;पश्चिम /उदयाचल ; अस्ताचल // जात ,हस्ती = अस्तित्व /जीवन.....
 REALITY - Suppose , u r east n I am west , agreed ; it's a long long journey no doubt ,  bt it's also a reality that yr Sun(rose in east) sets in my existence (west).

{ quoted by Riya}
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 अगर 'चे   दो  किनारों  का  कहीं  संगम  नहीं  होता ,
मगर  एक  साथ  चलना  भी  तो  कोई  कम  नहीं  होता ,
बदन  से  रूह  जाती  है  तो  बिछती  है  सफ्फ -ए-मातम ,
मगर  किरदार  मर   जाए  तो  क्यूँ  मातम  नहीं  होता ?
हज़ारों  ज़ुल्मतों  में  भी , जवान  रहती  है  , लौ  उसकी ,
चराग़े -इश्क  जलता  है  ,  तो  फिर  मद्धम  नहीं  होता ,
वो  आँखें  एक  लुटा  घर  हैं , जहाँ  आंसू  नहीं  रहते ,
वो  दिल  पत्थर  है , जिस  दिल  में  किसी  का  ग़म  नहीं  होता ...!!
- जावेद अख्तर

Thursday, September 6, 2012

.हम और परमात्मा

ॐ हरी .......
.'' कर्म प्रधान विश्व  करि   राखा / जो जस करै , सो तस फल चखा  [मानस में तुलसी ]
कहा जाता है परमात्मा ने मनुष्य को अपने ही प्रतिरूप में बनाया ,परमात्मा असीमित , परम स्वतंत्र और  त्रुटि रहित चैतन्य शक्ति है जिसके विचार और कार्य एक ही होते है जब कि मनुष्य को विचार को कार्य में बदलना होता है , मनुष्य को  उसके भिन्न भिन्न उत्तेजनाओं और परिस्थितियों में निर्णय लेने में एक स्वतन्त्रता तो होती है पर यह स्वतंत्रता केवल निर्णय लेने तक रहती है , निर्णय लेने के बाद कार्य कर लेने या हो जाने पर उसकी स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है और कृत कार्य के अनुसार फल निश्चित हो जाता है ,.... यही मनुष्य की स्वतंत्रता ही उसके दुःख का कारण भी बन जाती  है , तब ,  जब वह निर्णय लेने में गलती करता है , चाहे  जान बूझ कर या चूक से , तब उसे इस कर्म -फल  को  भोगना  ही पड़ता है जो उसने कर लिया है ....सो मनुष्य की स्वतन्त्रता ही उसके सुख दुःख का कारण भी है , बुद्ध ने भी कुछ ऐसा ही कहा है और हमारे वेदान्त और गीता , मानस भी यही कहते है ....इमैनुअल कैंट तो कर्म और फल को एक ही बताता है  ....अतः कर्म -निर्णय लेने में चूक न होने पाए इस लिए हम ईश्वर से प्रार्थना करते है , क्योंकि हम उसी के अंश हैं और हमारी चेतना से परमात्मा / वैश्विक चेतना से  सदा  ही संपर्क , सम्बन्ध बना रहता है ..कहिये परमात्मा का एक अंश हमारे रोम रोम में ब्याप्त हुआ रहता है 

