Thursday, September 24, 2015

संतों में कबीर का कोई जोड़ नहीं है ....


सरल जीवन , उत्तम दर्शन , अन्धविश्वास का प्रबल विरोध , ऐसे महापुरुष हुए हैं , बहुत कम , बिरले संत , और वे भी उन्हीं से प्रभावित [ बुद्ध को छोड़ कर ]
ईश्वर को सारी श्रिष्टि में देखना , सबसे प्रेम , उदासीन जीवन !
न दाढ़ी बढ़ाना , न मूड़ मुड़ाना , न चोला , न रंग , न संस्था , न शिष्य , न मठ , न दक्षिणा , न मंदिर , न तीर्थ , न पोथी , न पढ़ाई , न माला , न पूजा .......क्या बात थी ? इस संत में ! अपनी रोटी खुद कमाना और दूसरे के तन ढकने के लिए वस्त्र बुनना .......और सच क्या है वह अपने घर से सबको बताना ....
अब , देखो जो संत यह सब करते हैं , जो कबीर नहीं करते वे सभी ढोंगीं , लालची , स्टंट-बाज और धूर्त हुए न ? .....इनके साथ जाओगे तो विलाप और रोदन , दुःख और नरक होगा ही
कबीर को पढ़ो , कबीर को समझो , कबीर को मानो , और अपने पेशे /उत्तरदायित्व में रहकर सुखी बनो ! कबीर हमारे आदर्श हैं और उनके आदर्श हैं श्री राम , तुलसी और गांधी भी राम-भक्त है ...यही हमारी परम्परा है ......असली !!!