Thursday, November 17, 2011

जैसा सोचता हूँ मैं ; आपका दोस्त ......


तुलसी दास ने मानस के प्रारम्भ में ही एक बहुत बड़ी बात कही है '' नाना पुराण निगमागम सम्मतम यदि '' अर्थात वेद पुराण सभी ग्रंथों में आज के समय -परिस्थिति में जों कुछ भी अनुमोदित -स्वीकार्य और समीचीन है , उसे मै मानस में उद्धरित करता हूँ . यही नजरिया सर्वोत्तम और ग्राह्य है , सबके लिए और मैं इसी का पालन करता हूँ ; जों कुछ यहाँ उद्धरित करता हूँ उसे , तर्क , विवेक , विज्ञान की कसौटी पर कसता हूँ और वही आपको देता हूँ I// जों इस कसौटी से मेल नही खाता उसे वहीँ का वही रहने देता हूँ बिना किसी टिका टिप्पणी के (Drop it ). मैं सनातनी हिन्दू हूँ और सौभाग्य से दर्शन /तुलनात्मक धर्म का थोड़ा -बहुत ध्येता हूँ सो मेरा धर्म मुझसे साफ़ साफ कहता है - '' श्रेयांस स्व धर्मो विगुणः (भगवत गीता ) = स्पष्ट अर्थ हुआ - गुण रहित होने पर भी सबको अपना - अपना धर्म श्रेष्ठ है // सो अपने धर्म कों मानना और दूसरे धर्मों का आदर करना ही उचित हुआ // सभी धर्मों में श्रेष्ठ जीवन और सद्गुणी जीवन की चर्चा है सो सभी धर्मों में जों भी श्रेष्ठ , सम्मत और समीचीन है उसे कहता सुनता और समझ कर जीवन में लागू करता हूँ / जों सम्मत नही लगता , अंध विश्वास , पूर्वाग्रह युक्त , अवैज्ञानिक लगता है या है उसे वही यथावत रहने देता हूँ जैसे घर में दादा -दादी कों सम्मान से रखते हैं भले वे चन्द्र -ग्रहण पर गंगा नहाने जाते हैं और हम नहीं , पर उनकी यात्रा भी कराते हैं , अपने भी डुबकी लगा लेते है यह जानते हुए भी चन्द्रमा संकट में नही सूर्य की आड़ में हैं -आदि , आदि हम बड़े शौक से जीसस से प्रेम , बुद्ध से करुणा , मुहम्मद से भाई चरा , राम से मर्यादित आचरण , कृष्ण से न्याय के लिए संघर्ष , महावीर और गाँधी से अहिंसा , नानक और कबीर से भक्ति , मीरा से समर्पण सीख सकते हैं ...इसके लिए किसी का धर्म किसी कों रोकता नहीं ... हलाँ कि ऐसा नजरिया मुश्किल से बनता है प्रायः लोग धर्मान्ध हो जाते हैं और एक नाव में बैठ कर दुनिया कों देखते हैं तो सारी दुनिया चलती दिखती है और उनकी नाव स्थिर ... बहुत सरल है किनारे खड़े होकर देखो तो नाव चलेगी , तुलसी के समय में रेलगाड़ी नही थी पर उनकी दृष्टि गजब की थी .यह घटना उन्हों ने नाव पर चढ़ कर देखा और मानस में लिखा - '' नौका
-रूढ़ चलत जग देखा '' सर्वे संतु सुखिनः '' का भाव वैश्विक है उसे नाव में बैठ कर नहीं नदी और नाव से बाहर रहकर किनारे से देखा गया है . यही है हमारी ब्यापक समझ और सनातन सोच ... धर्म कों समझना सरल तो है पर हमको सीधा -स्वभाव होना होगा .***( शेर ,शायरी . साहित्य कविता जों उद्धरित करता हूँ उस पर अह कथन लागू नही होता वह तो प्रायः मेरी पसंद और आपके साहित्यिक आनंद के लिए होता है ) तथास्तु .