Wednesday, September 5, 2012

CRITICISM

 राधा कृष्णन जी की याद में .......
दो  सीखें ...... पहली बात , * टच - स्टोन मेथड .....जब मै हाई स्कूल इंटर में पढ़ता था , छोटी छोटी कवितायें लिखता और सोचता बड़ा होकर कवि  बनूंगा . एम् .ए अंग्रेजी में मुझे अर्नोल्ड का एक तरीका  पसंद आ गया कि किसी कविता कि गुणवत्ता जांचनी हो तो तो एक काम करो  - अपनी कविता को किसी बड़े कवि  जैसे कालिदास , ब्यास , वाल्मीकि , तुलसी , कबीर , प्रसाद , के दो एक लाइनों से मिलाओ  ( उसने अंग्रेजी कवियोँ का नाम लिखा है ) अगर तुम्हारी कविता उस जोड़ ,  स्तर की हो तो लिखो और समझो तुम कवि हो . उसी दिन से मेरी कविता लिखने और कवि बनने की बात खतम हो गयी , मैं कविता लिखता , मिलाता और फाड़ कर फेंक देता ...सो कवि बनने का सपना धुल गया (हाँ कुछ इधर उधर की तुकबंदी कर लेता हूँ )
दूसरी बात सीखी राधाकृष्णन जी से ......(आज भी मेरे बहुत मित्र , शुभ चिन्तक कहते हैं - सर ! किताब क्यों नहीं लिखते आप ? )....तो एक बार राधा कृष्णन का इलाहाबाद वि . वि . में आना हुआ , वे भाषण के बाद सवालों का जबाब देते थे ....सो एक छात्र ने सवाल किया , सर ! आप हमेशा , वेद , उपनिषद और महान लेखकों , कवियों के कोट्स /उद्धरण ही देते हैं , कुछ अपनी बात नहीं कहते , तो राधा कृष्णन ने संस्कृत का एक और कोट कहा  जिसका अर्थ है = हमारे ग्रंथों , लेखकों , कवियों और चिंतकों ने जीवन -दर्शन और नैतिक जीवन तथा सत्य/ईश्वर के बारे में इतना उन्नत लिख दिया है कि और कुछ नया लिखने की जरूरत नहीं है,विकल्प /संभावना भी नहीं दिखती  , पर जो लिखा गया है उसे ही समझ लेने और जीवन में जितना हो सके उतारने की जरूरत है .( सो .....मैं , जो लिखा है उसे ही पढने और समझने , लागू करने में लगा हूँ , अब उपनिषदों से अच्छा लिखूं , तो जरूर लिखूं , सो किताब लिखने का कोई इरादा भी नहीं रहा ) {विज्ञानं और लाइफ साइंस के खोजों पर यह कथन लागू नहीं , और मेरा यह क्षेत्र नहीं है , सो इस क्षेत्र में लोग खोजें और जरूर लिखें या फिर साहित्य के क्षेत्र में कोई बड़ी लकीर खींचें }
*Matthew Arnold’s ( अ विक्टोरियन क्रिटिक ) touchstone method is a comparative method of criticism. According to this method, in order to judge a poet's work properly, a critic should compare it to passages taken from works of great masters of poetry, and that these passages should be applied as touchstones to other poetry. Even a single line or selected quotation will serve the purpose. If the other work moves us in the same way as these lines and expressions do, then it is really a great work, otherwise not.....आज कल प्रायः लोग पैसे वाले ,भ्रष्टाचार से धन कमाए हुए , पदों वाले , कि वे बड़े विद्वान् और ऋषि जैसे हैं ,  न कि ऐरू -गेरू , और कुछ कवि ,लेखक ऐसा होने की लालच में कुछ खाद गोबर लिख कर छपवा लेते हैं और सबको बांटते हैं कि देखो मैं लेखक /कवि हूँ , उन्हें कोई पढ़ता नहीं , मेरे पास ऐसी पचासों पुस्तकें पड़ी हैं , जो मेरे बच्चे कभी रद्दी में बेचेंगे , ऐसी कविताएँ और लेख , नावेल , मैं तो रोज  कहता रहूँ , लोग लिख लें , पर क्या फायदा ? अर्नोल्ड और राधा कृष्णन लिखने की अनुमति नहीं देते .....मैं तो पढने में संतुष्ट और आनंदित हूँ .

