Thursday, September 6, 2012

.हम और परमात्मा

ॐ हरी .......
.'' कर्म प्रधान विश्व  करि   राखा / जो जस करै , सो तस फल चखा  [मानस में तुलसी ]
कहा जाता है परमात्मा ने मनुष्य को अपने ही प्रतिरूप में बनाया ,परमात्मा असीमित , परम स्वतंत्र और  त्रुटि रहित चैतन्य शक्ति है जिसके विचार और कार्य एक ही होते है जब कि मनुष्य को विचार को कार्य में बदलना होता है , मनुष्य को  उसके भिन्न भिन्न उत्तेजनाओं और परिस्थितियों में निर्णय लेने में एक स्वतन्त्रता तो होती है पर यह स्वतंत्रता केवल निर्णय लेने तक रहती है , निर्णय लेने के बाद कार्य कर लेने या हो जाने पर उसकी स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है और कृत कार्य के अनुसार फल निश्चित हो जाता है ,.... यही मनुष्य की स्वतंत्रता ही उसके दुःख का कारण भी बन जाती  है , तब ,  जब वह निर्णय लेने में गलती करता है , चाहे  जान बूझ कर या चूक से , तब उसे इस कर्म -फल  को  भोगना  ही पड़ता है जो उसने कर लिया है ....सो मनुष्य की स्वतन्त्रता ही उसके सुख दुःख का कारण भी है , बुद्ध ने भी कुछ ऐसा ही कहा है और हमारे वेदान्त और गीता , मानस भी यही कहते है ....इमैनुअल कैंट तो कर्म और फल को एक ही बताता है  ....अतः कर्म -निर्णय लेने में चूक न होने पाए इस लिए हम ईश्वर से प्रार्थना करते है , क्योंकि हम उसी के अंश हैं और हमारी चेतना से परमात्मा / वैश्विक चेतना से  सदा  ही संपर्क , सम्बन्ध बना रहता है ..कहिये परमात्मा का एक अंश हमारे रोम रोम में ब्याप्त हुआ रहता है 

Wednesday, September 5, 2012

CRITICISM

 राधा कृष्णन जी की याद में .......
दो  सीखें ...... पहली बात , * टच - स्टोन मेथड .....जब मै हाई स्कूल इंटर में पढ़ता था , छोटी छोटी कवितायें लिखता और सोचता बड़ा होकर कवि  बनूंगा . एम् .ए अंग्रेजी में मुझे अर्नोल्ड का एक तरीका  पसंद आ गया कि किसी कविता कि गुणवत्ता जांचनी हो तो तो एक काम करो  - अपनी कविता को किसी बड़े कवि  जैसे कालिदास , ब्यास , वाल्मीकि , तुलसी , कबीर , प्रसाद , के दो एक लाइनों से मिलाओ  ( उसने अंग्रेजी कवियोँ का नाम लिखा है ) अगर तुम्हारी कविता उस जोड़ ,  स्तर की हो तो लिखो और समझो तुम कवि हो . उसी दिन से मेरी कविता लिखने और कवि बनने की बात खतम हो गयी , मैं कविता लिखता , मिलाता और फाड़ कर फेंक देता ...सो कवि बनने का सपना धुल गया (हाँ कुछ इधर उधर की तुकबंदी कर लेता हूँ )
दूसरी बात सीखी राधाकृष्णन जी से ......(आज भी मेरे बहुत मित्र , शुभ चिन्तक कहते हैं - सर ! किताब क्यों नहीं लिखते आप ? )....तो एक बार राधा कृष्णन का इलाहाबाद वि . वि . में आना हुआ , वे भाषण के बाद सवालों का जबाब देते थे ....सो एक छात्र ने सवाल किया , सर ! आप हमेशा , वेद , उपनिषद और महान लेखकों , कवियों के कोट्स /उद्धरण ही देते हैं , कुछ अपनी बात नहीं कहते , तो राधा कृष्णन ने संस्कृत का एक और कोट कहा  जिसका अर्थ है = हमारे ग्रंथों , लेखकों , कवियों और चिंतकों ने जीवन -दर्शन और नैतिक जीवन तथा सत्य/ईश्वर के बारे में इतना उन्नत लिख दिया है कि और कुछ नया लिखने की जरूरत नहीं है,विकल्प /संभावना भी नहीं दिखती  , पर जो लिखा गया है उसे ही समझ लेने और जीवन में जितना हो सके उतारने की जरूरत है .( सो .....मैं , जो लिखा है उसे ही पढने और समझने , लागू करने में लगा हूँ , अब उपनिषदों से अच्छा लिखूं , तो जरूर लिखूं , सो किताब लिखने का कोई इरादा भी नहीं रहा ) {विज्ञानं और लाइफ साइंस के खोजों पर यह कथन लागू नहीं , और मेरा यह क्षेत्र नहीं है , सो इस क्षेत्र में लोग खोजें और जरूर लिखें या फिर साहित्य के क्षेत्र में कोई बड़ी लकीर खींचें }
*Matthew Arnold’s ( अ विक्टोरियन क्रिटिक ) touchstone method is a comparative method of criticism. According to this method, in order to judge a poet's work properly, a critic should compare it to passages taken from works of great masters of poetry, and that these passages should be applied as touchstones to other poetry. Even a single line or selected quotation will serve the purpose. If the other work moves us in the same way as these lines and expressions do, then it is really a great work, otherwise not.....आज कल प्रायः लोग पैसे वाले ,भ्रष्टाचार से धन कमाए हुए , पदों वाले , कि वे बड़े विद्वान् और ऋषि जैसे हैं ,  न कि ऐरू -गेरू , और कुछ कवि ,लेखक ऐसा होने की लालच में कुछ खाद गोबर लिख कर छपवा लेते हैं और सबको बांटते हैं कि देखो मैं लेखक /कवि हूँ , उन्हें कोई पढ़ता नहीं , मेरे पास ऐसी पचासों पुस्तकें पड़ी हैं , जो मेरे बच्चे कभी रद्दी में बेचेंगे , ऐसी कविताएँ और लेख , नावेल , मैं तो रोज  कहता रहूँ , लोग लिख लें , पर क्या फायदा ? अर्नोल्ड और राधा कृष्णन लिखने की अनुमति नहीं देते .....मैं तो पढने में संतुष्ट और आनंदित हूँ .