Thursday, August 23, 2012

AWARENESS OF THE SELF

जब मैं बीएचयू  से बी एड  कर रहा था तो मेरी दोस्ती  बीएचयू के  दो प्राध्यापकों से हुई , जो कैम्पस में निवास न पाने के कारण मेरे साथ अस्थायी रूप से किंग एडवर्ड होस्टल में ही रहते थे , एक गणित के थे और दूसरे अंग्रेजी के , दोनों ही अपने बैच के टापर  थे , तो वे दोनों शाम को थोड़ा पीते थे , एक दिन चर्चा में उन दोनों ने मुझे सलाह  करी कि मुझे भी पीना चाहिए तो मैंने उन्हें उमर  खैयाम की एक *रूबाई सुनाई जिसे मैंने 1964 में पढ़ा और समझा था , उसकी ब्याख्या भी मैंने की और वे दोनों इतने प्रभावित हुए कि दुसरे दिन से पीने को अलविदा कर दिया , मैंने जो कहा था , वह यह था ------- जो नशे में होते हैं वे पीते हैं , क्षमा करिएगा , मैं तो होश में रहता हूँ , बस्तुतः आज के लोग जिसमे आप लोग भी दुर्भाग्य से शामिल है अधिकतर हमेशा नशे में ही रहते हैं यानि कि बेहोश ,लोगों का जीवन इतना जटिल हो गया है कि उन्हें अपने स्व /सेल्फ का ज्ञान  ही नहीं रह गया है , वे भूल गये हैं कि , वे है क्या और कौन ? इसलिए वे कोई न कोई नशा करते हैं और तब उस नशे में उनको होश आता है कि वे कौन हैं .स्व का ज्ञान होता है , इसी लिए , अपराधी या सड़क का मजनू जब पी लेता है तो उसका स्वाभिमान कहता है - कौन पुलिस ? कौन एस पी ? मेरे आगे कोई नहीं , मैं हूँ , मैं ! और इसिलए आज के फददू कवि पीकर कविताएँ लिखते / करते हैं .....असलियत में लोग नशे के लिए नहीं होश के लिए पीते हैं , बेहोश तो वे पहले से हैं ........इसलिए जो होश में हैं वे क्यों पियेंगे , भला ? ''
अब उमर ने जो लिखा उसकी ब्याख्या देखिये ---'' हाँ  ! कल मैंने  न पीने की कसम खाई थी , हाँ खाई तो थी  , न पीने की कसम , परन्तु जब ये कसम खायी थी ,उस समय मैं होश में कहाँ था , होश में तो अब आया हूँ , ( जब पीने के इरादे में हूँ .............सारे ब्यसनी जो किसी न किसी नशे में हैं वे सब बस्तुतः बेहोशी की हालत में हैं , वो चाहे शराब का नशा हो सिगरेट का , सिनेमा का , या धन , काम , मोह-लोभ का , दुश्मनी का, घृणा का , क्रोध का या या लम्पटता का सब नशे में हैं ,बेहोश हैं , किसी को स्व का ज्ञान नहीं , इसीसे इतना दुःख ,असंतोष , भ्रष्टाचार ,हिंसा , धार्मिक ढोंग और चीत्कार ब्याप्त है ....स्व का जिसे ज्ञान है वही इन सब से मुक्त है और आनन्द मैं है .
* Indeed, indeed, Repentance oft before
 I swore but was I sober when I swore?
 And then and then came Spring, and Rose-in-hand
 My thread-bare Penitence apieces tore.
 >>> Rubaiyat of Omar Khayyam by Edward FitzGerald

Monday, March 5, 2012

THE VAIDIK THEORY OF ONENESS '' EKOAHAM ''

एकक अजीब बात , अजीब तो नहीं , सच है पर यह बात सामान्य ब्यक्ति को अजीब सी लगेगी ...वह यह कि हम आप जो भी  सोचते , करते हैं उसको हम आप जानते हैं , और जो हम आप जानते है , उसको सारा अस्तित्व जान जाता है . आज कल , देर सबेर दस साल या बीस साल बाद , कोई कुछ छुपा नहीं सकता ; ए बात और है कि कोई उसे जानना न चाहे या जानकार अनजान बना रहे या उदासीन हो . इसी नियम से सारे अपराधी और सच्चे लोग बदनाम या प्रसिद्द हो जाते हैं ...सो हमारे वेदों में कहा , मन ,वचन , कर्म में एक ही रहो , तो तुम्हे कोई दिक्कत नहीं होगी ,,,,ऐसा  वेद के एकत्व के सिद्धांत के तहत होता है -सब कुछ इस अस्तित्व में परस्पर एक ही है

होली पर प्रभु-प्रार्थना के साथ ,स्नेह .सद्भाव और मंगल कामना ,सभी के लिए //

Sunday, February 26, 2012

WORTHY OF ......ऋत का नियम

पतिंगे जलने के  , कीड़े-मकोड़े , कुचले जाने के  , आलसी दुर्भाग्य के  , अपराधी दंड के  ,अहंकारी पतन के  ,अधर्मी /अनैतिक , दुःख के  और सज्जन परोपकारी पुरुष सुख और प्रसन्नता के स्वाभाविक /स्वयं , हकदार/पात्र हैं . यही ऋत का नियम है .
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दो0-दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज।।22।। 
श्री राम के राज्य में दंड केवल सन्यासियों के हाथ में है (छड़ी) , समाज में कोई अपराधी ही नहीं सो दंड  ( सजा) शब्द नहीं रहा ...इसी तरह  '' भेद ''  शब्द का प्रयोग नर्तकों और नृत्य में प्रयोग होता है - यानि कि ,संगीत में स्वर भेद , समाज में कोई भेद नहीं रहा सब बराबर के नागरिक हैं ; न कोई विरोधी है न कोई युद्ध , अतः  '' जीतो ' शब्द निरर्थक हो गया है , जीतो शब्द का प्रयोग केवल मन को जीतने के लिए ही प्रयुक्त होता है .
 ; तुलसी दास - राम चरित  मानस , उत्तर कांड 
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बहुरि नहिं आना एहि देस ॥
जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नही  संदेस  ;  सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस ,  जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस
चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस  , ज्ञानी, गुनी, चतुर अरु कविता, राजा रंक नरेस
कोइ राम कोइ रहिम बखानै, कोइ कहै आदेस  , नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूढि फिरें चहुँ देस
 कबीर

Monday, February 13, 2012

USE & MISUSE

ईश्वर / प्रकृति ने  श्रृष्टि  में सबसे अधिक बुद्धि और उसे प्रयुक्त करने की स्वतंत्रता आदमी के हिस्से में डाली तो उसने इसका अत्यधिक उपयोग मूर्खता- पूर्ण क्रिया -कलापों में ही किया और भोगा भी खूब . देखो - उसने पत्थरों  को देवता बना दिया और आदमियों को , दास , दलित , अछूत और घृणास्पद बना दिया  ....फूलों में उसे नजर नहीं आया भगवान् , उसे तोड़-गूँथ कर पत्थरों पर ड़ाल दिया ...जिस माँ से पैदा हुआ , उसे खरीदा  ,बेंचा , नचाया , नोचा और निर्वस्त्र किया ....अब परमाणु -अश्त्रों और युद्ध की तैयारी में लगा है ....तब , अबकी ईश्वर दूसरा आदमी बनाएगा , दूसरे तरह का जो जडवत ही हो और वही करे जिसके लिए बना हो -जैसे गुलाब  की तरह  खिले ,महके या काँटों की मानिंद केवल चुभे ? तुर्रा ए कि आदमी अपनी बुद्धिमत्ता पर फ़क्र करता है , वो तो है  , लेकिन अपनी मूर्खता पर हंसना भी होगा 

क्या आप उदार चरित हैं ? नहीं तो कोशिस करें /

क्या आप उदार चरित हैं ? नहीं तो कोशिस करें /
फेस बुक के एक मित्र कोई 'पाठक' ही  जौनपुर  (मेरा होम टाउन ) के जिन्हें देश में और कुछ लोगों की तरह ,हिन्दू ,राष्ट्र भक्त भारतीय धर्म और संस्कृति के रक्षक /समर्थक होने का कभी भी न मिटने वाला पागलपन और भ्रम है ,मेरे अपडेट्स पर भद्दे , मूर्खतापूर्ण ,साम्प्रदायिक कमेन्ट करते रहे , ख़ास कर मुसलमानों के प्रति /उनके धर्म /ग्रन्थ के प्रति . जब हद हुई तो मुझे मजबूरी में उन्हें निकालना और ब्लाक करना पड़ा , तब उनका असली रूप दिखा और वे मुझे खोजते हुए मेरे ब्लॉग पर आये और खूब गालियाँ लिखीं - प्रिय पाठक जी के माध्यम से मैं ऐसे विचारों वाले देश भक्तों से निवेदन करूँ कि वे भारतीय - आत्मा को इस श्लोक  से जाने समझे और थोड़ा सा उदार बने -----''
अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम् / उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् //''
Thought like "it  is mine or that is another's" occur only to d narrow minded . To d  broad-minded persons d whole world is a family.
पुनश्च  ---- '' मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा / ते निज ओर न लाउब भोरा // बायस पलिहैं अति अनुरागा / होहिं निरामिष कबहुं कि कागा //'' ( तुलसी मानस में ).......अन्य धर्मों में भी लोग इसी तरह के हैं , इनसे बच के रहें ,,,हर सोच /कार्य /ब्यवहार में ध्यान दें - क्या आप उदार हैं ? नहीं तो अपने को थोड़ा बदलने की कोशिस करें ....भारतीय होने का यही पहला लक्षण है .
ps -In d same way I had to unfriend &  block one muslim friend also on f-book .
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Thursday, February 9, 2012

GROW WISE ...

श्रोता  सचेत न हो और जागरूकता से न सुने , समझे तो लाखों ग्रन्थ ,कथा , उपदेश , प्रवचन दीजिये , सब ब्यर्थ ही है (हजारों लाखो साल से इसी तरह की कोशिशें चली हैं )....परन्तु यदि श्रोता सचेत हो सुने तो ''मौन ही काफी है ''इसी से बुद्ध ने मौन को सर्वोत्तम अभिब्यक्ति  कहा .तुलसी दास ने भी मौन को प्रथम , ध्वनि को दूसरे , शब्द को तीसरे ,  रसों को चौथे ,  छंद को पांचवें  स्तर का श्रोता कहा है मानस में .
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सीधा सा उपाय है  , - जो  ब्यक्ति प्रकृति / परमात्मा / ऋत / विधि (नियम) के अनुकूल चलता है ; उसे भी प्रकृति ,परमात्मा , ऋत , विधि  और सभी का सहयोग /अनुकूलता प्राप्त होती है और तदैव सुख ,सम्पन्नता , संतोष आनंद मिलता ही है , इसके उलट जो इन के प्रतिकूल जीवन को ले जाता है उसे नियमतः दुःख, निराशा , असंतोष , असफलता मिलती है और फिर लोग अपने को दोष न देकर ईश्वर को अन्यायी और दोषी कहते फिरते है , भाग्य को कोसते हैं - कबीर कहते हैं -- '' करता था तो क्यों किया ? अब करि क्यों पछताय  / बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ  से खाय ?
 अक्ल अय्यार * है सो भेस  बदल लेती है  / इश्क बेचारा , न जाहिद1 है  , न मुल्ला न  , हाकिम
* चालाक /धूर्त ; 1 - संयमी /नैतिक


Wednesday, February 8, 2012

“Rtam, Satyam, Vijnani”

“Rtam, Satyam, Dharmmam”- Cosmic Laws = (Rta) are eternal truths (Satyam) and following these Laws of Nature is Vedic Dharma
 Rtam, Satyam, Vijnani” Rig Veda 1-75-5- knowing and finding out these Laws of Nature (Rta) is ''Knowledge ''.
तुमने बहुत बड़ी बात कही शायद ए तुम्हे  पता भी न हो कि तुमने कितना बड़ा सवाल उठाया ? मैं जैसा चाहता हूँ शब्दों को वैसा मोड़ कर अर्थ दे देता हूँ , पर ऐसा नहीं है , ऋग वेद में एक शब्द आया है ''ऋत ''यह न ईश्वर है , न देवता , यह एक नियामक शक्ति है '' रूल्स ऑव ला ''  उसी से सारी श्रृष्टि अपने आप चलती है , जो इस नियम से दूर /प्रतिकूल जाता है वह नियमों के तहत उसका दंड भोगता है और जो नियमों के पास से /अनुकूल चलता है उसे उसके लाभ मिलते है , बस ! तो प्रभु -कृपा से , हो सकता है मैं उसके थोड़ा अनुकूल होऊं , तो जो भी , सोचता , बोलता , लिखता , करता हूँ वह सबको  अनुकूल /पसंद /ग्राह्य /उपयुक्त लगने लगता है , तुम देखो भला मेरे में क्या काबलियत थी ? कुछ  नहीं  न ?पर कैसे स्कूल चलता था , साफ़ दिल से , प्रेम से , इमानदारी से , सद्भाव से , यही ऋत के अनुकूल है , सो जो लिखता हूँ तुम्हे और लोगों को पसंद आता है , यह मेरा गुण नहीं  है जहाँ मैं हूँ उसका कमाल है , मुझे ख़ुशी है तुम बुद्धिमान हो रहे हो , उपर ऋग वेद का सूत्र लिखा हूँ , हिंदी में लिखा जिससे तुम ठीक से समझ सको , बहुत बहुत स्नेह , शुभ कामना , प्रार्थना .

Wednesday, February 1, 2012

रावण का भी एक चरित्र था ...

श्री राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे पर रावण का भी एक चरित्र था .....वह बलात्कारी नहीं था , वह युद्ध से जीत कर , धोके और चोरी से उन औरतों को प्राप्त कर लेता था , जो उसे पसंद आती थीं (अति कामी था ) , पर किसी भी औरत से बिना उसकी स्वीकृति शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाता न जबरदस्ती रेप  करता था (आज हमारे समाज में रावण से भी गये गुजरे लोग  हैं , कारण न्याय की कमी और नैतिक पतन )'
एक और कथा आती है - एक बार जब रावण ने अपने भाई कुम्भकरण से कहा कि सीता उसे पति -रूप में स्वीकार नहीं कर रही  है तो कुम्भकरण ने सलाह दी  - '' तुम तो मायावी हो , क्यों नहीं राम का रूप बना कर सीता के सामने जाते '' . रावण ने कहा, ''ऐसी कोशिश  मैंने की , पर जब मैं राम का रूप धारण करता हूँ तो मेरी काम-वासना ही नष्ट हो जाती है '' ऐसा है श्री राम का चरित्र .
* कथाएं सत्य नहीं होती पर वे जीवन-सत्य का निरूपण करती है ; इतिहास सत्य होता है पर उसमे जीवन -सत्य नहीं , ...जीवन की भूलें होती हैं -- हम दोनों से , दो तरह से सीखते हैं (आगमन और निगमन )

Monday, January 30, 2012

सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है ...

 सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है 
सुना है शेर का जब पेट भर जाए  , तो वो हमला नहीं करता
सुना है हवा के तेज झोंके जब , दरख्तों को हिलाते हैं
तो मैना अपने घर को भूल कर कौवे के अण्डों को अपने परों में थाम लेती है
सुना है , घोसले से जब कोई बच्चा गिरे , तो सारा जंगल जाग जाता है 

सुना है कोई पुल टूट जाए और सैलाब आ जाए , तो किसी लकड़ी के तख्ते पर 
गिलहरी , सांप और बकरी साथ होते हैं

सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है 
खुदा वंदा ज़लीलो मुआत्बर   दाना-ओ -बिना मुन्शिफो -अकबर
हमारे देश में भी अब  , जंगलों का ही कोई दस्तूर नाफ़िज़ कर


Sunday, January 29, 2012

YOU KNOW WHAT YOU ARE .

U KNOW WHAT U R ; I KNOW WHAT I AM ; WE MAY PRETEND & CONCEAL OURSELVES BUT GOD KNOWS EACH & EVERY ONE ...HIS DECISION IS DECISIVE & FINAL ( DON'T U FEAR GOD ? OR FEAR YR END ? )......
'' I tried to sneak myself through I tried to get to the other side
I had to patch up the cracks and the holes that I have to hide
For a little bit of time even made it work okay
Just long enough to really make it hurt
When they figured me out and it all just rotted away

You better take a good look 'cause I'm full of shit
With every bit of my heart I have tried to believe in it
You can dress it all up, you can try to pretend
But you can't change anything, you can't change anything IN THE एंड
तुम क्या हो , तुम्हे पता है , मैं क्या हूँ  , मुझे पता है ; हम अपने को छिपा कर समाज को दिखा सकते हैं पर ईश्वर को तो सबके बारे में पता है  , ईश्वर का निर्णय पक्का और पूरा सही है ....ईश्वर को नहीं डरते ?  अपने अंत को नहीं डरते ?
मैं बच कर अपने दूसरे रूप को  प्रदर्शित करता हूँ , मैं कोशिस करता हूँ कि अपने दोषों और कमियों को अपने मुखौटे से छिपा लूँ  , थोड़े समय के लिए  ऐसा हो सकता या हो जाता है , पर उघार / भेद खुलने  पर अनर्थ होता है , सो सावधानी से विचार करो और अपने को दृढ़ता से रोक कर , बहाने छोड़ कर  , सही रास्ते पर आ जाओ , क्योंकि  अंत आ जाने पर कोई परिवर्तन संभव नहीं है (अभी बदलो और अपने मूल /मानवीय रूप में आ जाओ )

Friday, January 27, 2012

निष्केवल प्रेम ........

उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम।
राम कृपा नहि करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम।।117(ख)।। >  राम चरित मानस में तुलसी
शंकर जी पारवती से कहते हैं ; उमा  ! '' शुद्ध प्रेम '' ( अनन्य ) से मनुष्य के उपर जैसी कृपा ईश्वर की होती है , वैसी कृपा किसी भी प्रकार के  योग ,जप , दान , तपस्या , विभिन्न प्रकार के यज्न /यग्य  , व्रत और नियम  करने से नहीं होती . '' रामहि केवल प्रेम पियारा : जानि लेहु जो जाननिहारा '' > वही = अगर आप समझदार हो तो समझ लो - राम को केवल '' प्रेम '' ही प्रिय है

Sunday, January 22, 2012

मैं मूर्ति-पूजक नहीं हूँ ; पर मूर्ति -पूजा से मेरा कोई विरोध नहीं है .

मैं मूर्ति -पूजा का विरोध , स्वामी दयानंद की तरह  नहीं करता .पर मेरा दृढ मत और पक्का अनुभव है कि मंदिर-तीर्थ-यात्रा और पूजा-पाठ  का कोई अर्थ नहीं है , न इससे कोई सफलता /परिणाम हासिल होते हैं ....फिर ? प्रार्थना के साथ प्रयत्न,प्रयास और कर्म यही सफलता देता है ....प्रार्थना भी केवल सद-कर्म करने के लिए और कोई प्रार्थना सुनी ही नहीं जाती ---कर्म का चुनाव सही हो यही मांगना और वही कर्म करना (प्रार्थना के लिए भी , स्थान ,समय ,विधान ,शब्द की  जरूरत नहीं केवल मन से भाव सहित संकल्प और सद-कर्म की याचना . कबीर से बड़ा साधक ,सत्य -अन्वेषी , सत्य वक्ता कौन है ? वे क्या कहते हैं देखें -
'' पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं  पहाड़ '' और तुलसी  , मानस में ? '' कादर मन कंह एक अधारा : दैव दैव आलसी पुकारा '' और  '' कर्म प्रधान विश्व करि राखा : जो जस करै सो तस फल चाखा .''  गाँधी जी भी मेरी बात कहते हैं - '' मैं इश्वर को मानता हूँ  ; मैं मूर्ति-पूजक नहीं हूँ ; पर मूर्ति -पूजा से मेरा कोई विरोध नहीं है .
यह भी समझ  लें ,  खूब ठीक से  1- पूजा प्रार्थना भय की वजह से डरे हुए से  ,2- पाप से बचने के लिए , 3- बिना प्रयास , कर्म किये हुए किसी फल के लिए करते हैं तो संत , महात्मा , योगी , देवता , देवी , यहाँ तक खुद ईश्वर  भी आपकी मदद नहीं कर  सकते न  कुछ दे सकते है ....प्रार्थना पूजा केवल इन उद्येश्यों  से फल देगी .....1 - अच्छे कर्म के लिए प्रेरणा , सद्बुद्धि और शक्ति के लिए और 2 - अच्छे कामों की  सफलता पर  सद्बुद्धि देने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने  , आभार कहने के लिए  3 - दूसरों और सबके कल्याण के लिए ।

Monday, January 16, 2012

ILL-ADVISED WISDOM

कृपया अपनी स्वतंत्र , निष्पक्ष ,बौद्धिक और पूर्वाग्रह से रहित होकर ,  राय दें /कमेन्ट करें /धन्यबाद ...
1 - राहुल जी कहते हैं - '' मैं दलितों के घर जाता हूँ , उनका खाना खाता हूँ ;उनकी फीकी चाय और गंदा पानी पीता हूँ ...पर मायावती ऐसा नहीं करती ''....मेरा कमेन्ट = राहुल जिस घर में जाते हैं .जो खाते हैं ;जो पानी पीते हैं , जहाँ थोड़े समय के लिए बैठते सोते हैं ; उन्ही घरों में मायावती जन्मीं , वही खाना बीसों साल खाया , वही गंदा पानी पीया तो गरीबों /दलितों के बारे में कौन ज्यादा जानेगा ?; पर एक बात का अनुभव राहुल को कैसे हो सकेगा - वह अपमान ,घृणा और संघर्ष जो मायावती ने दलित होने के नाते झेला है ...वह  अनुभव दलितों के झोपडी से नहीं ,दलित होने पर या अत्यधिक संवेदन शील होने पर ही होगा ; यह और बात  है कि अपने संघर्ष , उत्साह , राजनैतिक चतुरता से उन्होंने  सम्पन्नता ,पद और सत्ता प्राप्त कर ली है जो राहुल और उनकी पार्टी के लिए इर्ष्या बन गयी है ;राजा नहीं होते हुए भी  ,उनके लोग , उन्हें राज कुमार ही कहना पसंद करते हैं तो दलितों की रानी होने में कैसा एतराज ? न अब वह 50  साल पुराना भारत है , न वे दलित . क्या दलितों को राहुल मूर्ख समझने की भूल तो नहीं कर रहे हैं .?..अवश्य .
2 - हाथी की मूर्तियों को ढकना ILL - ADVISED WISDOM हास्यास्पद बौद्धिक दिवालियापन ही लगा ; इससे प्रत्यक्ष में मायावती को हानि की वजाय लाभ ही होगा ऐसा मेरा निश्चित मत है .

Sunday, January 15, 2012

THE REAL RENUNCIATION IN BHAGWAT GITA

Renunciation { sanyaas ) as it has been declared in Bhagwat Gita is not to leave your house and family nor the duties of life and its sustaining it but renouncing the desire of results of your actions /deeds . To RENOUNCE THE DESIRE OF RESULTS of all kind of actions performed by you , physical hunger , ALL AND EACH KIND OF achievements , prestige , honour , family all that you have earned should be taken /thought ; earned as a tool in the hands of Lord (Universal -spirit ). In the second way of understanding - it is total loss of the feeling of ' Doer ' in one-self , he performs the deeds but knows that he is not the doer and thus he is not the person , who expects /desire any result . In the third and highest way of understanding it is said - ' detachment '. all the action are being performed as '' duty for duty shake '' (nothing with the desire to loose or gain ). This statement is just and in the same way equal in word and spirit that is well expressed by Immanuel Kant in his world famous theory of ' moral -law '

Friday, January 6, 2012

D BEST U CAN KNOW & ACT UPON .

परम धरम श्रुति विदित अहिंसा : पर निंदा सम अघ न गिरीसा
परहित सरिस धरम नहीं भाई  : पर - पीड़ा सम नहि अधमाई
माता सम देखइ  पर नारी  : धन - पराव  विष ते विष भारी
हरि ब्यापक सर्वत्र , समाना  : प्रेम ते प्रकट होइ मैं जाना  >. मानस में तुलसी
D best religion known in Vedas is - NON-VIOLENCE ; CRITICISE OTHER IS WORST OF SINS,
Helping others is d best religious act &; to harm others is meanest act .
See all other women than your as MOTHER &; look at d property of others as deadliest of poisons.
God is present every where , always , equally distributed &; can be realised by LOVE